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गुजरात चुनाव : पटेलों के लिए झोंकी ताकत, जीतने के लिए जीतोड़ मेहनत

raghvendra
Published on: 3 Nov 2017 9:09 AM GMT
गुजरात चुनाव :  पटेलों के लिए झोंकी ताकत, जीतने के लिए जीतोड़ मेहनत
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अहमदाबाद। कांग्रेस इस बार गुजरात में अपनी सरकार बनाने का बड़ा ख्वाब देख रही है। पार्टी गुजरात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पटखनी देने की कोशिश में जुटी हुई है क्योंकि उसे पता है कि यदि गुजरात में कांग्रेस को विजय मिली तो इसका संदेश पूरे देश में जाएगा। यही कारण है कि राहुल गांधी लगातार गुजरात के दौरे कर रहे हैं और यहां का चुनाव जीतने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं।

पिछले छह विधानसभा चुनाव हार चुकी कांग्रेस का दावा है कि उसकी स्थिति इस बार बहुत मजबूत है और राज्य की जनता इस बार उसे ही सत्ता की चाभी देने वाली है। दूसरी ओर भाजपा को भी पता है कि गुजरात में हार सिर्फ एक राज्य की हार नहीं होगी। इसे मोदी की हार माना जाएगा और इसका पूरे देश में अलग संदेश जाएगा। मौजूदा समय में भाजपा दोनों दिग्गज नेता यानी प्रधानमंत्री मोदी व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह गुजरात के ही हैं और यही कारण है कि यहां के चुनावी रण को जीतने के लिए पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है। सबसे बड़ी लड़ाई पटेलों का समर्थन हासिल करने के लिए हो रही है।

सोलंकी ने दिलाई थी आखिरी जीत

कांग्रेस को गुजरात में आखिरी जीत 1985 में माधवसिंह सोलंकी की अगुवाई में मिली थी। सोलंकी का विजयी फार्मूला था क्षत्रिय-मुस्लिम-दलित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को अपने पक्ष में बटोर लेने का। यह फार्मूला क्लिक कर गया और गुजरात की 182 सीटों में से 149 पर कांग्रेस विजयी रही। उस चुनाव में पटेल समुदाय ने कांग्रेस का साथ दिया था।

इस चुनाव के बाद वाले चुनाव में बीजेपी ने सौराष्ट्र के केशुभाई पटेल को अपना नेता घोषित किया था। पार्टी ने पटेल राजनीति पर दांव लगाया था क्योंकि उसे लग गया था कि इस समुदाय के जरिये विजय हासिल की जा सकती है और यही हुआ भी। इसके बाद बीजेपी ने आर्थिक रूप से पिछड़ों और पटेल समुदाय को अपने पक्ष में किया और लगातार सत्ता हासिल करती रही।

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कांग्रेस 22 सालों तक सत्ता से बाहर रही और वह मौका मिलते ही पाटीदार आरक्षण मामले में आंदोलनकारियों के पक्ष में खड़ी हो गयी। अब पार्टी को लग रहा है कि जिस पटेल समुदाय ने 1990 में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था वह अब कांग्रेस की तरफ आ रहा है, लेकिन इस पाटीदार आंदोलन में अब दरार पड़ गई है।

हार्दिक के खिलाफ उठने लगी आवाज

गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले ही पाटीदार नेताओं के बीच दरार रंग दिखाने लगी है। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ भीतरखाने आवाज उठने लगी है। हार्दिक पटेल ने कांग्रेस नेताओं से मुलाकात कर पाटीदार आरक्षण पर रुख स्पष्ट करने के लिए अल्टीमेटम दिया है, वहीं पाटीदार आरक्षण संघर्ष समिति ने बीजेपी के साथ जाने का मन बना लिया है। समिति ने हार्दिक को तमाशबीन बताते हुए कहा कि उन्हें बीजेपी से अपनी मांग पूरी होने की ज्यादा उम्मीद है।

समिति के राष्ट्रीय संयोजक अश्विन पटेल का कहना है कि कांग्रेस की ओर से किए जा रहे दावे असंभव हैं। कांग्रेस 2019 या 2024 में होने वाले चुनाव में सत्ता में आती हुई नहीं दिख रही है। लिहाजा हम इतने समय तक इंतजार नहीं कर सकते। हम पारंपरिक रूप से बीजेपी का समर्थन करते आ रहे हैं और बातचीत के जरिए अपने मुद्दों को हल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हार्दिक के नेतृत्व में पाटीदार आंदोलन में हमारे 14 लोगों की जान जा चुकी है। हार्दिक की रैली में दिखने वाली भीड़ आम जनता की नहीं है और रैली में भाड़े के लोग शामिल होते हैं।

