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SYL विवाद: ओछी सियासत और लचर कानूनी तैयारी के चलते पंजाब को लगा झटका

aman
By aman
Published on: 12 Nov 2016 3:55 PM GMT
SYL विवाद: ओछी सियासत और लचर कानूनी तैयारी के चलते पंजाब को लगा झटका
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) के मुद्दे पर पंजाब सरकार को जो झटका दिया है वास्तव में उसकी इबारत 2004 में लिख दी गई थी। तब राज्य की तत्कालीन कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने आनन-फानन में राज्य विधानसभा में पंजाब ऐक्ट 2004 पारित करके एक घंटे के भीतर ही राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा था।

अकाली दल सरकार जोकि विधेयक को सर्वसम्मति से विधानसभा में पारित करवाने में अमरिंदर सिंह सरकार के साथ थी, राज्यपाल पर तत्काल यह दबाव बनाने के बजाय राजनैतिक लाभ पाने के लिए सियासी हो-हल्ले में ज्यादा मशगूल हो गई।

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एक घंटे बाद ही भेजा था राज्यपाल के पास

एसवाईल मुद्दे पर कई वर्षों से निगाह रखने वाले कानूनी जानकारों का कहना है कि तब पंजाब में विपक्षी अकाली दल और बाकी पार्टियां इस बात को पूरी तरह भूल गईं कि विधानसभा में विधेयक पारित करना पर्याप्त नहीं होता। वह कानून का रूप तभी लेता है जब राज्यपाल उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं। कैप्टन ने विधानसभा का प्रस्ताव एक घंटे बाद ही राज्यपाल को हस्ताक्षर के लिए पेश कर दिया था।

अकाली ने यहां हुई चूक

लेकिन विपक्षी अकाली दल राज्यपाल पर जल्द हस्ताक्षर का दबाव बनाने के बजाय आत्मप्रशंसा और सियासी लाभ हासिल करने की होड़ में शामिल हो गया। राज्यपाल ने विधानसभा का प्रस्ताव तीन दिन तक अपने पास विचार के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

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...तो इसलिए लगी गहरी चोट

हरियाणा सरकार ने राज्यपाल की ओर से हस्ताक्षर करने में हुई देरी का बड़ी तत्परता से फायदा उठाया और सुप्रीम कोई से स्टे ले लिया। अकाली सरकार ने भी पूरा एक दशक गंवाया और सुप्रीम कोर्ट में जिस गंभीरता और तत्परता के साथ राज्य की तकदीर से जुडे़ अति संवेदनशीनल मामले में हीला-हवाली बरती उसी का परिणाम है कि पंजाब को इतनी गहरी चोट खानी पड़ी।

वही टीम बस सरकार अलग

पंजाब से लेकर दिल्ली की सियासत में इस बात को लेकर भी चर्चा सुर्खियों में है कि जिस कानूनी टीम ने वर्तमान में हरियाणा सरकार की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी की है, वही टीम पहले इसी केस में पंजाब सरकार की पैरवी कर चुकी है।

हरियाणा ने हर मोर्चे पर दी पटखनी

पंजाब सरकार की किरकिरी इसलिए भी हो रही है कि उसकी कोई कानूनी तैयारी ही नहीं थी। हरियाणा सरकार के वकीलों ने पंजाब सरकार के वकीलों को हर मामले में पटखनी दी। कानूनी जानकार मानते हैं कि भले ही सर्वोच्च अदालत ने पंजाब सरकार के एक-एक तर्क को पूरी इत्मिनान से सुना और प्रायः सभी को एक-एक कर खारिज किया। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पंजाब सरकार की ओर से इस मामले की ढंग से पैरवी की गई होती तो कम से कम सुप्रीम कोर्ट की पीठ को बीच का रास्ता निकालने को राजी किया जा सकता था।

पंजाब सरकार ने गलतियों पर गलतियां की

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट और पूर्व एडिशनल एडवोकेट जनरल, पंजाब अतुल नंदा का कहना है कि 'पंजाब सरकार 2004 में विधानसभा में एक्ट पारित करने के बाद गहरी नींद में सो गई। उसे पता ही नहीं था कि राज्यपाल ने अगर हस्ताक्षर करने में जरा भी देरी की तो इस रणनीति से सीधे तौर पर प्रभावित पड़ोसी राज्य हरियाणा को सुप्रीम कोर्ट से स्टे लेने का मौका हाथ लग जाएगा।'

पंजाब सरकार की निकली हवा

अतुल नंदा कहते हैं कि हरियाणा सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलते ही पंजाब सरकार द्वारा विधानसभा में पारित प्रस्ताव की सारी हवा निकल गई। उन्होंने कहा, 'मैं मानता हूं कि इस पूरे मामले में पंजाब सरकार और राज्य के किसानों की समस्याओं को सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष सिंचाई के संकट से जूझ रहे राज्य के किसानों की समस्याओं को और प्रभावी तरीके से रखा जा सकता था। यह सच्चाई भी सुप्रीम कोर्ट की पीठ को आसानी से समझायी जा सकती थी कि दोनों राज्यों के बीच पानी के बंटवारे का जो पैमाना अतीत में तय हुआ था, उस अनुपात में सजलुज-यमुना में पानी ही नहीं बचा क्योंकि हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के लुप्त होने से आज उतना पानी ही नहीं बचा कि तय मात्रा में बंटवारा हो।'

मौजूदा हालात में दोनों राज्यों के बीच टकराव टालने का एक ही रास्ता है कि दोबारा ट्रिब्युनल बने और हकीकत के आईने में मामले का सर्वसम्मत समाधान निकले।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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