×

याद है 2005 का वो मंजर, जब मीठी नदी ने कड़वा किया था मायानगरी को

aman
By aman
Published on: 30 Aug 2017 6:40 AM GMT
याद है 2005 का वो मंजर, जब मीठी नदी ने कड़वा किया था मायानगरी को
X
याद है 2005 का वो मंजर, जब मीठी नदी ने कड़वा किया था मायानगरी को

vinod kapoor

लखनऊ: मुंबई में बरसात आम बात है। लोग डरते भी नहीं ज्यादा बरसात से। लेकिन 26 जुलाई 2005 की दोपहर से शुरू हो, रात भर हुई बारिश ने लोगों को दहला दिया था। सबसे बुरा हाल हुआ मुंबई में बहने वाली मीठी नदी के किनारे झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों का था। मीठी नदी के किनारे के सभी झोपड़े नदी में समा गए और करीब 200 लोगों की मौत हो गई।

मुंबई को शंघाई बनाने का राज्य सरकार का दावा तब कमजोर होता दिखने लगा, जब वहां लगातार हुई बारिश ने महानगर को तबाह कर दिया। पूरा शहर जलमग्न हो गया और जल निकासी की व्यवस्था पूरी तरह ठप्प पड़ गई। मुंबई में रहने वाले जब भी अब बरसात का सामना करते हैं, तो मीठी नदी में आई बाढ़ की याद ताजा हो जाती है।

ये भी पढ़ें ...# मुंबई की बारिश: ‘आज भी कांप जाती है रूह जब पानी पर तैर रहे थे शव’

...और टूट गया विकास का दंभ

प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर किए गए विकास का दंभ तब टूट गया जब वहां गगनचुम्बी इमारतों में पानी का पहरा आठों पहर लगा रहा। इस प्राकृतिक विपदा का कारण जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि यहां बहने वाली मीठी नदी सहित उल्हास, वालधुनी, दहिसर और ओशविरा नदियों के तटों का अतिक्रमण कर लिया गया है। यही वजह है कि बारिश के पानी के निकास की कोई गुंजाईश नहीं रह गई।

ये भी पढ़ें ...आपको पता है क्यों डूबी मुंबई? जानें मायानगरी पर आगे और क्या है खतरा

नदी के संकुचन की अन्य वजहें भी

उस वक्त मुंबई नगरपालिका की लापरवाही की पोल खुलकर सामने आई तो उसने अतिक्रमण के लिए झुग्गीवासियों को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मीठी नदी के तट का अतिक्रमण झुग्गीवासियों ने किया है, पर मुंबई हवाई अड्डे के कारण भी मीठी नदी के बेसिन का संकुचन हुआ है। मीठी नदी पर भवन निर्माण कम्पनियों ने बहुमंजिली इमारतें बना दी। इस नदी तट से अतिक्रमण हटाने की बात जब जांच समिति ने सुझाई तो झुग्गी वालों को उजाड़ने की योजना बनाई गई।

आगे की स्लाइड में पढ़ें विनोद कपूर का पूरा लेख ...

क्या सारा दोष झुग्गीवासियों का

ऐसे में सवाल है कि मुंबई में बाढ़ से हुए अरबों रुपए के नुकसान के लिए क्या सिर्फ झुग्गीवासी जिम्मेदार थे?

झुग्गीवासियों पर आरोप लगता है कि वे प्रदूषण फैलाते हैं, पर सच्चाई यह है कि रिहायशी इलाकों में बसी झुग्गियों से अधिक कचरा फैलाने के लिए जिम्मेदार बहुमंजिली इमारतों, रासायनिक उद्योगों और दूसरे कल-कारखानों में समुचित कचरा प्रबंधन का न होना है। आज भी रिहाइशी इलाकों की साफ-सफाई, कूड़ा-करकट और घरेलू कचरा उठाने की जिम्मेदारी नगर निगम पर है। मगर, साधनों की कमी की वजह से वह इस जिम्मेदारी का सही तरीके से निर्वाह नहीं कर पाती है। नतीजतन, सूखा कचरा सड़कों और गलियों में बिखरा रहता है और बरसात में बहकर खुली नालियों और सीवरों में जमा हो जाता है।

ये भी पढ़ें ...पानी-पानी मुंबई को ‘लाइफलाइन’ ने संभाला, लेकिन आज ‘डिब्बा’ बंद

सरकार खुलकर तो बोले

कल-कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं और व्यवहार में लाए जा रहे पानी के निकास का कभी भी सही ढंग से प्रबंधन नहीं होता है। सरकार कभी यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते कि कल-कारखानों से निकलने वाला धुआं और दूषित जल-मल प्रदूषण में इजाफा कर रहा है।

ये भी पढ़ें ...मुंबई में आज भी हो सकती है भारी बारिश, बंद रहेंगे स्कूल-कॉलेज

..तो ऐसे में कैसे ना आए आफत

मीठी नदी जहां सागर में मिलती है, वहां कभी घना जंगल हुआ करता था। महाराष्ट्र सरकार ने इस जंगल को उजाड़कर और मीठी नदी में मिट्टी भरकर बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स बनवाया। हवाई पट्टी का एक कोना भी इस अतिक्रमण का हिस्सा है। हजारों एकड़ जमीन नदी के बेसिन और जंगल से छीनकर राज्य सरकार की दो कम्पनियों- सिडको और महाडा को दे दी गई। आज वहां देशी और विदेशी बड़ी कम्पनियों के बहुत सारे दफ्तर हैं। चमड़ा शोधन और रासायनिक उद्योग भी अपना कचरा मीठी नदी में प्रवाहित करते हैं। आश्चर्य तो यह है कि इन कचरा फैलाने वालों में कोई छोटा उद्योग नहीं है।

aman

aman

Content Writer

अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

Next Story