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1993 Serial Bomb Blast में टाडा कोर्ट का अहम फैसला, अब्दुल करीम टुंड़ा बरी, दो को आजीवन कारावास
1993 Serial Bomb Blast: 1993 में ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार धमाके का अब्दुल करीम टुंडा मुख्य आरोपी था। इस फैसले का इंजतार करीम टुंडा को ही नहीं बल्कि इन बम धमाकों में अपनी जान गवाने वालों के परिवारजनों को भी था।
1993 Serial Bomb Blast: एक साथ कई राज्यों में ट्रेनों में बम विस्फोट कर 1993 में भारत को दहलाने वाले मुख्य आरोपी अब्दुल करीम टुंड़ा को 29 फरवरी, 2024 का दिन बड़ी राहत लेकर आया है। 1993 में ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाके में राजस्थान की अजमेर टाडा कोर्ट ने गुरुवार एक अहम फैसला देते हुए इस मामले के मुख्य आरोपी अब्दुल करीम टुंड़ा को दोषमुक्त करते हुए बरी कर दिया है। टुंड़ा के खिलाफ टाडा अदालत को बम धमाके के मामले के किसी भी मामले में कोई साबुत नहीं मिला है, जिसके बाद फैसला सुनाते हुए उसे इस मामले से बरी कर दिया गया है। हालांकि टाडा कोर्ट ने इस मामले में इरफान और हमीदुद्दीन को दोषी करार दिया है और दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
सभी को था फैसले का इंतजार
1993 में ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार धमाके का अब्दुल करीम टुंडा मुख्य आरोपी था। इस फैसले का इंजतार करीम टुंडा को ही नहीं बल्कि इन बम धमाकों में अपनी जान गवाने वालों के परिवारजनों को भी था। लेकिन special Terrorist and Disruptive Activities (TADA) (टाडा) अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए 1993 के सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले के मुख्य आरोपी अब्दुल करीम टुंडा को बरी कर दिया। ऐसा पहली बार नहीं है कि टुंडा को इस मामले में किसी अदातल से राहत मिली हो और पक्ष में फैसला सुनाया हो। इससे पहले मार्च 2016 में दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि पुलिस यह साबित नहीं कर सकी कि टुंडा, एक उड़ा हुआ हाथ वाला व्यक्ति बम बनाता था। अदालत ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि टुंडा लश्कर-ए-तैयबा का बम निर्माता हो सकता है।
फैसले के बाद अब्दुल करीम टुंडा के वकील बयान
टाटा कोर्ट के फैसले के बाद अब्दुल करीम ढुंडा के वकील शफकत सुल्तानी ने बताया कि आज कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है कि अब्दुल करीम टुंडा पूरी तरह से निर्दोष हैं। माननीय न्यायालय ने अब्दुल करीम टुंडा को सभी धाराओं और सभी अधिनियमों से बरी कर दिया गया है। सीबीआई अभियोजन टाडा, आईपीसी, रेलवे अधिनियम, शस्त्र अधिनियम या विस्फोटक पदार्थ अधिनियम में अदालत के समक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका।
उन्होंने कहा कि हम शुरू से कह रहे थे कि अब्दुल करीम टुंडा निर्दोष हैं। लेकिन इस मामले में इरफान और हमीदुद्दीन को दोषी ठहराया गया है। कोर्ट ने दोनो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
जानिए क्या है 1993 में की घटना?
बता दें कि साल 1993 में कई शहरों में हुए ट्रेनों में सिलसिलवारे बम धमाके से पूरा देश दहल गया था। यह ब्लास्ट भारत के कोटा, सूरत ,कानपुर, सिकंदराबाद, मुंबई और लखनऊ की ट्रेनों में हुए थे। यह बम धमाके बाबरी मस्जिद विध्वंस की पहली बरसी 6 दिसंबर 1993 हुए थे। इसमें सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान चली गई थी। इस मामले में अब्दुल करीम टुंडा, इरफान और हमीमुद्दीन पर दहशत फैलाने सहित कई संगीन धारों में केस दर्ज करते हुए आरोपी बनाया था। इसमें मुख्य आरोपी अब्दुल करीम टुंडा था। इन सभी आरोपियों के खिलाफ टाडा एक्ट के तहत केज दर्ज किया गया था। जांच एजेंसी को चकमा देते हुए टुंडा कई वर्षों के फरार रहा। साल 2013 में उसे नेपाल बॉर्डर से गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के बाद टुंडा को आतंकवाद से संबंधित कई आरोपों का सामना करना पड़ा, जिसमें साजिश, हत्या और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना शामिल था।
चरमपंथी समूहों से जुड़ने के लगे आरोप
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले उन पर बांग्लादेश और पाकिस्तान में जिहादियों को बम बनाना सिखाने का आरोप है। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि वह वहां बौद्धों को निशाना बनाने के लिए म्यांमार से रोहिंग्याओं को प्रशिक्षित करने की योजना बना रहा था। साथ ही, टुंडा के ऊपर कथित तौर पर लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) और हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी (हूजी) जैसे चरमपंथी समूहों से जुड़ने होने के आरोप लगे।
फैसला था पहले से सुरक्षित
इस मामले पर टाडा कोर्ट ने 23 फरवरी को दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिस पर आज टाडा कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया और टुंडा को बरी कर दिया गया। टुंडा का पहले नाम अब्दुल करीम था लेकिन पाइन गन चलने की वजह से उनका हाथ उड़ गया है, जिसके बाद वह टुंडा कहा जाने लगा और उसका नाम अब्दुल करीम टुंडा पकड़ गया।