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कृषि अध्यादेश 2020: किसानों के बहाने कहीं राजनीतिक हित साधने की कोशिश तो नहीं
कृषि अध्यादेश 2020 लोकसभा और राज्यसभा दोनो सदनों पास हो चुका है। इस अध्यादेश के पास होते ही पंजाब के रानीतिक दलों में किसान हितैषी होने की होड़ सी लग गई है।
दुर्गेश पार्थ सारथी
नई दिल्ली: कृषि अध्यादेश 2020 लोकसभा और राज्यसभा दोनो सदनों पास हो चुका है। इस अध्यादेश के पास होते ही पंजाब के रानीतिक दलों में किसान हितैषी होने की होड़ सी लग गई है। चाहे वह प्रदेश की सत्ताधारी कांग्रेस हो या विधान सभा में प्रमुख विपक्षी पार्टी शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी। यही नहीं अपनी ही पार्टी में उपेक्षित चल रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री और विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने किसानों के बहाने ही सही लंबे समय बाद राजनीतिक रूप से सक्रिय हुए और सार्वजनिक रूप से नजर आए। यही नहीं उन्होंने राजनीतिक कटुता भुलाते हुए किसानों के साथ अमृतसर में बिल के खिलाफ प्रदर्शन किया।
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विधेक की खूबियों और खामियों पर नहीं है किसी दल का ध्यान
किसानों के बहाने अपनी राजनीतिक गोटियां सेट करने वाले किसी भी राजनीतिक दल का ध्यान विधेयक की खूबियों और खामियों पर नहीं है। राज्य के सभी दल एक दूसरे से आगे निकल कर अपने को किसानों का शुभचिंतक बनने में लगे हैं। दोनों सदनों में जो कृषि बिल पास हुआ है उसमें क्या है। यह बिल लाने की जरूरत क्यों पड़ी। इनमें कौन-कौन से ऐसे प्रावधान हैं जो किसानों, आढ़तियों और प्रदेश सरकारों के लिए फायदेमंद या नुकसानदायक हैं।
इसे न तो किसी राजनीतिक दल ने समझने की कोशिश की और ना ही किसानों और आढ़तियों को इस बारे में बताने या समझाने का कोई प्रयास कर रहा है। कारण स्पष्ट है रह राजनीतिक दल किसानों में अपनी-अपनी पैठ बनाने में लगा है।
आढ़तियों का एक बड़ा वर्ग जुड़ा है राजनीति से
22 जिलों के पंजाब में सभी जिलों, तहसीलों और ब्लॉकों में दाना मंडिया हैं। इन मंडियों में फसलों की खरीद का अच्छा प्रबंध भी है। लेकिन इन मंडियों में आढ़त का काम करने वाले ज्यादातर आढ़तियों का संबंध किसी न किसी राजनीतिक दल है। यहां तक कि कुछ आढ़ती विधायकों और मंत्रियों के करीबी भी है। यहीं नहीं किसान आढ़तियों से कर्ज भी लेते हैं। इसी साल गेहूं खरीद सीनज में जब केंद्र सरकार ने आढ़तियों से किसानों का बैंक एकाउन्ट डिटेल मांगी तो आढ़तियों ने यह कहते हुए खता नंबर देने से मना कर दिया था कि किसान नहीं चाहते कि उनका खाता नंबर सरकार को दिया जाए। इसके विरोध में प्रदेश के आढ़तियों ने तीन दिन तक खरीद बंद कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था।
हर कोई चल रहा है सियासी दांव
पंजाब में छोटे-बड़े कुल 18 लाख से अधिक किसान हैं जो 39.67 लाख हेक्टेयर जमीन में खेती करते हैं। कांग्रेस, शिअद और आप का एक बड़ा वोटर वर्ग गांवों से आता है जो कृषि और डेयरी फार्मिंग से जुड़ हैं। प्रदेश को एक माह में नशा मुक्त करने, घर-घर रोजगार देने और बेअदबी दोषियों को सजा दिलाने में विफल रही कांग्रेस सरकार किसानों में पैठ बनाने में लगी है। वहीं मुद्दा विहीन शिअद किसानों का हितैषी बता उन्हें साधने में लगी। क्योंकि शिअद का एक बड़ा वोटर वर्ग गांवों से आता है। जबकि आम आदमी पार्टी के पास खोने को कुछ भी नहीं है। ऐसे में वह भी खुद को किसानो का शुभचिंतक साबित करने लगी है।
