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 अनुप्रिया पटेल की अनदेखी पर समर्थक हुए नाराज

seema
Published on: 7 Jun 2019 6:49 AM GMT
 अनुप्रिया पटेल की अनदेखी पर समर्थक हुए नाराज
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अनुप्रिया पटेल की अनदेखी पर समर्थक हुए नाराज

आशुतोष सिंह

वाराणसी: 2014 के मुकाबले अबकी बार मोदी सरकार और ज्यादा ताकतवर होकर देश के सियासी फलक पर उभरी है, लेकिन उसकी ताकत के साथ ही ये सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या बीजेपी को अपनी जीत का जरुरत से ज्यादा गुरूर हो गया है? क्या अब उसे अपने सहयोगियों की जरुरत नहीं? बीजेपी भले ही ऊपरी तौर पर सहयोगियों को साथ लेकर चलने की बात करती है, लेकिन नई सरकार के गठन में तो ऐसा नहीं लग रहा है। सरकार में शामिल होने को लेकर पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार नाराज हुए और अब यूपी में बीजेपी की सहयोगी अपना दल की भी नाराजगी की खबरें आ रही हैं। हालांकि नीतीश कुमार की तरह अपना दल सुप्रीमो अनुप्रिया पटेल ने अभी तक अपनी नाराजगी तो नहीं जाहिर की है, लेकिन वाराणसी-मिर्जापुर और उसके आसपास के जिलों में जहां अपना दल का सियासी जनाधार मजबूत है, वहां के कार्यकर्ता बीजेपी को लेकर गुस्से में जरूर हैं। अपना दल के कार्यकर्ता मोदी मंत्रिमंडल में अनुप्रिया पटेल को शामिल न करने का फैसला पचा नहीं पा रहे हैं। वो खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।

मिर्जापुर से दूसरी बार सांसद चुने जाने के बाद यह माना जा रहा था कि अनुप्रिया मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होंगी और उन्हें स्वतंत्र प्रभार के तहत किसी मंत्रालय का जिम्मा दिया जाएगा। अनुप्रिया के समर्थकों में भी उत्साह था। सबकी नजरें अमित शाह के फोन कॉल पर टिकी थी। खबरों के मुताबिक अमित शाह ने अनुप्रिया पटेल को फोन किया और उन्हें सरकार में शामिल होने का ऑफर दिया। इस बीच अगली सुबह अनुप्रिया पटेल मोदी की टी पार्टी में पहुंचीं, लेकिन जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई कि उन्हें राज्यमंत्री का ओहदा दिया जा रहा है तो वो भड़क उठीं। उन्होंने सीधे कह दिया कि अगर देना है तो स्वतंत्र प्रभार दें वरना रहने दें। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी आलाकमान ने उनकी इस मांग को दरकिनार कर दिया। इस बात को लेकर अनुप्रिया पटेल बेहद नाराज हुईं। अनुप्रिया पटेल ने तो शपथग्रहण समारोह के बहिष्कार की भी धमकी दे दी, लेकिन अंतिम वक्त पर बीजेपी के कुछ नेताओं ने उन्हें मनाया। अनुप्रिया पटेल को मंत्री ना बनाने के फैसले को लेकर उनके समर्थकों में जबरदस्त रोष है। मिर्जापुर में अपना दल के जिलाध्यक्ष रमाशंकर पटेल के मुताबिक हम लोगों को उम्मीद थी कि मोदी मंत्रिमंडल में हमारी नेता अनुप्रिया पटेल को जरूर जगह मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे न सिर्फ अपना दल के कार्यकर्ता बल्कि मिर्जापुर की जनता को भी निराशा हाथ लगी है।

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क्या इस बात की मिली अनुप्रिया को सजा

उत्तर प्रदेश के अंदर अपना दल (एस) बीजेपी का महत्वपूर्ण सहयोगी दल है। पार्टी जरूर छोटी है, लेकिन लेकिन इसका जनाधार पूर्वांचल सहित यूपी की कई सीटों पर है। 2014 के चुनाव में बीजेपी और अपना दल के बीच समझौता हुआ था। अपना दल ने मिर्जापुर के अलावा प्रतापगढ़ की सीट जीती थी। इसके बाद अनुप्रिया पटेल को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने का मौका मिला था। दोनों पार्टियों के बीच सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अपना दल ने बीजेपी को रेड सिग्नल दिखाना शुरू कर दिया। अपना दल का आरोप था कि यूपी में होने वाले कार्यक्रमों में उनकी पार्टी को अहमियत नहीं दी जा रही है। खबरों के मुताबिक अनुप्रिया यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह से किसी बात को लेकर नाराज थीं। हालांकि इसके पीछे की कहानी कुछ और है। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा था, दोनों दलों के बीच खटास बढ़ती जा रही थी।

