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अपने ही गढ़ में गुमराह समाजवाद, अखिलेश यादव को किया आगाह

seema
Published on: 10 May 2019 3:24 PM IST
अपने ही गढ़ में गुमराह समाजवाद, अखिलेश यादव को किया आगाह
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अपने ही गढ़ में गुमराह समाजवाद, अखिलेश यादव को किया आगाह

संदीप अस्थाना

आजमगढ़: समाजवादियों के गढ़ के रूप में आजमगढ़ जाना जाता रहा है, लेकिन लम्बे समय से अपने गढ़ में ही समाजवाद गुमराह है। अब बसपा व रालोद के साथ गठबंधन करके समाजवादी पार्टी इस बार के लोकसभा चुनाव में जोर आजमाइश कर रही है और अखिलेश यादव खुद समाजवादियों के इस गढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं तो यह स्थिति और भी बढ़ गयी है। इसका कारण अति उत्साह है। जोर-शोर से 'लाठी, हाथी, 786' का नारा दिया जा रहा है। समाजवादी पार्टी के नेता खुलकर बयान दे रहे हैं कि महागठबंधन के बाद सिर्फ तीन वर्ग अहीर, दलित और मुस्लिम ही यूपी की सभी सीटें भारी मतों के अंतर से जीत लेने में सक्षम है। सपाई यह भी कह रहे कि आजमगढ़ में तो इन तीन जातियों की इतनी अधिक संख्या है कि बिना किसी और का वोट लिए अखिलेश यादव पांच लाख से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीत लेंगे। इस तरह का बयान इस जिले के रहने वाले पार्टी के प्रदेश स्तर के कुछ बड़े नेता सपा के केन्द्रीय चुनाव कार्यालय में ही बैठकर दे रहे हैं। बताया जाता है कि सपाइयों के इन बयानों की वजह से अन्य जातियों के लोग बिदक गए हैं। उनका कहना है कि वह सपा को वोट देकर करेंगे ही क्या, जब सपा के लोग उनके वोटों की गिनती ही नहीं करेंगे।

समाजवादियों के गुमराह होने की क्या है वजह

आजमगढ़ के यदुवंशी सपा नेता कह रहे हैं कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ संसदीय सीट पर 3,40,306 मत पाकर सपा के मुलायम सिंह यादव विजयी हुए थे। बसपा के शाहआलम उर्फ गुड्ड जमाली को 2,66,528 वोट मिले थे। इन दोनों वोटों को जोड़ दिया जाए तो कुल 6,06,834 मत होते हैं। सपाइयों का कहना है कि उस चुनाव में उपविजेता रहेे भाजपा के बाहुबली रमाकान्त यादव को 2,77,102 वोट मिले थे। ऐसे में सपा व बसपा के संयुक्त वोट के मुकाबले भाजपा को 3,29,732 वोट कम मिले। इस आधार पर आंकड़े कह रहे हैं कि अखिलेश यादव की जीत तय है। यह भी तर्क दे रहे कि रमाकान्त कुछ यादवों का भी वोट पाए थे। इस बार वह चुनाव मैदान में नहीं हैं। ऐसे में यादव वोट भी अखिलेश यादव को ही मिलेगा।

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सच से रूबरू क्यों नहीं हो रहे समाजवादी

मुलायम सिंह यादव जब चुनाव लड़े थे तब सवर्ण समाज ने बड़ा नेता जानकर उन्हें वोट दिया था। सवर्ण समाज ने बाहुबली रमाकान्त को कभी पसंद भी नहीं किया। इस बार समाजवादियों के अनर्गल बयानों से सवर्णों के साथ ही अति पिछड़ा व अति दलित नाराज है, वहीं भाजपा प्रत्याशी के रूप में उसे दिनेश लाल यादव निरहुआ जैसा निर्विवाद चेहरा मिल गया है। मुलायम सिंह यादव जब यहां से चुनाव लडऩे के लिए आए थे तो विरोधी दलों के तमाम नेता मुलायम के साथ चले आए थे। बसपा और भाजपा में रहे इन नेताओं ने मुलायम के लिए लोकसभा के रण में जमकर हल्ला बोला था। स्थानीय नेता और कार्यकर्ता भी नेता जी के लिए दिन-रात एक किए हुए थे। ससुर को जिताने के लिए डिंपल यादव ने तब मुंह दिखाई के बदले सपा के लिए वोट मांगे थे। ओमप्रकाश राजभर भी तब नेताजी के लिए अपनी छड़ी घुमाते नजर आए थे। सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रामदर्शन यादव 2012 में विधानसभा का टिकट न मिलने से नाराज होकर भाजपा में चले गए थे और मुबारकपुर से चुनाव लड़ा था। उनके मैदान में आने से ही मुबारकपुर में साइकिल पंचर हो गई थी जबकि जिले की शेष 9 सीटों पर सपा जीतने में कामयाब हो गयी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह के आ जाने के कारण रामदर्शन यादव मेहनगर के पूर्व भाजपा विधायक कल्पनाथ पासवान को लेकर सपा में चले आए। इसी प्रकार गोपालपुर के पूर्व विधायक हाफिज इरशाद भी हाथी से उतरकर साइकिल पर सवार हो गए थे।

