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मालखानों में छलक रही शराब

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Published on: 18 Oct 2018 7:53 AM GMT
मालखानों में छलक रही शराब
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर : बिहार में शराबबंदी होने के कारण बार्डर से सटे यूपी के पुलिस थानों के मालखानों में अंग्रेजी शराब की बहार है। लोकसभा चुनाव का सुरूर चढ़ता देख बिहार में शराब की मांग बढऩे के बाद यूपी में बरामदगी भी बढ़ गई है। करोड़ों रुपए कीमत की शराब से थानों के मालखाने भरे पड़े हैं। यहां छलक रही शराब को चूहे भी पी रहे हैं।

बिहार में शराबबंदी पहली अप्रैल 2016 को लागू हो गई थी। हाईकोर्ट के दखल के बाद बिहार सरकार ने नए संशोधनों के साथ 2 अक्टूूबर 2016 से दोबारा लागू किया। दो साल से अधिक की उम्र पूरी कर चुके बिहार की शराब बंदी का साइड इफेक्ट यूपी के बार्डर के जिलों में देखा जा रहा है। हरियाणा, अरुणाचल, गोवा और नेपाली शराब की तस्करी के मामले बेतहाशा बढ़े हैं, और साथ ही आबकारी विभाग की कमाई में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। पिछले दो वर्षों में गोरखपुर-बस्ती मंडल में करीब 30 करोड़ की शराब की बरामदगी हुई है। यहां यह समझना भी जरूरी है कि पुलिस या आबकारी विभाग द्वारा की जा रही बरामदगी बिहार को तस्करी कर भेजी जा रही मात्रा की बमुश्किल 5 फीसदी भी नहीं है।

बिहार से सटे कुशीनगर, देवरिया और बलिया जिले में सर्वाधिक अंग्रेजी शराब पकड़ी गई है। लखनऊ - गोरखपुर और गोरखपुर - कुशीनगर हाईवे पर भी बड़ी मात्रा में अंग्रेजी शराब की पकड़ी जा चुकी है। छावनी थाना क्षेत्र में तो बस्ती जिले की अब तक सबसे बड़ी शराब की खेप पकड़ी गई जो हरियाणा से लाई जा रही थी। इस थाने का मालखाना शराब की बोतलों से भर गया है। वहीं गोरखपुर के सहजनवा थाने में मालखाने के अलावा दारोगा, दीवान और सिपाहियों के कमरे शराब की बोतलों से भरे हुए हैं। थाने में रखी पांच करोड़ से अधिक की शराब की रखवाली भी बड़ी चुनौती है। यही हाल खोराबार थाने का है। कुशीनगर में पिछले तीन महीने में सिर्फ तरयासुजान थाने की पुलिस ने डेढ़ करोड़ से अधिक की अवैध शराब बरामद की है। यही स्थिति पटहेरवा थाने की भी है। बैरिया थाने में 10 करोड़ से अधिक की जब्त शराब रखी है। जगह कम होने के कारण पुलिसकर्मियों की बैरकों में शराब रखी गई है।

पुलिस के सामने दिक्कत है कि बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के बरामद शराब को नष्ट नहीं कर सकती है। जो मामले कोर्ट में लंबित हैं, वे सुनवाई पूरी होने के बाद ही नष्ट हो सकते हैं। लिहाजा इन थानों की पुलिस के साथ-साथ अफसर भी परेशान हैं कि बरामद शराब को कहां रखें। गोरखपुर के एसएसपी शलभ माथुर का कहना है कि पुलिस की ओर से कोर्ट में प्रक्रिया शुरू की गई है ताकि इसे नष्ट किया जा सके।

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एक थानेदार कहते हैं कि शराब पकडऩे वाली पुलिस को कुल बरामद माल का 20 फीसदी प्रोत्साहन के रूप में मिलना होता है। कानूनी पेचीदगी न हो तो रिटायरमेंट के समय मिलने वाली रकम से अधिक प्रोत्साहन राशि से ही मिल जाएगी। पुलिस कागजी लिखापढ़ी में भले ही कहीं से बरामदगी दिखाए सर्वाधिक शराब टोल प्लॉजा पर पकड़ी जा रही है। बीते 24 जून को खोराबार के करजहां बाईपास से 25 लाख कीमत की शराब पकड़ी गई। 28 जुलाई को कालेसर फोरलेन पर अलग-अलग वाहनों में एक करोड़ से अधिक की शराब बरामद हुई। मई में तेनुआ टोल प्लाजा मेंचेकिंग में 50 लाख रुपए की शराब बरामद हुई थी।

चूहे गटक रहे मालखानों में रखी शराब!

