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AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार, SC ने नए सिरे से निर्धारण के लिए बनाई 3 जजों की बेंच
AMU Minority Status: सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ पर ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है।
AMU Minority Status: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। कोर्ट का कहना है कि एएमयू का अल्पसंख्यक का दर्जा बरकरार रहेगा। कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुना दिया है। आज सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की बेंच ने यह ऐतिहासिक फैसला लिया है। यह फैसला 4:3 से पारित हुआ। जहाँ चार जजों का मत एक था वहीं 3 जजों ने डिसेंट नोट दिया है। मामले पर सीजेआई और जस्टिस पारदीवाला एकमत हैं। वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का फैसला अलग है।
तीन जजों की बनेगी नई बेंच
अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय को लकेर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला चार और तीन जजों की राय से सुना दिया है। आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय को अल्पसंख्यक बने रहने के लिए जो दायरा बनेगा उसके लिए तीन जजों की नई बेंच बनाई जाएगी। नई बेंच यह तय करेगी कि AMU का दर्जा क्या होगा। बता दें कि आज अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय कर दिया कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान बना रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 1967 को किया ख़ारिज
अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज को सर सर सैयद अहमद खान ने 1875 में बनवाया था। जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था। बाद में, 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम 'अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' रखा गया। AMU के अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिलीं कानूनी चुनौतियों ने इस विवाद को जन्म दिया। आज कोर्ट ने 1967 फैसले को बदल दिया है जिसमें कहा गया था कि एएमयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. लिहाजा इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता।
अल्पसंख्यक दर्जे का केंद्र ने किया विरोध
बता दें की 2016 में केंद्र सरकार ने अपनी ओर से हटते हुए AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का विरोध किया है। केंद्र का इस मामले को लेकर कहना है कि AMU कभी भी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था. केंद्र का कहना है कि 1920 में जब AMU को स्थापित किया गया था, तो यह एक साम्राज्यवादी कानून के तहत किया गया था, और तब से यह मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित नहीं किया गया। जिसके बाद अपना पक्ष रखते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि विश्वविद्यालय का प्रशासन कौन करता है। उन्होंने आगे कहा कि अनुच्छेद 30 (1) अल्पसंख्यकों को प्रशासन के मामले में स्वतंत्रता देता है और यह संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे को प्रभावित नहीं करता।