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वास्तुकला का उम्दा नमूना है रामबाग

raghvendra
Published on: 19 July 2019 3:54 PM IST
वास्तुकला का उम्दा नमूना है रामबाग
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दुर्गेश मिश्र

अमृतसर: अमृतसर का रामबाग अर्थात कंपनी बाग काल के कपाल पर लिखी एक ऐसी इबारत है जिसे मिटाया नहीं जा सकता। शहर के मध्य स्थित यह बाग हर समय लोगों की मौजूदगी से गुलजार रहता है। बड़े-बड़े छायादार व फलदार दरख्तों से भरे इस बाग में विभिन्न प्रजातियों के फूल व उन पर मकरंद लेते भंवरे, फूलों के परागों का रस चूसती मधुमक्खियां और फूलों के आसपास मंडराती रंगबिरंगी तितलियां व पंछियों का कलरव हर प्रकृति प्रेमी को अपनी तरफ सहज ही आकर्षित करता है। हवा के झोकों के साथ दूर तक फैली फूलों की सुगंध सांसों के जरिए तनमन में समा जाती है या यूं कहें कि कंपनी बाग का शांत वातावरण किसी कवि या लेखक के लिए किसी प्रेयसी से कम नहीं है। अब जरा सोचिए यदि कंपनी बाग का वर्तमान इतना सुंदर है तो उसका अतीत कितना सुंदर रहा होगा। यह प्रत्येक प्रकृति प्रेमी के लिए सोचने और समझने का विषय हो सकता है। वहीं, इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए यह अंवेषण या अनुसंधान की विषयवस्तु भी हो सकता है।

रामबाग को बनाने में लगे थे 10 साल

कंपनी बाग में बने महाराजा रणजीत सिंह पैनोरमा और म्यूजियम के पूर्व इंचार्ज रमन कुमार कहते हैं कि यदि ऐतिहासिक साक्ष्यों पर गौर करें तो आज इतना सुंदर दिखने वाले रामबाग के निर्माण में दस साल का समय लगा था। वे कहते हैं कि देसा सिंह मजीठिया और फकीर अजीजुद्दीन की निगरानी में तैयार हुआ महाराजा रणजीत सिंह का समर पैलेस अरबी वास्तुकला का उम्दा नमूना है। तीन मंजिल वाले समर पैलेस में एक तहखाना, ग्राउंड फ्लोर पर तीन कमरे, एक बड़ा हाल और मेहराबदार बरामदों से युक्त चार गैलरी है जबकि ऊपरी मंजिल पर अद्भुत और अप्रतिम चित्रकारी की गई है।

803.72 स्क्वायर मीटर में है पैलेस

बताया जाता है कि 1780 में लाहौर के गुजरावाला में जन्मे महाराजा रणजीत सिंह ने 1839 तक पंजाब के शासन की कमान संभाली। उनके बारे में बताया जाता है कि वह एक कुशल योद्धा, न्यायप्रिय शासक होने के साथ-साथ वास्तु और धर्म प्रेमी भी थे। इसकी झलक कंपनीबाग में बने भव्य भवनों से मिलती है। महाराजा का समर पैलेस 90 बाई 90 फिट का वर्गाकार बना हुआ है। पूरे समर पैलेस का निर्माण 803.72 स्क्वायर मीटर में है। इसके साथ ही साथ महाराजा का हमाम बारादरी सहित अन्य इमारतें स्थित हैं। कहा जाता है कि कंपनी बाग में कुल 8 बारादरी और चार वाचिंग टावर थे। इनमें से मात्र एक बारादरी बची है जो अपने पुराने स्वरूप को कायम रखे हुए है।

सुरक्षा प्रबंधों का भी रखा गया था ध्यान

महाराजा के समर पैलेस का निर्माण करते समय उनके सुरक्षा प्रबंधों का भी पूरा ध्यान रखा गया था। इसके चारों तरफ 20 फुट चौड़ी और 14 फुट गहरी खाई खोदी गई थी। इससे जहां एक ओर महाराजा के पैलेस की सुरक्षा किसी अभेद्य दुर्ग की तरह होती थी, वहीं इस चौड़ी खाई में भरे पानी को छूकर जब हवाएं चलती थीं तो समर पैलेस भयंकर गर्मी में भी कूल-कूल रहता था। यही नहीं इस पैलेस के चारों तरफ फूलों और फव्वारों की उत्तम व्यवस्था की गई थी। बताया जाता है कि उस समय महाराजा की सुरक्षा में लगे सैनिकों और सैन्य अधिकारियों के रहने लिए रामबाग के चारों तरफ आवास बनाए गए थे। इतिहास के उतार-चढ़ाव के बाद मौजूदा समय में न तो खाई बची है और ना ही सैनिकों के आवास। यदि कुछ बचा है तो समर पैलेस, बुर्जियां, फव्वारा सिस्टम और राम बाग का भव्य मुख्य प्रवेशद्वार, जिसमें कभी महाराजा के सिपाहसालार बैठते थे। लेकिन अब इस भव्य इमारत में सर्वे ऑफ ऑर्कियोलॉजिकल विभाग का जोनल कार्यालय है।

