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अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive: पानी पर टिकी पंजाब की सियासत

Rishi
Published on: 18 Aug 2017 4:01 PM IST
अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive: पानी पर टिकी पंजाब की सियासत
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दुर्गेश पार्थसारथी

चंडीगढ़। सेहत, शिक्षा व रोजगार जैसी मुख्य मुद्दों को छोड़ आजकल पंजाब की सियासत पानी पर अटक गई है। पानी के बंटवारे से शुरू हुई 2017 की सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है। 2017 के पंजाब विधान सभा की नींव भी एसवाईएल यानी सतलुज यमुना लिंक नहर के पानी के बंटवारे के मुद्दे पर ही रखी गई थी। उस समय यह अकाली भाजपा, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के लिए मुख्य राजनितिक मुद्दा भी था।

इस मुद्दे को लेकर साल 2016 में अमृतसर के तत्कालीन सांसद रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जहां अपने संसदीय सीट से त्यागपत्र दे दिया था, वहीं शिरोमणि अकाली दल ने भी इसे अपनी राजनितिक प्रतिष्ठा का सवाल बनाते हुए आनन-फानन में कई फैसले लिए और नहर के लिए अधिग्रहित की गई जमीन चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले ही किसानों को वापस कर दी थी, चूंकि अब पंजाब में कांग्रेस की सरकार बन चुकी है फिर भी यह मुद्दा छाया हुआ है।

क्या है एसवाईएल नहर

दर असल एसवाईएल नहर अर्थात सतलुज यमुना लिंक नहर की आधारशिला 31 अक्टूबर 1966 को पंजाब के पुनर्गठन यानि हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दो नदियां को आपस में जोडऩे के लिए रखा था। 214 किलो मीटर लंबी यह परियोजना पंजाब व हरियाणा के जल बंटवारे को लेकर रखी गई थी। लेकिन यह परियोजना पूरी होने की बजाय उलझती गई। समझौते के मुताबिक 112 किलोमिटर नहर की खुदाई पंजाब सरकार को करवानी थी, जबकि 92 किलो मीटर लंबी नहर की खुदाई हरियाणा सरकार को। समझौते के तहत हरियाणा सरकार ने तो अपने हिस्से का 92 किमी नहर की खुदाई पूरी कर ली। लेकिन पंजाब के हिस्से में आती नहर की खुदाई में पेच फंस गया। साल 2002 यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।

उस समय सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को नहर की खुदाई जारी रखने के निर्देश दिए। इसी बीच 2003 में पंजाब सरकार खुदाई के इस दायित्व से मुक्त होने की सोची और वर्ष 2004 में पंजाब राज्य विधानमंडल ने भूमि को डिनोटिफाई करने के लिए पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 पारित कर दिया। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक प्रेसिडेंशियल रिफरेंस दी गई और मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई शुरू की।

इसी साल बादल सरकार पंजाब विधानसभा में दोबारा एक विधेयक पास कर किसानों को अधिग्रहित भूमि वापस करने की बात की गई। हरियाणा सरकार की गुहार पर सुप्रीम कोर्ट ने विधेयक पर यथा स्थिति का आदेश दिया। इन 31 सालों में नहरी परियोजना का लगभग 85 प्रतिशत कार्यपूरा हो चुका है। जबकि हरियाणा सरकार ने अपने हिस्से की नहर की खुदाई पूरी कर ली है।

कैप्टन के बयान से शुरू हुई सियासत

2017 विधान सभा चुनाव जैसे -जैसे नजदीक आ रहा था वैसे-वैसे सूबे की सियात गर्माती जा रही थी। इसी बीच अमृतसर से कांग्रेस के सांसद रहे कैप्टन अमरेंदर सिंह ने यह कहते हुए कहा कि सतलुज के पानी पर सिर्फ और सिर्फ पंजाब का हक, इसका एक बूंद पानी किसी और राज्य को नहीं देंगे यानी सतलुज यमुना लिंक नहर जल बंटवारे का वह विरोध कर रहे हैं। कैप्टन की घोषणा के साथ ही राज्य की सियासत गर्मा गई और पंजाब विधानसभा कांग्रेस 42 विधायकों ने एक साथ इस्तीफा दे दिया।

इस बीच कांग्रेस के बाउंसर पर छक्का मारने के लिए अकाली-बीजेपी सरकार ने 16 नवंर 2016 को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया, लेकिन कांग्रेसी विधायकों ने यह कहते हुए आने से इंकार कर दिया कि वे अब विधान सभा के सदस्य नहीं हैं ओर इस सत्र से उनका कोई मतलब नहीं है।

अकाली भी नहीं रहे पीछे

इस बीच अकाली दल के महासचिव परमिंदर सिंह ढिंढसा ने कहा कि वह व उनकी पार्टी किसी भी हाल में सतलुज यमुना लिंक नहर का निर्माण नहीं होने देगी। नहर निर्माण के लिए उन्होंने कांग्रेस को दोषी ठहराते हुए कहा कि कैप्टन राज्य को लोगों को बताएं कि सतलुज-यमुना लिंक नहर के निर्माण के समय कांग्रेस ने बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाए थे और उसके उद्घाटन समारोह में भी शामिल हुए थे। पंजाब में शुरू हुई इस राजनीति के बीच हरियाणा सरकार ने लंबी दूरी की बसों को पंजाब में जाने पर ब्रेक लगा दिया था। इसके साथ पंजाब ने नहर निर्माण के लिए हरियाणा से अब तक मिली 192 करोड़ रुपये की राशि को भी लौटा दिया है।

