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Arvind Kejriwal Politics: अरविन्द केजरीवाल की बदली राजनीति बीजेपी-कांग्रेस दोनों के लिए खतरा क्यों?

Arvind Kejriwal Politics: केजरीवाल ने कहा मेरी केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री से अपील है कि भारतीय करेंसी पर गांधी जी की तस्वीर के साथ श्रीगणेश जी और श्रीलक्ष्मी जी की तस्वीर लगाई जाए

Vikrant Nirmala Singh
Published on: 27 Oct 2022 1:02 PM IST
Why Arvind Kejriwals changed politics is now a threat to both BJP-Congress?
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क्यों अरविन्द केजरीवाल की बदली राजनीति अब बीजेपी-कांग्रेस दोनों के लिए खतरा है?: Photo- Social Media

Arvind Kejriwal Politics: अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) एक बार फिर चर्चा में है। इस बार उनकी चर्चा एक नए बयान से है। बीते बुधवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के मुखिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि ''मेरी केंद्र सरकार (Central Government) और प्रधानमंत्री जी से अपील है कि भारतीय करेंसी (Indian currency) के ऊपर एक तरफ गांधी जी की तस्वीर है, उसके साथ ही दूसरी तरफ श्री गणेश जी और श्री लक्ष्मी जी की तस्वीर लगाई जाए।" इस बयान के बाद से अरविंद केजरीवाल के लिए सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

एक वक्त में अरविंद केजरीवाल को नई राजनीति के लिए अपना नेता मानने वाले लोगों ने इस बयान पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा है कि अब आम आदमी पार्टी भी भाजपा के एजेंडे पर काम कर रही है और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही है। लेकिन अरविंद केजरीवाल के समर्थक और विशेषतः गुजरात चुनाव (gujarat assembly election) के संदर्भ में इस बयान को बहुत कारगर मान रहे हैं। उनका मानना है कि धार्मिक रूप से संवेदनशील गुजरात में अरविंद केजरीवाल का सॉफ्ट हिंदुत्व पार्टी को बहुत फायदा पहुंचा सकता है। लेकिन अरविंद केजरीवाल की राजनीति को अब सिर्फ इस बयान के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। दिल्ली और पंजाब में बड़े बहुमत की सरकार चला रही आम आदमी पार्टी की निगाहें अब गुजरात के साथ ही कई अन्य राज्यों की तरफ देख रही है।

क्या अरविंद केजरीवाल देश में एक बड़े विकल्प के रूप में दिखना चाहते हैं?

आप अरविंद केजरीवाल की राजनीति को बहुत गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि आम आदमी पार्टी की स्थापना कभी भी एक क्षेत्रीय दल के रूप में नहीं हुई थी। यह दल हमेशा से ही राष्ट्रीय स्तर की राजनीति के लिए बनाया गया था। मसलन 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने वाला एकमात्र दल था। अरविंद केजरीवाल एक लंबे समय से अपनी कार्यशैली में देश को केंद्र में रखते हैं।

आप गौर से उनके प्रेस कॉन्फ्रेंस देखिए कि कैसे दिल्ली के संदर्भ में लिए गए निर्णय को भी वह राष्ट्रीय मीडिया में आकर पूरे देश को संबोधित करते हुए रखते हैं। हाल ही में अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा में भारत को नंबर एक देश बनाने के लिए एक संकल्प रैली का आयोजन किया था और इस रैली में उनके एक-एक शब्द उनके राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को जाहिर कर रहे थे। इसलिए यह शत-प्रतिशत स्पष्ट हो चुका है कि अरविंद केजरीवाल की नजर राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी पार्टी और एक बड़ा नेता बनने की है।

अरविन्द केजरीवाल: Photo- Social Media

अरविंद केजरीवाल के सॉफ्ट हिंदुत्व के क्या मायने हैं?

यह सर्वविदित है कि अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीति करने के तरीके को बदल दिया है। वह देश की मौजूदा तमाम विपक्षी दलों से सीखते हुए हिंदू विरोधी ना दिखने की नीति पर काम कर रहे हैं। इसी क्रम में वह दिल्ली से मुफ्त तीर्थ योजना चलाते हैं। खुद को हनुमान भक्त बताते हैं और अहम मौकों पर हनुमान मंदिरों में हनुमान चालीसा भी गाने जाते है।

अरविंद केजरीवाल खुद को हिंदू-हितेषी दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। इसके साथ ही उनमें एक बड़ी राजनीतिक घटना यह दिखाई पड़ती है कि वह किसी भी उस विषय पर अपनी राय नहीं रखते हैं, जहां उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वह मुस्लिम समुदाय के साथ दिखाई पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में शाहीन बाग जैसे बड़े आंदोलन पर अरविंद केजरीवाल ने दूरी बना ली थी। हाल ही में उनकी पार्टी के कई नेताओं ने भी मुस्लिम आधारित मुद्दों से दूरी बना ली है। बिलकीस बानो मामले पर जिस तरह से गुजरात में मनीष सिसोदिया ने पल्ला झाड़ा था, वह बताने के लिए काफी था कि आम आदमी पार्टी किसी भी ऐसे विषय में उलझना नहीं चाहती है।

क्या आम आदमी पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी बन पाएगी?