सपा विधायक रहे रामप्यारे सिंह को हराकर सगड़ी में हाथी की सवारी करने वाले पूर्व विधायक मलिक मसूद ने भी चुनाव में मुलायम का ही साथ दिया। इसके अलावा आजमगढ़ सदर विधानसभा क्षेत्र में हाथी पर बैठकर वोट मांग चुके आरपी राय भी मुलायम के साथ आ गए थे। एक जमाने में अमर सिंह के अति करीबी रहे लोकमंच के नेता विजेंद्र सिंह भी नेताजी के प्रभाव में आकर समाजवादी हो गए थे। रामलहर में आजमगढ़ लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर भाग्य आजमा चुके जनार्दन सिंह गौतम भी समाजवादी हो गए थे। भाजपा से नगर पालिका की चेयरमैन रहीं इंदिरा देवी जायसवाल के पुत्र अभिषेक जायसवाल उर्फ दीनू भी मुलायम के साथ हो लिए थे। इनमें से अधिकांश लोग अब सपा से नाता तोड़ चुके हैं। साथ ही अखिलेश यादव के यहां आने के बाद कोई भी नेता अपने दल से नाता तोड़कर सपा के साथ नहीं जुड़ रहा है। लोग दूर जरूर होते जा रहे हैं। वर्ष 2014 में यूपी में सपा की सरकार थी। इसका भी सपा को चुनावी फायदा मिला था। फर्जी वोटिंग के खूब आरोप लगे थे। इस बार स्थितियां सपा के लिए विपरीत हैं।

आजमगढ़ के होकर भी कभी यहां के नहीं रहे दो नेता

समाजवादी राजनीति के दो कद्दावर नेता आजमगढ़ के होकर भी कभी यहां के नहीं रहे। इनमें अमर सिंह व अभिषेक मिश्र का नाम शामिल है। अमर सिंह जहां लम्बे समय तक सपा संगठन के बड़े पदों पर रहे, वहीं राज्यसभा सदस्य के साथ ही सपा की सरकारों में उनको लाभ के पदों पर भी आसीन किया गया। इसके विपरीत वह हवाई नेता रहे और केवल लाभ लेने के लिए ही आजमगढ़ को अपना जिला कहा। इसी तरह से अभिषेक मिश्र तो कभी यहां रहे ही नहीं। ऐसे में उन्हें भले ही सपा सरकार में मंत्री बनाया गया हो मगर यहां के लोगों ने उनको कभी यहां का समझा ही नहीं।

आलमबदी ने साधी चुप्पी

निजामाबाद के सपा विधायक आलमबदी आजमी इस बार चुप्पी साधे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में आलमबदी आजमी ने मुलायम को आगाह किया था कि आप तो चुनाव हार रहे हैं। इसके बाद ही मुलायम ने अपने पूरे कुनबे को आजमगढ़ भेजा और सब लोग जी-जान से जुटे। इस बार सपा के लिए स्थितियां और भी जटिल हैं। इसके बावजूद आलमबदी आजमी चुप्पी साधे हुए हैं।

अखिलेश यादव को किया आगाह

कट्टर सपाई व आजमगढ़ के पूर्व सभासद नन्दलाल यादव ने इसी 5 मई को अपने फेसबुक एकाउंट पर पोस्ट किया कि केवल तीन जातियों के अलावा एक भी जाति सपा के साथ नहीं जुड़ रही है और सभी जातियां भाजपा के साथ हैं। इसके लिए उन्होंने स्थानीय नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए अखिलेश यादव से अपील की है कि वह इस स्थिति को गंभीरता से लें और अपने लोगों को यहां पर भेजें।

सवर्णों को किया दरकिनार

एक दौर वह भी हुआ करता था जब इस जिले में बाबू शिवराम राय, विश्राम राय, त्रिपुरारी पूजन प्रताप सिंह उर्फ बच्चा बाबू सरीखे बड़े समाजवादी नेता हुआ करतेे थे। बाद के दिनों में जब समाजवादी राजनीति में यदुवंशी योद्धा हावी हुए तो सवर्णों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। यही वजह रही कि सवर्णों ने भी समाजवादी राजनीति से धीरे-धीरे दूरी बनाना शुरू कर दिया। लम्बे समय से इस जिले के किसी भी सवर्ण को सपा ने लोकसभा या विधानसभा का टिकट नहीं दिया और सरकार रहने पर लाभ का कोई राजनीतिक पद भी नहीं दिया। स्व.तहसीलदार पाण्डेेय, वयोवृद्ध हरिप्रसाद दूबे इसके उदाहरण हैं। मौजूदा समय में विवेक सिंह, आदर्श सिंह शिशुपाल सरीखे छात्र नेता समाजवादी राजनीति में तो सक्रिय हैं मगर हाशिए पर ही हैं। इस चुनाव में तो बसपा से गठबंधन के कारण अति उत्साही सपाइयों की अनर्गल बयानबाजी ने सवर्णों के साथ अन्य तबके के लोगों को समाजवादी पार्टी से और भी दूर कर दिया है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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