मालखानों में रखी शराब चूहों गटक रहे हैं, यह बात भले ही गले से नीचे नहीं उतरे लेकिन पुलिस वालों के पास मालखानों में कम हुई शराब के बचाव को लेकर यही तर्क बचा है। दरअसल, अंग्रेजी शराब की बोतल की ढक्कन प्लास्टिक की होती है। वहीं हरियाणा, गोवा, पंजाब आदि से आने वाली शराब प्लास्टिक की बोतलों में भी आती है। देसी शराब भी प्लास्टिक की बोतल और पाउच में आती है। ऐसे में ढक्कन और प्लास्टिक की बोतलों को कुतरने की संभावना प्रबल है। पुलिसवालों का दावा है कि बोतलों को चूहों द्वारा कुतरने से बड़ी मात्रा में शराब बर्बाद हो रही है। गोरखपुर के विभिन्न थानों में 80 लाख से ज्यादा की शराब पीने का आरोप चूहों पर है। एसपी नार्थ रोहित सिंह सजवान का कहना है कि जांच के बाद सामने आ सकेगा कि पूर्व में कितनी शराब बरामद हुई थी और कितनी शराब थानों में सुरक्षित बची हुई है। इतना जरूर है कि प्लास्टिक की बोतलें और प्लास्टिक के ढक्कन को चूहे काट देते हैं, इससे शराब बहकर नष्ट हो जाती है। इस समस्या से निपटने का उपाय खोजा रहा है।

एक ट्रक पार होते ही 8 से 10 लाख की कमाई

हरियाणा की शराब एक ट्रक में भर कर बिहार बार्डर पार होते हुए तस्करों की 8 से 10 लाख की कमाई हो जाती है। एक ट्रक में करीब 400 क्रेट शराब आती है। जिसकी हरियाणा में कीमत 7 से 8 लाख होती है लेकिन बिहार पहुंचते-पहुंचते इसकी कीमत 24 से 26 लाख रुपए पहुंच जाती है। विभिन्न कैरियर, ट्रक और रास्ते का खर्च आदि मिलाकर करीब 5 से 7 लाख रुपए खर्च होते हैं। तस्करी के ट्रकों को बार्डर तक पहुंचाया जाता है। जहां गोदामों में इसे रखकर छोटी-छोटी गाडिय़ों से बिहार के अंदर पहुंचाया जाता है।

शराब की तस्करी के लिए असेम्बल हो रही गाडिय़ां

तमाम थानों में पकड़ी गई शराब के वाहनों के मालिकों को तलाशना मुश्किल हो रहा है। वजह ये है कि तस्करी में इस्तेमाल होने की गाडिय़ां असेम्बल की जाती हैं। बस्ती जिले के छावनी थानेदार अरविन्द कुमार शाही बताते हैं कि एक जब्त गाड़ी के मालिक का पता लगाया गया तो नंबर प्लेट, इंजन नंबर, चेसिस नंबर सब कुछ फर्जी निकला। दरअसल, तस्कर कबाड़ गाडिय़ों के पार्ट निकाल कर चलने लायक गाड़ी असेम्बल करवा लेते हैं। ऐसे ट्रक बमुश्किल दो से तीन लाख रुपए में तैयार हो जाते हैं। अगर तीन गाडिय़ों में एक पकड़ी भी जाए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता।

निजी गोदामों में रखी जाती है शराब

आबकारी विभाग की प्रवर्तन टीम अवैध शराब की बड़ी खेप पकड़ती है तो उसे थानों में रखवाती है। लेकिन छोटी-छोटी बरामदगी को निजी गोदामों में रखवाती है क्योंकि आबकारी विभाग के पास गोरखपुर में एक भी गोदाम नहीं है। गोरखपुर के जिला आबकारी अधिकारी वीपी सिंह का कहना है कि गोदाम नहीं होने से दिक्कत है। कच्ची शराब का मामला तीन महीने में निस्तारित होने से उसे नष्ट कर दिया जाता है। लेकिन अंग्रेजी शराब के मामले आइपीसी की धारा में दर्ज होते हैं। जिनका फैसला आने में 4 से 5 साल लग जाता हैं। आबकारी विभाग का कार्यालय जल्द ही नये भवन में शिफट होगा। पुरानी बिल्डिंग को शराब के गोदाम के रूप में प्रयोग किया जाएगा।

बिहार के बल पर आबकारी विभाग भी मालामाल

बिहार में शराब बंदी के चलते बार्डर के जिलों में आबकारी विभाग की चांदी हो गई है। बार्डर से सटे खडडा, तरयासुजान, लार रोड, पनियहवा आदि इलाकों में तेजी से रेस्टोरेंट और शराब पिलाने के ठिकाने तेजी से खुले हैं। देशी की जिस शराब की दुकान के लिए कारोबारी 3 लाख देने को तैयार नहीं होते थे, वह इस बार 40 लाख रुपये में उठे हैं। पिछले पहली अप्रैल से बदले वित्तीय वर्ष में गोरखपुर और देवरिया जिले ने आबकारी के मामले में रिकार्ड बनाया है। गोरखपुर में देसी शराब का कोटा 60 फीसदी तक बढ़ गया है। चालू वित्तीय वर्ष में देसी शराब का कोटा अब 1 करोड़ 9 लाख लीटर हो गया है। देवरिया में भी आबकारी विभाग की चांदी है। लक्ष्य के सापेक्ष 115 फीसदी अधिक शराब की बिक्री के चलते देवरिया में शराब की दुकानों में भी इजाफा कर दिया गया है। देवरिया में देशी की 164, अंग्रेजी की 82, बीयर की 83 व माडल शाप की पांच दुकानें हैं। चालू वित्तीय सत्र में 22 दुकानें बढ़ाई गई हैं। कमाई के मामले में देवरिया का प्रदेश में तीसरे स्थान पर पहुंच चुका है। देवरिया ने बीते वित्तीय वर्ष में 301 करोड़ के सापेक्ष करीब 350 करोड़ की शराब की बिक्री की थी। अब ये लक्ष्य करीब 400 करोड़ कर दिया गया है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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