ऐसे बना कंपनी बाग

इतिहासकारों के मुताबिक महाराजा रणजीत सिंह साल में नौ माह तत्कालीन पंजाब की राजधानी लाहौर में रहते थे। जबकि बाकी के तीन माह श्री हरिमंदिर साहिब के दर्शन और अमृतसर के लोगों के बीच इसी रामबाग में बने समर पैलेस में रहते थे। उस समय उनकी कचहरी और दरबार भी यहीं लगा करता था और यहीं से वे कई महत्वपूर्ण फैसले भी लिया करते थे। लेकिन महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु और सिख एंग्लो युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की अंग्रेजी हुकूमत ने रामबाग का नाम बदलकर कंपनी बाग कर दिया और तब से रामबाग कंपनी बाग के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि अमृतसर जिला बनने बाद अंग्रेजों ने अपनी पहली कचहरी समर पैलेस में ही लगाई थी।

1977 में संग्रहालय बना समर पैलेस

महाराजा रणजीत सिंह म्यूजियम के सेवानिवृत्त इंचार्ज रमन कुमार और पंजाब टूरिज्म विभाग के पूर्व सह निदेशक बलराज सिंह कहते हैं कि 1977 में समर पैलेस को संग्रहालय का रूप दिया गया। इसमें महाराजा से जुड़ी वस्तुओं का संग्रह कर लोगों को इतिहास की जानकारी देने के लिए प्रदर्शित किया गया, लेकिन इस पैलसे के जीर्णेाधार के कारण यहां की महत्वपूर्ण वस्तुओं को महाराजा रणजीत सिंह पैनोरमा में रखा गया है। यहां सैकड़ों पर्यटक इन वस्तुओं को देखने आते हैं। वे कहते हैं कि इससे पहले यह पैलेस नगर निगम का कार्यालय हुआ करता था। कंपनी बाग और इसके आसपास बनी शाही इमारतें सिख इतिहास की कहानी कहते नहीं थकतीं। शायद वे यह बताने की कोशिश करती हैं कि उनका अतीत भी कितना गौरवपूर्ण रहा है। पैनोरमा में लाइट एंड साउंड के माध्यम से सिख इतिहास को दिखाने व बताने की कोशिश की जाती है।

2004 से भारतीय पुरातत्व विभाग के है अधीन

लगभग 21 साल तक महाराजा रणजीत सिंह की प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र व लगभग दो सदी के इतिहास का गवाह रहे रामबाग को 15 अक्तूबर 2014 को केन्द्र सरकार भारतीय पुरातत्व विभाग को सौंप दिया। वर्तमान में महाराजा के समर पैलेस और रामबाग को पंजाब टुरिज्म विभाग और पुरातत्व विभाग सजाने-संवारने में जुटा है ताकि देसी व विदेशी पर्यटकों को शेर-ए-पंजाब के इतिहास से रू-ब-रू करवाया जा सके।

महाराज रणजीत सिंह का समर पैलेस था रामबाग

वर्तमान में 678 कनाल 12 मरले में आबाद कंपनी बाग की आधारशिला शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने 1818 में रखी थी। उन्होंने इस बाग का नाम श्री गुरु रामदास जी के नाम पर रामबाग रखा था। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक इस बाग का रकबा 84 एकड़ था। कहा जाता है कि प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस बाग को महाराजा गर्मियों के अवकाश के दौरान अपने लिए समर कैंप के रूप में प्रयोग करते थे या यूं कहें कि गर्मियों में महाराजा रणजीत सिंह का लाहौर की बजाय अमृतसर के इसी राम बाग में लगा करता था। ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक इस बाग के निर्माण में उस समय 2.14 लाख रुपये खर्च किए गए थे।

राम बाग के मध्य में नानक शाही ईटों और चूना-प्लास्टर के मिश्रण से बने भव्य भवन को समर पैलेस के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि इस पैलेस के निर्माण में उस समय 1.25 लाख रुपये खर्च किए गए थे। तीन मंजिली इस इमारत के निर्माण में पच्चीकारी के साथ-साथ हवा और प्रकाश का भी उम्दा प्रबंध किया गया था।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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