punjab-politics (social media)
शिअद ने खेला बड़ा दांव
कृषि अध्यादेश पर तीन माह तक सरकार का साथ देने वाले शिअद ने संसद सत्र से एक दिन पहले पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में अपना स्टैंड बदल लिया। यही नहीं संसद में कृषि बिल का यह कहते हुए विरोध किया कि जब तक किसानों का संदेह दूर न हो जाए तब तक इस बिल को सदन में न लाया जाए। बता दें कि इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का अध्यादेश पर वीडियो बनाकर वायरल किया गया, जिसमें बादल इस अध्यादेश को किसानों के हित में बता रहे हैं ।
इस वीडियो में वे कह रहे हैं कि इस बिल पर कांग्रेस किसानों को गुमराह कर रही है। यही नहीं मंत्री मंडल से शिअद की बठिंडा से सांसद और प्रकाश सिंह बादल की बहू हरसिमरत इस्तीफा दे कर पंजाब के किसानों को साथ जोड़ने की जहां कोशिश की है वहीं कांग्रेस पर भी दबाव बनाया है। दरअसल, राज्य में किसान संगठनों के विरोध के कारण शिरोमणि अकाली दल को वोट बैंक खिसक जाने का डर भी सता रहा है।
कांग्रेस भी पीछे नहीं
ऐसा नहीं है कि शिअद को ही किसानों का वोट बैंक खिसकने का डर सता रहा है। यह डर कांग्रेस को भी है। क्यों कि पंजाब में डेढ़ साल बाद विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं । वो जानते हैं कि शिअद को हाशिये पर ला कर ही किसानों का वोट पाया जा सकता है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह लगातार इन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं। इसलिए कोरोना में भी मेडिकल प्रोटोकॉल के बावजूद प्रदर्शन के दौरान किसानों पर दर्ज केस वापस लेने का फैसला किया है।
साथ ही किसानों को दिल्ली में प्रदर्शन के लिए भी कहा। यहीं नहीं एक वीडीपीओ किसानों को कृषि अध्यादेश के खिलाफ रोष प्रदर्शन करने के लिए बकायदा सरकारी लेटर जारी करता है। जब यह बात मीडिया में आती है कैप्टन सरकार उसका तबादला कर अपना पल्ला झाड़ लेती है। और तो और अध्यादेशों और विधेयकों पर हुई बैठकों में पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल और कृषि सचिव काहन सिंह पन्नू भाग लेते रहे हैं।
हमदर्दी जुटाने में लगी आप
कृषि बिल पर पंजाब में राजनीति चमकाने में आम आदमी पार्टी भी पीछे ने नहीं है। पार्टी के पास खोने को कुछ नहीं है। हर छोटे बड़े मसलों पर कांग्रेस और शिअद को कोसने आप नेता भी किसानों की हमर्दी पाने में लगे हैं। क्यों वो जानते हैं कि सत्ता की सीढ़ी किसानों के सहारे से चढ़ी जा सकती है। इस लिए वे भी शिअद और कांग्रेस की तरह किसानों के कंधों पर बंदूक रख कर चलाने में पीछे नहीं है।
हरसिमरत कौर का इस्तीफा फेक शो
इसी साल फरवरी में शिअद से निकाले गए सुखदेव सिंह ढींढसा अकाली दल पर पंजाब में अपना खो चुकी है। ढींढसा ने शिअद से नाराज चल रहे नेताओं और समर्थकों के साथ मिल कर करीब दो माह पहले ही अपनी नई पार्टी अकाली दल डेमोक्रेटिक का गठन किया है। ढींढसा कहते हैं कि शिअद और कांग्रेद दोनों ही किसान विरोधी पार्टियां हैं। उन्होंने कृषि बिल को लेकर अकाली दल के विरोध प्रदर्शन और हरसिमरत कौर के मंत्री पद से इस्तीफा को फेक शो बताया। वे कहते हैं कि यदि सच में शिअद किसान हितैषी है तो केंद्र में भाजपा से अलग हो ।
