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आइए जानें क्या है अनुच्छेद 370 व अनुच्छेद 35ए में

कश्मीर को लेकर चल रहे तनाव के बीच अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए चर्चा में है। दोनो ही अनुच्छेद पर याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन हैं। मजे की बात यह है कि अनुच्छेद 370 जहां मूल संविधान का हिस्सा है।

Rishi
Published on: 25 Feb 2019 7:57 PM IST
आइए जानें क्या है अनुच्छेद 370 व अनुच्छेद 35ए में
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कश्मीर को लेकर चल रहे तनाव के बीच अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए चर्चा में है। दोनो ही अनुच्छेद पर याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन हैं। मजे की बात यह है कि अनुच्छेद 370 जहां मूल संविधान का हिस्सा है। वहीं अनच्छेद 35ए मूल संविधान का हिस्सा नहीं है। इसे जम्मू कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की सलाह पर संविधान में अलग से राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया था। खास बात यह है कि यह दोनो ही अनुच्छेद कश्मीर को विशेष दर्जा देते हैं जो कि कश्मीर समस्या की जड़ है। ऐसा कहा जाता है कि इन्हीं दो अनुच्छेदों की वजह से कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा होकर भी अलग- थलग पड़ गया है।

आइए जानते हैं कि क्या कहता है अनुच्छेद 370 और 35ए

अनच्छेद 370, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार देता है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार के अनुमोदन की जरूरत होती है।

जम्मू कश्मीर को मिले इसी विशेष दर्ज़े के कारण राज्य पर संविधान का अनुच्छेद 356 लागू नहीं होता है। इसके चलते राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है। 1976 का शहरी भूमि क़ानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता है।

आप को जानकर आश्चर्य होगा कि एक भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते।

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इसी तरह संविधान का अनच्छेद 360 है जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लागू करने का प्रावधान है, यह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता है।

कहा यह जाता है कि देश की आजादी के बाद जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय करना ज़्यादा बड़ी ज़रूरत थी। इस बात को ध्यान में रखते हुए इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए ही अनुच्छेद 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को उस समय दिये गये थे। हालांकि जब यह अधिकार दिये गए थे उस समय भी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ये बात जानते और समझते थे कि यह व्यवस्था चिरकालीन नहीं हो सकती है। इसी लिए उनके द्वारा जम्मू-कश्मीर के एक नेता पं॰ प्रेमनाथ बजाज को 21 अगस्त 1962 में लिखे हुये पत्र में इस बात के स्पष्ट संकेत दिये गए थे कि कभी न कभी अनुच्छेद 370 अवश्य खत्म होगा। पं॰ नेहरू ने अपने पत्र में लिखा है-

‘‘वास्तविकता तो यह है कि संविधान का यह अनुच्छेद, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिये कारणीभूत बताया जाता है, उसके होते हुये भी कई अन्य बातें की गयी हैं और जो कुछ और किया जाना है, वह भी किया जायेगा। मुख्य सवाल तो भावना का है, उसमें दूसरी और कोई बात नहीं है। कभी-कभी भावना ही बडी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।’’

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अब आइए एक नजर डालते हैं जम्मू कश्मीर के नागरिकों को मिले विशेषाधिकारों पर-

जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है। जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है। जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

नियम यह कहता है कि जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है। इसीलिए वहां पर भारत के राष्ट्रध्वज या प्रतीकों के अपमान की घटनाएं होती रहती हैं।

भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं। भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।

जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।

अनुच्छेद 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई (RTI) और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते है।

कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है। कश्मीर में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं है। कश्मीर में चपरासी को 2500 रूपये ही मिलते है। कश्मीर में अल्पसंख्यकों [हिन्दू-सिख] को 16% आरक्षण नहीं मिलता।

अनुच्छेद 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं। धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।