एक समय तो ऐसा आया कि अपना दल ने बीजेपी के कार्यक्रमों के बहिष्कार की धमकी तक दे दी। इसी बीच खबर आई कि अनुप्रिया पटेल और प्रियंका गांधी की गुप्त मुलाकात हुई है। कहा जाता है कि यह खबर जानबूझकर उड़ाई गई थी और इसके पीछे अपना दल की एक सोची समझी रणनीति थी। टिकटों की हिस्सेदारी में अपना दल पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें मांग रहा था, लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी। पूर्वांचल में प्रियंका गांधी का हश्र देख बीजेपी ने भी चुप्पी साध ली। आखिरकार थक हारकर अनुप्रिया पटेल 2014 के ही फॉर्मूले पर चुनाव लडऩे को राजी हो गईं। मिर्जापुर के अलावा उनकी पार्टी को राबट्र्सगंज की सीट दी गई। खबरों के मुताबिक अनुप्रिया पटेल की प्रेशर पॉलिटिक्स को बीजेपी आलाकमान ने गंभीरता से लिया था और तभी से वह खार खाए हुए था। यही कारण है कि बीजेपी ने अपना दल को सिर्फ राज्यमंत्री की सीट ऑफर की, जिसे अनुप्रिया पटेल ने अपना तौहिन समझा।

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वेट एंड वॉच की मुद्रा में अनुप्रिया

अनुप्रिया पटेल का मंत्रिमंडल में शामिल ना होना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। सियासी जानकारों के मुताबिक मोदी सरकार का यह फैसला अपना दल सरीखे छोटे दलों के लिए खतरे की घंटी की तरह है। बीजेपी ने सुभासपा को चुनाव से पहले ही समेट दिया था और अब उसके निशाने पर अपना दल है। दरअसल मोदी और अमित शाह के युग के उदय के बाद बीजेपी में एक नए तरह की राजनीति देखने को मिल रही है। इस राजनीति में खासतौर से गैर यादव पिछड़ा वर्ग का प्रभुत्व रहा है। लगभग 35 फीसदी के आसपास वोटबैंक रखने वाला यह वर्ग बीजेपी के साथ है और इसी वर्ग के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं अनुप्रिया पटेल। पिछड़ा वर्ग खासतौर से कुर्मी वोटबैंक में अनुप्रिया पटेल प्रभावशाली नेता बनकर उभरी हैं। कई जिलों में तो कुर्मी वोटबैंक निर्णायक भूमिका अदा करते आ रहे हैं। विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल की वजह से कुर्मी जाति ने बीजेपी को हाथों हाथ लिया। ऐसे में बीजेपी नहीं चाहती है कि किसी एक जाति पर किसी एक दल का आधिपत्य हो। लिहाजा अनुप्रिया पटेल की मांगों के सामने सरेंडर करने के बजाय बीजेपी आक्रामक है। दूसरी तरफ अनुप्रिया पटेल अब चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती। केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की सरकार है। अनुप्रिया पटेल फिलहाल वेट एंड वॉच की रणनीति पर चल रही हैं। सियासी जानकार बता रहे हैं कि अगर अनुप्रिया पटेल समझौते के मूड में आती हैं तो बीजेपी उनके पति आशीष सिंह को योगी मंत्रिमंडल में जगह दे सकती है, लेकिन ये सबकुछ दोनों पार्टियों के रुख के ऊपर निर्भर करता है।

अर्श से फर्श पर पहुंचे ओमप्रकाश राजभर

अनुप्रिया पटेल के अलावा बीजेपी के एक और साझीदार रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का क्या हश्र हुआ है, ये हर कोई देख रहा है। चुनाव से पहले बात-बात में बीजेपी को आंखें दिखाने वाले ओमप्रकाश राजभर अर्श से फर्श पर पहुंच गए हैं। बीजेपी से ना गठबंधन हुआ और न ही उनकी पार्टी कोई कमाल कर पाई। यूपी सरकार से उनकी बर्खास्तगी के अलावा निगम में जगह पाने वाले करीबियों को भी सरकार ने पैदल कर दिया। राजभर को लखनऊ में बंगला भी खाली करना पड़ा। कुल मिलाकर मोदी सरकार बनने के साथ ही ओमप्रकाश राजभर के बुरे दिन शुरू हो गए हैं। बीजेपी नेताओं ने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि किसी भी वक्त ओमप्रकाश राजभर की पार्टी टूट सकती है। उनके तीन विधायक बीजेपी के संपर्क में है। इस बीच लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के साथ उत्तर प्रदेश में औपचारिक रूप से संबंध खत्म हो जाने के बाद सुभासपा ने अब आगे की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी का अगला लक्ष्य अब राज्य में होने वाले आगामी उपचुनाव और निकाय चुनाव हैं।पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरविंद राजभर के मुताबिक सुभासपा चुनावों की हार से उबरकर आगे के लिए कमर कस चुकी है। पार्टी के सामने अब विधानसभा उपचुनाव और जिला पंचायत चुनाव हैं। अरविंद राजभर का कहना था कि पार्टी ने जनता से जुड़े मुद्दों के लिए ही कुर्सी की परवाह नहीं की और आगे भी शिक्षा सुधार, आरक्षण में बंटवारा, अलग पूर्वांचल राज्य की मांग, शराबबंदी, विधायक, सांसद, मंत्रियों का वेतन व पेंशन बंद किए जाने जैसी मांगों के लिए पार्टी का आंदोलन जारी रहेगा। आगामी चुनावों के लिए क्या सुभासपा किसी के साथ गठबंधन करेगी, इस बारे में अरविंद राजभर ने अभी कुछ साफ नहीं किया। हालांकि उन्होंने चुनावों में गठबंधन की अहमियत को जरूर स्वीकार किया।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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