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Language War: भाषा विवाद के बीच स्टालिन सरकान ने हटाया ₹ का सिंबल, बजट में ரூ का किया यूज

भाषा विवाद के बीच, तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राज्य बजट में रुपये के प्रतीक को तमिल अक्षर 'ரூ' से बदल दिया है।

Newstrack          -         Network
Published on: 13 March 2025 2:48 PM IST
Tamil Nadu CM MK Stalin
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Tamil Nadu CM MK Stalin (Photo: Social Media)

तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए राज्य के बजट में रुपये के प्रतीक को तमिल अक्षर 'ரூ ' से बदल दिया है। यह फैसला तब आया है जब राज्य और केंद्र सरकार के बीच भाषा विवाद गहरा चुका है, खासकर हिंदी को लेकर। दरअसल, तमिलनाडु में यह मुद्दा लंबे समय से उठता रहा है कि हिंदी को राज्य पर थोपने का प्रयास किया जा रहा है, और इस पर मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कई बार विरोध जताया है।

यह कदम भारतीय करेंसी के प्रतीक ₹ को अस्वीकार करने का पहला उदाहरण है, जबकि ₹ का प्रतीक 2010 में आधिकारिक रूप से अपनाया गया था। उस समय, तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसे भारतीय संस्कृति और लोकाचार को ध्यान में रखते हुए पेश किया था। इसके लिए एक डिजाइन प्रतियोगिता आयोजित की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप यह प्रतीक चुना गया था।

अब, तमिलनाडु सरकार ने इसे अपनी भाषा और सांस्कृतिक पहचान के साथ मेल खाते हुए एक नया प्रतीक पेश किया है। यह निर्णय हिंदी के राष्ट्रीय प्रभाव को लेकर जारी विवाद और विशेष रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के त्रि-भाषा फार्मूले के विरोध में लिया गया है। तमिलनाडु सरकार ने NEP के इस पहलू को लागू करने से मना कर दिया था, जो राज्य के स्थानीय भाषा पर संभावित प्रभाव डालता।

खत्म होती जा रही प्राचीन भाषाएं

एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "अखंड हिंदी पहचान की कोशिश के कारण प्राचीन भाषाएं खत्म हो रही हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश कभी भी हिंदी भाषी क्षेत्र नहीं थे, लेकिन अब उनकी असली भाषाएं एक प्रतीक बनकर रह गई हैं।"

इन भाषाओं के नष्ट होने का आरोप

स्टालिन ने अन्य राज्यों के लोगों से अपील करते हुए कहा, "क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि हिंदी भाषा ने कितनी अन्य भाषाओं को लील लिया है? मुंडारी, मारवाड़ी, कुरुख, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, कुरमाली, खोरठा, मैथिली, अवधी, भोजपुरी, ब्रज, कुमाऊंनी, गढ़वाली, बुंदेली और अन्य कई भाषाएं अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।"

Shivam Srivastava

Shivam Srivastava

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