इन सब बातों के बावजूद अनुच्छेद 370 के तहत जो प्रावधान है उनमें समय समय पर परिवर्तन किया गया है। ये सारे संशोधन जम्मू-कश्मीर के विधानसभा द्वारा पारित किये गये हैं।

जैसे 1954 में चुंगी, केंद्रीय अबकारी, नागरी उड्डयन और डाकतार विभागों के कानून और नियम जम्मू-कश्मीर को लागू किये गये। 1958 से केन्द्रीय सेवा के आईएएस तथा आईपीएस अधिकारियों की नियुक्तियाँ इस राज्य में होने लगीं। इसी के साथ सीएजी (CAG) के अधिकार भी इस राज्य पर लागू हुए। 1959 में भारतीय जनगणना का कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू हुआ। 1960 में सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपीलों को स्वीकार करना शुरू किया, उसे अधिकृत किया गया।

1964 में संविधान के अनुच्छेद 356 तथा 357 को इस राज्य पर लागू किया गया। इस अनुच्छेदों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक व्यवस्था के गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति का शासन लागू करने के अधिकार प्राप्त हुए। 1965 से श्रमिक कल्याण, श्रमिक संगठन, सामाजिक सुरक्षा तथा सामाजिक बीमा सम्बन्धी केन्द्रीय कानून राज्य पर लागू हुए। 1966 में लोकसभा में प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित अपना प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया। इसी साल जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने अपने संविधान में आवश्यक सुधार करते हुए- ‘प्रधानमन्त्री’ के स्थान पर ‘मुख्यमन्त्री’ तथा ‘सदर-ए-रियासत’ के स्थान पर ‘राज्यपाल’ इन पदनामों को स्वीकृत कर उन नामों का प्रयोग करने की स्वीकृति दी। ‘सदर-ए-रियासत’ का चुनाव विधानसभा द्वारा हुआ करता था, अब राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होने लगी। 1968 में जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय ने चुनाव सम्बन्धी मामलों पर अपील सुनने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया।

1971 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विशिष्ट प्रकार के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार उच्च न्यायालय को दिया गया। 1986 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 249 के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए। (अः) इस धारा में ही उसके सम्पूर्ण समाप्ति की व्यवस्था बताई गयी है।

अनुच्छेद 370 का उप अनुच्छेद 3 बताता है कि ‘‘पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी लिखा हो, राष्ट्रपति प्रकट सूचना द्वारा यह घोषित कर सकते है कि यह धारा कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड दिया जाये तो समाप्त की जा सकती है। लेकिन इसके लिये राज्य की संविधान सभा की मान्यता चाहिये।

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अनुच्छेद 35ए

अनुच्छेद 35ए को राष्ट्रपति के एक आदेश से संविधान में 1954 में जोड़ा गया था। यह तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट की सलाह पर जारी हुआ था। इससे करीब दो साल पहले 1952 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और भारत के प्रधानमंत्री नेहरू के बीच दिल्ली समझौता हुआ था। इस समझौते के बाद जम्मू-कश्मीर के नागरिक भारत के नागरिक मान लिए गए। इस समझौते के बाद ही 1954 में अनुच्छेद 35ए को संविधान में जोड़ा गया। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर विधानमंडल को यह अधिकार देता है कि वह यह तय करें कि राज्य का स्थायी निवासी कौन है और किसे सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में विशेष आरक्षण, संपत्ति खरीदने, जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार है।

यह अनुच्छेद किसी गैर कश्मीरी व्यक्ति को कश्मीर में जमीन खरीदने की अनुमति नहीं देता। अनुच्छेद 35ए में प्रावधान है कि भारत के किसी दूसरे राज्य में रहने वाला व्यक्ति जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं बन सकता। जिसके कारण वहां वोट नहीं डाल सकता। अगर राज्य की कोई महिला दूसरे किसी राज्य के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। इसके अलावा उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं। अनुच्छेद 35ए में यह प्रावधान है कि अगर राज्य सरकार किसी कानून को अपने हिसाब से बदलती है तो उसे किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है।



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Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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