केंद्र में भाजा से नाता तोड़े शिअद
कांग्रेस प्रदेर्श अध्यक्ष सुनील जाखड़ और मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि यदि शिअद महज नौटंकी कर रहा है। अगर सच में वह किसानों का साथ देना चाहता है तो केंद्र और राज्य में भाजपा गठबंधन से नाता तोड़े। सुखबीर और हरसीमरत दिखावे की राजनीति कर रहे हैं।
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महाराष्ट्र में सरकार से समर्थन वापस ले कांग्रेस
शिअद अध्यक्ष सुखबरी बादल ने कहा कि यदि सच में कांग्रेस किसानों के हक की आवाज उठा रही है तो उसे महाराष्ट्र से शिवसेना की सरकार से समर्थन वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिव सेना ने लोकसभा और राज्य सभा में कृषि बिल का समर्थन किया है।
किसानों के बहाने सिद्धू की हुई वापसी
कृषि सुधार विधेक के खिलाफ पंजाब की धर्म नगरी अमृतसर में किसानों के प्रदर्शन के दौरान पूर्व कैविनेट मंत्री नवजोंत सिंह सिद्धू खुद किसानों के ट्रैक्टर पर सवार थे। शहर की लाफलाइन कहे जाने वाले भंडारी पुल पर हुए प्रदर्शन के दौरान के कृषि बिल को किसानों बज्रपात कहा। किसानों की इसी रैली के के बहाने लंबे समय बाद सिद्धू ने सक्रिय राजनीति में वापसी करते हुए अपना मौन तोड़ा है। उन्होंने कृषि विधेयक को किसानों पर अत्याचार बताते हुए कहा कि वह किसानों के साथ हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब 99 प्रतिशत निर्वाचित जनप्रतिनिधि इस बिल को लागू नहीं होने देंगे। बाता देंकि सिद्धू 2019 से ही गायब थे।
कोविड प्रोटोकाल की उड़ी धज्जियां
पंजाबभर में भिन्न राजनीतिक दलों के समर्थन से किसान यूनियनें कृषि सुधार बिल के विरोध में सड़क पर उतार आई हैं। इस विरोध प्रदर्शन में हेल्थ प्रोटोकॉल की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रहा हैं। ऐसे कोरोना संक्रमण कम होने की बजाय पंजाब में और तेजी से पैर पसार सकता है। यह सब जानते हुए भी सरकार सियासी फायदे के लिए मौन धारण किए हुए है।
क्या है एमएसपी किसानों नहीं पता
कृषि सुधार विधेयक का विरोध कर रहे किसानों अधिकांस किसान ऐसे है जिन्हें न तो एमएसपी का पता है और ना ही कृषि सुधार विधेयक की जानकारी। इन दोनों के बारे में पूछे जाने पर ज्यादातर किसान करते हैं कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। वे बस इतना जानते हैं कि नए कृषि कानून से किसानों का नुकसान होगा।
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चुप्पी साधे हुए है भाजपा
कृषि बिल के विरोध में किसानों के साथ शिअद और कांग्रेस के धरना प्रदर्शन पर भाजपा पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है। उल्लेखनीय है सूबे में और केंद्र में भाजपा शिअद के साथ है। वहीं पंजाब में हो रही धरना प्रदर्शन की सियासत में भाजपा दर्शक दिर्घा में खड़ी है। कुछ लोगों का कहना है कि करीब डेढ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिअद से अलग हो सकती है। इसकी मांग भी पार्टी में उठती रही है। फिलहाल भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अश्वनि शर्मा इस मामले में कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
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