चुनाव आयोग के नियमों का जिक्र करें तो आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बनने के कगार पर खड़ी है। इस समय 2 राज्यों में पार्टी स्पष्ट बहुमत से सरकार चला रही है और एक तीसरे राज्य गोवा में 6 फ़ीसदी से अधिक वोट हासिल कर चुकी है। गुजरात विधानसभा चुनाव इस समय पार्टी के लिए राष्ट्रीय पार्टी बनने का आखरी दरवाजा है। अगर यहां आप बेहतर प्रदर्शन करते हुए एक अच्छा वोट शेयर और सीटें जीत जाती है तो वह देश की राष्ट्रीय पार्टियों में शामिल हो जाएगी। राज्यसभा में पहले से ही आम आदमी पार्टी के 10 सांसद मौजूद है।

वहीं अगर आप वैचारिक स्तर पर देखेंगे तो पाएंगे कि आम आदमी पार्टी किसी भी अन्य क्षेत्रीय पार्टी से बिल्कुल अलग है, जिसकी यूएसपी कोई मजहब या जाति ना होकर एक आर्थिक वर्ग है। यह आर्थिक वर्ग इस देश का मिडिल और लोअर मिडिल क्लास है। इसी वर्ग के इर्द-गिर्द अरविंद केजरीवाल की पूरी राजनीति दिखाई पड़ती है। अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के साथ जबकि ऐसा नहीं है। उत्तर प्रदेश में एक बड़े क्षेत्रीय पार्टी के रूप में समाजवादी पार्टी की यूएसपी यादव समाज है तो वहीं बिहार में राजद के साथ भी यही है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी बंगाल तक ही सीमित है। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अपनी मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली और लोकलुभावन योजनाओं के जरिए अपनी राजनीति का केंद्र एक बहुत बड़े आर्थिक वर्ग को बना लिया है। इसलिए इस पार्टी का विस्तार दिल्ली और पंजाब के बाहर भी होना दिखाई पड़ता है।

अरविन्द केजरीवाल: Photo- Social Media

क्या आम आदमी पार्टी भी बीजेपी का अनुसरण कर रही है?

आप भारतीय राजनीति का यह एक अनोखा चरित्र देखिए कि हिंदुत्व की बात करने वाली कोई भी अन्य पार्टी भारतीय जनता पार्टी की बी टीम बता दी जाती है। इस पूरी घटना में सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को यह है कि वह हिंदुत्व की राजनीति करने वाली एकमात्र पार्टी बन चुकी है। इसी के विरोध में लगातार अपनी राजनीति करने वाली कांग्रेस आज हिंदी बेल्ट में बेहद कमजोर हो चुकी है।

देश के तमाम बीजेपी विरोधी दलों को यह समझना होगा कि देश के बहुसंख्यक समाज के संदर्भ में बातें करने से आप अल्पसंख्यक समाज के विरोधी नहीं हो जाते हैं। अरविंद केजरीवाल कई मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी के सबसे मुखर विरोधी के रूप में नजर आते हैं, तो वहीं हिंदुत्व के विषय पर वह एक सॉफ्ट रूप अपनाते हैं। उदाहरण के लिए मुफ्त की रेवड़ी जैसे प्रधानमंत्री मोदी जी के बयान पर आम आदमी पार्टी आक्रामक रुख अपना लेती है, लेकिन धारा 370 और राम मंदिर जैसे जनमानस के संवेदनशील विषयों पर पार्टी बीजेपी के निर्णय का स्वागत करती है।

अरविंद केजरीवाल के विरोधियों को लगता है कि वह भाजपा का अनुसरण कर रहे हैं लेकिन उनकी राजनीति को समझने वाले इस बात को जानते हैं कि जनमानस से जुड़े विषयों पर पार्टी विरोध के नाम पर अरविंद केजरीवाल जनभावना के खिलाफ नहीं जाना चाहते हैं। देश के अन्य राजनीतिक दलों को भी यह समझना होगा कि चुनाव में इसी बड़े जनमानस के बीच आपको भी वोट के लिए जाना है।



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Shashi kant gautam

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