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कुछ ऐसा था अंग्रेजों का जमाना, जिसकी आमदनी होती थी दो रुपये महीना

विश्‍व प्रसिद्ध गुरु नगरी न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्‍वपूर्ण है। 1839 में शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के निधन के करीब 10 वर्ष बाद 30 मार्च 1849 में पूरे पंजाब पर ब्रिटिश हुकूमत कायम हो गई।

Roshni Khan
Published on: 23 Jun 2020 9:36 AM GMT
कुछ ऐसा था अंग्रेजों का जमाना, जिसकी आमदनी होती थी दो रुपये महीना
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दुर्गेश मिश्र

अमृतसर: विश्‍व प्रसिद्ध गुरु नगरी न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्‍वपूर्ण है। 1839 में शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के निधन के करीब 10 वर्ष बाद 30 मार्च 1849 में पूरे पंजाब पर ब्रिटिश हुकूमत कायम हो गई। पंजाब को अपने अधिकार में लेने के लिए अंग्रेजों को चार लड़ाइयां लड़नी पड़ी। लेकिन ये चारों युद्ध अनिर्णायक रहे। पाचवां और अंतिम युद्ध सबराओं का हुआ, जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई। इसके बाद फरवरी 1846 ब्रिटिश सरकार ने लाहौर पर अधिकार स्‍थापित कर लिया। इतिहास में इस युद्ध को 'तोपों वाली युद्ध' के नाम से भी जाना जाता है।

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1866 में बना था टाऊनहाल, अब है पार्टिशन म्‍यूजियम

पंजाब पर अपना आधिपत्‍य स्‍थापित करने के बाद अंग्रेज सरकार ने सन 1849 में अमृतसर को जिला बनाया और यहां पर अपना पहला डिप्‍टी कमिश्‍नर एल सांडर्स को नियुक्‍त किया। सांडर्स का कार्यकाल 1852 तक रहा। इसी बीच अमृतसर को 1850 में टाउन कमेटी के अधीन लाया गया। इसके साथ ही अंग्रेज अधिकारियों ने अमृतसर में स्‍थायी निवास और छावनी स्‍थापित कर इसका विकास अपने अनुरूप करवाना शुरू कर दिया। इस दौरान 1866 में टाऊनहाल का निर्माण करवाया। हलांकि यहां पर महाराजा रणजीत सिंह की सास महारानी सदा कौर की हवेली थी, जिसे गिराकर अंग्रेजों ने टाऊन हाल का नींव रखा था। शहर के मध्‍य स्थित इस टाऊनहाल में प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालय बनाए गए। ब्रिटिश वास्‍तुकला की इस अप्रतीम विल्डिंग में म्‍युनिसिपल का दफ्तर भी बनाया गया। इस जगह को लोग घंटाघर, टाऊनहाल और नगर निमगम कार्यालय के तौर पर लोग जानते थे। जो वर्तमान पार्टिशन म्‍यूजियम के नाम से जाना जा रहा है।

बिजली, पानी व सड़की थी पहली प्राथमिकता

गुप्ता के मुताबिक भारत में म्यूनिसिपल एक्ट 1911 में आया था और इसके तहत बिजली, पानी सडकें और अंग्रेज सरकार की पहली प्राथमिकता थी। वे कहते हैं कि पहले अमृतसर 1850 में टाउन कमेटी के अधिन था। इसके बाद 1868 में अंग्रेजों ने अमृतसर को नगर निगम बनाया और इसे नौ वार्डों में बांटा, जिनसे नौ पार्षद चुन कर आते थे। इनका कार्यकाल एक साल का होता था।

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10वीं पास व्‍यक्ति ही करता था मतदान

पूर्व संयुक्त कमिश्‍नर कहते हैं कि उस दौर में मताधिकार का हक सिर्फ उन्हीं लोगों को था जो दसवीं पास हो या जिनकी आमदनी दो रुपए माहवार हो या फिर उनकी प्रॉपर्टी हो। वे कहते हैं कि उस समय पानी का शुल्‍क लिया जाता था। यही नहीं अमृतसर के तारावाला नहर पर बांध बनाकर बिजली भी तैयारी की जाती थी जिसे नगर निगम अमृतसर सप्लाई करता था।

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