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अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive: क्या बादल ने किसानों से छल किया था?
दुर्गेश पार्थसारथी
चंडीगढ़। हर बार किसान ही क्यों छले जाते हैं। कभी बरसात तो कभी सूखा, कभी व्यापारी तो कभी बैंक। यहां तक कि सरकारें भी किसानों को छलने से बाज नहीं आ रही हैं। कभी कर्ज माफी का सपना दिखा कर तो कभी हर्जाने का लालच देकर। बेचारा किसान यह उम्मीद लगाए बैठा रहता है कि चलो इस सरकार में उसकी सुनवाई नहीं हुई तो शायद अगली सरकार में उसकी सुन ली जाय। यानि इसी उम्मीद में सरकारें आती और जाती रहती हैं, लेकिन बेचारा किसान समस्याओं की बोझिल गठरी ढोता ही रहता है ठीक उसकी तरह जैसे तपते रेगिस्तान में पानी की तलाश में हिरण इधर-उधर भगते हुए तड़प-तड़प कर मर जाता है।
इसी को कहते हैं मृगमरीचिका। यानि पंजाब के किसान भी इसी मृगमरीचिका में फंसे हुए हैं कि शायद उनका कर्ज माफ हो जाए, लेकिन दिन गिनते-गिनते रेगिस्तान में फंसे मृग की तरह वह भी जान देता हैं और कर्ज का ब्याज बढ़ता ही जा रहा है।
ऐसी ही एक बानगी पिछले दिनों सूबे के सरहदी जिला तरनतारन में देखने को मिली। यहां के किसानों को न तो मौसम ने छला और न ही किसी और ने बल्कि उनके भरोसे को तोड़ा खुद को किसानों का हितैषी कहलाने वाली पूर्ववर्ती बादल सरकार ने।
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन बादल सरकार ने भारत पाकिस्तान की सरहद पर तारबंदी की जद में आने वाले किसानों की 21 हजार 500 एकड़ उपजाऊ जमीन के बदले विधान सभा चुनाव के कुछ माह पहले सरहदी किसानों को मुआवजे के रूप में 20 करोड़ पचास लाख रुपये का चेक बांटा था। लेकिन इनमें से करीब 4 करोड़ रुपये का चेक बाउंस हो गया। उस समय सरकार ने यह कहते हुए सीमावर्ती पांच जिलों के किसानों को यह राशि दी थी कि यह मुआवजा साल 2015 का है।
यह खुलासा पंजाब बॉर्डर एरिया किसान वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष रघुबीर सिंह ने पिछले दिनों किया था। उन्होंने बताया कि बादल सरकार ने पठानकोट, गुरदासपुर, तरनतारन, फाजिल्का, फिरोजपुर व अमृतसर जिलों के जिलाधिकारियों को दी थी, जिसमें फाजिल्का के जिलाधिकारी ने यह राशि किसानों को देने की बजाया वृद्धा पेंशन के रूप में बांट दी।
कहीं वोट के लिए तो नहीं छला किसानों को
रघुबीर सिंह ने कहा कि सरकार जानती थी कि खजाने की हालत माली है। फिर भी उसने वोट बैंक के लिए 20 करोड़ का मुआवजा बांटा। उन्होंने कहा कि 20 करोड़ रुपये के मुआवजे की रकम से करीब 4 करोड़ रुपये के चेक बाउंस हो गए हैं। जबकि 2016 व 2017 का मुआवजा जारी नहीं हो पाया है।
क्योंकि सरकार के पास फंड ही नहीं है। सिंह ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल सब जानते थे, कि सरकार की माली हालत ठीक नहीं है, फिर भी वोट बैंक के लिए किसानों को खुश करने के लिए मुआवजा राशि जारी की। वहीं कैप्टन सरकार के वित्तमंत्री व प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि यह मामला उनके ध्यान में है।
सीमावर्ती किसानों की हालत खस्ता
भंगाला ने कहा कि वैसे तो देशभर के किसानों की हालत एक जैसी है, लेकिन सीमावर्ती किसानों की हालत बिल्कुल खस्ता है। उन्होंने कहा कि तारबंदी के समय किसानों की उपजाऊ जमीन उस पार चली गई। खेती के लिए बीएसएफ की मंजूरी लेनी होती है। संगीनों के साए में खेती करना व उसके साए में फसल काटनी पड़ती है। इसकी लिए बीएसएफ गाइड लाइन जारी करता है।
यानि कि खेत किसान का, मालगुजारी भरे किसान लेकिन खेती सैनिकों के रहमों-करम पर। उन्होंने कहा कि तरनतारन जिले के गांव गजल, राजोके और मीयांवाला की लगभग 300 एकड़ से अधिक की जमीन के मुआवजे का अनुमान अभी तक तैयार नहीं हो पाया है। कंटीली तार के पार वाली जमीन के किसान बदहाली से गुजर रहे हैं। इन किसानों का सारा कर्ज माफ किया जाना चाहिए।
मौजूदा सरकार भी कम नहीं
उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार भी कम नहीं है। चुनाव के समय कर्जा-कुर्की माफ का नारा देने वाली कैप्टन सरकार किसानों का कर्ज माफ करने की बजाय उन्हें लारे-लप्पे दे रही है। और किसान कर्ज माफी की उम्मीद लगाए बैठा। जबकि कर्ज के बोझ तले दबे किसान आए दिन आत्महत्या कर रहे हैं। और सरकार केवल आंकड़ा जुटाने में लगी है।
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