नहर की अहमियत

इस नहर के निर्माण से हरियाणा के दक्षिणी हिस्से की बंजर जमीन को सींचा जा सकेगा। हरियाणा ने नहर के अपने हिस्से का निर्माण 1980 में करीब 250 करोड़ रुपये खर्च कर पूरा कर लिया था। पंजाब में नहर के निर्माण पर आने वाले खर्च का कुछ हिस्सा हरियाणा को देना था। हरियाणा ने 1976 में ही एक करोड़ रुपये की पहली किश्त पंजाब सरकार को दी थी लेकिन पंजाब ने नहर बनाने की दिशा में कोई काम नहीं किया। विवाद गहराया तो दोनों राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं।

पंजाब ने रोका निर्माण

एसएस बरनाला के नेतृत्व वाली अकाली दल सरकार ने 700 करोड़ की लागत से नहर का 90 फीसदी काम पूरा भी किया लेकिन 1990 में सिख उग्रवादियों ने जब दो वरिष्ठ इंजीनियरों और नहर पर काम कर रहे 35 मजदूरों को मार डाला तो इसका निर्माण कार्य बंद कर दिया गया। साल 1996 में हरियाणा ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए मांग की कि पंजाब नहर का निर्माण कार्य पूरा दिया।

नहर के मुद्दे पर हरियाणा व पंजाब में तलवरें अब भी खिंची हैं। एक तरफ जहां हरियाणा सरकार ने एसवाईएल का निर्माण कराने के सुप्रीमकोर्ट के दो आदेशों को लागू करने और नहर का निर्माण कराने की मांग की है, वहीं पंजाब सरकार ने कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में व्यवहारिक परेशानियां बताते हुए अपना तर्क दिया है कि जल बंटवारे का ये समझौता 1981 का है और तब से अब की स्थिति में काफी अंतर है। अब पंजाब में पानी पंजाब की जरूरत से भी कम है। वहीं इंडियन नेशनल लोक दल के नेता अभय चैटाला का कहना है कि हरियाणा के किसानों की स्थिति इस वक्त बहुत खराब है।

दो साल की जगह लगे बत्तीस वर्ष, फिर भी काम अधूरा

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की। तीनों मुख्यमंत्रियों ने एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते के तहत पंजाब को नहर निर्माण कार्य दो साल में पूरा करना होगा और दोनों ही पक्ष न्यायालय से याचिका वापस लेंगे। पंजाब ने एक त्रिपक्षीय समझौते के बाद नहर पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया। लेकिन उस वक्त भी दोनों पक्षों की याचिकाएं अदालत में लंबित रहीं। इस बीच संत हरिचंद्र सिंह लोंगोवाल के नेतृत्व में नहर के खिलाफ शिरोमणि अकाली दल ने एक आंदोलन शुरू किया।

अगस्त 1982 तक यह विरोध और आंदोलन एक धर्म युद्ध में तब्दील हो गया और साल 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और लोंगोवाल ने पंजाब समझौते पर हस्ताक्षर किये। इसके मुताबिक अगस्त 1986 तक नहर निर्माण का कार्य पूरा किया जाएगा और शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश के नेतृत्व वाला प्राधिकरण शेष पानी पर पंजाब और हरियाणा की हिस्सेदारी तय करेगा।

जमीन का इंतकाल तो हुआ पर लिया किसी ने नहीं

पंजाब विधान सभा चुनाव से पहले मौजूदा अकाली सरकार ने रातों-रात नहर के लिए अधिग्रहित की गई जमीन का इंतकाल कर 21 हजार किसानों को वापस कर दी, लेकिन इस वाकए के सात माह बाद भी किसी किसान ने जमीन का कब्जा नहीं लिया। किसानों का कहना है कि उन लोगों को जमीन नहीं बल्कि खेती के लिए पानी चाहिए। जल स्तर कम होने के कारण सिंचाई के लिए परेशानी हो रही है।

उल्लेखनीय है कि नहर के लिए पंजाब में 122 किमी का जो क्षेत्र आता हैं वह जिला रोपड से पटियाला, फतेहगढ़ साहिब हो कर हरियाणा की सीमा में जाता है। इस क्षेत्र में 30 किमी. हिस्सा पटियाला, 61 किमी. रोपड व 23 किलोमिटर का एरिया फतेहगढ़ जिले में पड़ता है।

किस जिले में कितनी जमीन की गई थी एक्वायर

पटियाला में 46 गांवों के 150 किसानों की करीब 1520 एकड़ जमीन। फतेहगढ़ जिले में522 एकड़ व रोपड जिले में 91 गांवों के किसानों की 1478 एकड़ जमीन एसवाईएल प्रोजेक्ट तहत एक्वार की गई थी।



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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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