आम आदमी पार्टी को लगा झटका

गुजरात के चुनावी रण में पहली बार उतरने की तैयारी कर रही आम आदमी पार्टी को चुनाव से पहले ही झटका लगा है। आप की महिला विंग की अध्यक्ष वंदना पटेल और ऋतुराज मेहता के साथ 100 से भी अधिक कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। ऋतुराज ने गांधीनगर सीट पर लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। गुजरात में पहली बार आप किसी भी स्तर का चुनाव लड़ रही है।

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पार्टी गुजरात चुनाव के लिए अब तक 21 उम्मीदवारों के नाम कि घोषणा भी कर चुकी है। वैसे अब माना जा रहा है कि चुनाव से पहले पार्टी के कुछ और नेता भी कांग्रेस से जुड़ सकते हैं।

गुजरात में उद्योगपतियों की सरकार : राहुल

गुजरात में चुनाव जीतने के लिए भाजपा व कांग्रेस के बीच जबर्दस्त आरोप-प्रत्यारोप के तीर चल रहे हैं। कांग्रेस की ओर से जहां राहुल गांधी ने कमान संभाल रखी है वहीं भाजपा की ओर पीएम मोदी व भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने प्रचार की कमान अपने हाथों में रखी है। राहुल सीधे मोदी पर तीखे हमले कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि मोदी पर तीर चलाकर ही कांग्रेस की नैया पार लग सकती है। उन्होंने गुजरात की चुनावी सभाओं में कहा कि भाजपा को गुजरात चुनाव के दिन करंट लगने वाला है।

जनता उनकी हकीकत को पहचान गई है। राज्य में उद्योगपतियों की सरकार है। सबकुछ उनके हाथ में हैं। यहां जिनके पास पैसा नहीं है उनका कोई काम नहीं होता है। विकास का यही गुजरात मॉडल है। टाटा नैनो के लिए मोदी जी ने 33000 करोड़ दिए, लगभग फ्री में। आपकी जमीन लेकर टाटा को दी। 33000 करोड़ में गुजरात के किसानों का कर्ज माफ किया जा सकता है। राहुल गांधी ने कहा कि गुजरात विधानसभा चुनाव के दिन बीजेपी को करंट लगने वाला है। कांग्रेस की सरकार बनेगी और ये जनता के लिए काम करेगी न कि कुछ उद्योगपतियों के लिए।

मोदी पर सीधी हमला करते हुए राहुल ने कहा कि मोदी कहते हैं कि सबकुछ हिन्दुस्तान में बनेगा। आज गुजरात में 30 लाख युवा बेरोजगार हैं। गुजरात के बेरोजगारों के लिए भाजपा ने कुछ नहीं किया। मोदी सरकार पूरा काम 5-10 उद्योगपतियों के फायदे के लिए कर रही है। माल चाइना में बनेगा और बिकेगा हिन्दुस्तान में।

गुजरात में अच्छी शिक्षा के लिए 10-15 लाख रुपए की जरूरत पड़ती है। प्राइवेट कॉलेज में गरीब जा नहीं सकता। हजारों सरकारी स्कूल बंद कर दिए। कोई बीमार होता है तो वहां भी उद्योगपति बैठे हैं। बड़े हॉस्पिटल में जाइए। पैसा नहीं हुआ तो वहां से बाहर फेंक दिया जाएगा। यही विकास का गुजरात मॉडल है। यहां बिना पैसे के कुछ नहीं होता।

मोदी का पटेल के बहाने कांग्रेस पर हमला

प्रधानमंत्री मोदी भी गुजरात में चुनावों के मद्देनजर लगातार वहां के दौरे कर रहे हैं। अपनी सभाओं में मोदी भी कांग्रेस पर हमले का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे। पाटीदारों के समर्थन को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कांग्रेस और पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ राजनीतिक दलों और सरकारों ने इतिहास की पुस्तकों से सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम को हटाने का प्रयास किया और आजादी के बाद देश को एकजुट रखने में उनके योगदान को नजरअंदाज कर उनका कद छोटा करने की कोशिश की।

मोदी का यह बयान जल्द होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महत्व रखता है। गुजरात में पटेल की विरासत को लेकर भाजपा और उसकी अन्य प्रतिद्वंद्वी पाॢटयों के बीच खींचतान तेज हो गई है क्योंकि हर राजनीतिक दल पटेल समुदाय को लुभाने की जुगत में है।

मोदी ने पटेल की जयंती के मौके पर रन फॉर यूनिटी को हरी झंडी दिखाते हुए कहा कि पटेल को आज की युवा पीढ़ी के समक्ष उस तरह पेश नहीं किया गया जिस तरह किया जाना चाहिए था। इतिहास से पटेल का नाम मिटाने का प्रयास किया गया, लेकिन इतिहास गवाह है कि चाहे किसी भी सरकार ने पटेल को स्वीकार किया हो या नहीं, चाहे किसी भी राजनीतिक दल ने उन्हें महत्व दिया हो या नहीं, लेकिन देश के युवा उन्हें नहीं भूल पाएंगे। वे पटेल को इतिहास से गायब नहीं होने देंगे।

मोदी ने देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कथन का जिक्र अपनी इस बात को सही साबित करने के लिए किया कि देश के प्रति पटेल के योगदानों के बावजूद उनके इन योगदानों को कुचलने के प्रयास किए गए। मोदी ने कहा कि आज डॉ.प्रसाद की आत्मा यह देखकर खुश होगी कि सरदार पटेल को भुलाया नहीं गया है।

मोदी ने विकास के मुद्दे पर कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि कांग्रेस ने खुद तो कुछ किया नहीं और अब उसे दूसरे का काम भी अच्छा नहीं लग रहा। कांग्रेस नेता चिदम्बरम के कश्मीर की आजादी संबंधी बयान को लेकर भी उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोला और देश की एकता और अखंडता को सुरक्षित रखने का आह्वान किया।

गुजरात का जातीय गणित

गुजरात में 30 प्रतिशत ओबीसी वोटर हैं। वहीं, क्षत्रिय-हरिजन-आदिवासी वोटरों की तादाद 21 प्रतिशत है। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर का एकता मंच इन सभी कम्युनिटी को रिप्रेजेंट करता है। वे कंाग्रेस में शामिल हो गए हैं। यानी ठाकोर के बहाने कांग्रेस की नजर गुजरात के कुल 51 प्रतिशत वोटरों पर है।

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कांग्रेस पाटीदार नेताओं को अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस की अगर पाटीदारों से नजदीकी बढ़ती है तो वह 20 फीसदी वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। गुजरात में जातीय आधार पर मतदाताओं का प्रतिशत इस प्रकार है-पाटीदार-20', मुस्लिम-9', सवर्ण-20', ओबीसी- 30', क्षत्रिय, हरिजन आदिवासी-21'।

गुजरात में कम रहती है उम्मीदवारों की संख्या

गुजरात विधानसभा चुनाव की एक खासियत यह रही है कि यहां उम्मीदवारों की तादाद कम रहती है। राज्य में जितने भी चुनाव हुए उनमें किसी में भी प्रत्याशियों की ज्यादा भीड़ नहीं रही। राज्य के प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में 6 से 7 उम्मीदवारों के बीच ही मुकाबला होता आया है। उम्मीदवारों की संख्या 1990 और 1995 में हुए विधानसभा चुनाव में बढ़ी।

1990 में 1,889 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था वहीं 1995 में 2,545 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे। 1990 से 1995 तक सत्ता में रहने वाले जनता दल को 1995 के चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद से राज्य में सिर्फ दो पार्टियों के बीच ही मुकाबला रहा है। 2012 में गुजरात में 1,666 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा।

हाल ही में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में 3736 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। वहीं 2015 में बिहार चुनाव में 2935 उम्मीदवार उतरे थे। 2014 में आंध्र प्रदेश में हुए चुनाव में 3910 उम्मीदवारों के बीच चुनाव हुआ। गुजरात में यूपी के 4.19 और बिहार के 5.52 उम्मीदवारों के मुकाबले औसतन प्रति सीट 2.6 स्वतंत्र उम्मीदवार ही उतरते हैं। पिछले चुनावों में केशूभाई पटेल की परिवर्तन पार्टी और बीएसपी ने सभी 182 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे।

चुनावी साल - उम्मीदवारों की संख्या

1962 - 500

1967 - 599

1972 - 852

1975 - 834

1980 - 974

1985 - 1137

1990 - 1889

1995 - 2545

1998 - 1125

2002 - 963

2007 - 1180

2012 - 1666

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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