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बदल जायेगी देश की राजनीति, ख़त्म हो सकता है कांग्रेस का वजूद
असम, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में चुनावी माहौल दिन प्रतिदिन गर्माता जा रहा है। अभी कहीं भी यह साफ नहीं है कि लड़ाई का स्वरूप क्या होगा। फिर भी ये चुनाव भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं। इन्हीं चुनावों के परिणाम से राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल जाएगा।
नीलमणि लाल
नई दिल्ली। असम, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में चुनावी माहौल दिन प्रतिदिन गर्माता जा रहा है। अभी कहीं भी यह साफ नहीं है कि लड़ाई का स्वरूप क्या होगा। फिर भी ये चुनाव भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं। इन्हीं चुनावों के परिणाम से राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल जाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इन चुनावों के नतीजों से कांग्रेस पार्टी का भविष्य तय होने वाला है। जहाँ तक भाजपा की बात है तो जीत के बाद वह अपनी बड़े बदलाव वाली नीतियों पर और भी कृतसंकल्प होकर आगे बढ़ेगी।
पश्चिम बंगाल
बंगाल में विधानसभा की 294 सीटें हैं। पिछले दो बार से विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तीसरी बार सत्ता में आने की पूरी कोशिशें कर रही हैं। उनकी पार्टी ने पिछले चुनाव में 211 सीटें जीतीं थीं। जबकि कांग्रेस ने 44, लेफ्ट ने 26 और भाजपा ने मात्र तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी। अन्य ने दस सीटों पर जीत हासिल की थी। पश्चिम बंगाल में बहुमत के लिए 148 सीटों की जरूरत है। पिछले चुनाव में महज तीन सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भाजपा से इस बार लोगों को काफी उम्मीदें हैं।
भाजपा ने बंगाल में जबरदस्त मेहनत की है
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था और 42 में से 18 सीटें जीत लीं थीं। अब विधानसभा चुनाव में दो सौ से ज्यादा सीटें जीतने लक्ष्य रखा है। चुनावी माहौल सबसे ज्यादा गर्म पश्चिम बंगाल में ही है। भाजपा ने बंगाल में जबरदस्त मेहनत की है। बंगाल में भाजपा का सत्ता में आना पूरे देश के लिए एक बहुत बड़ा सन्देश होगा और ऐसे किसी नतीजे से देश की राजनीति एक नई दिशा में जा सकती है। 3 से 200 तक की छलांग बहुत ऊंची है सो भाजपा यहाँ एड़ी चोटी का पसीना एक कर रही है। अगर भाजपा पश्चिम बंगाल का चुनाव जीत जाती है, तो यह जीत उसके लिए 2019 की लोकसभा चुनाव जीत के बराबर होगी। यही कारण है कि पार्टी ने अपनी ताकत का 80 फीसदी हिस्सा बंगाल में ही लगा रखा है। बाकी के चार राज्यों में भाजपा 20 फीसदी ताकत से ही काम चला रही है।
असम
जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें असम में भाजपा की सरकार है। उसके खिलाफ कांग्रेस और अजमल की पार्टी का गठबंधन खड़ा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भाजपा यहाँ अब भी मजबूत स्थिति में है, क्योंकि गठबंधन के सामने नेतृत्व का संकट है। एक तथ्य यह भी है कि कांग्रेस को हराना भाजपा के लिए आसान है और वहां उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस ही है। असम में विधानसभा की 126 सीटें हैं और चुनाव में यहां किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था।
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असम में एनआरसी के मुद्दों पर चुनाव लड़ा जा रहा है
मौजूदा स्थिति में कांग्रेस के 25 विधायक हैं, भाजपा के 61 और उसके सहयोगी असम गण परिषद के 14 और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के 12 सदस्य हैं। एआईयूडीएफ के 13 हैं और एक निर्दलीय सदस्य भी है। असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के समर्थन से भाजपा ने सरकार बनाई है। सर्बानंद सोनोवाल असम के मुख्यमंत्री हैं और वे पूर्व में केंद्रीय खेल मंत्री भी रह चुके हैं। असम में मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण की स्थिति है। बांग्लादेशी, हिन्दू-मुस्लिम, सीएए और एनआरसी के मुद्दों पर चुनाव लड़ा जा रहा है।
तमिलनाडु
इस बार तमिलनाडु का विधानसभा चुनाव पिछले चुनावों से बहुत अलग है। जिसका कारण है तमिलनाडु की राजनीति में दो बड़े दिग्गजों का नहीं होना। ये दिग्गज हैं जयललिता और एम.करुणानिधि। इस बार का चुनाव सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक से पलानीस्वामी और द्रमुक के स्टालिन के बीच का मुकाबला हो गया है। विधानसभा की 234 सीटों वाले इस राज्य में अन्नाद्रमुक की सरकार है जिसके चीफ मिनिस्टर ई पलानीस्वामी हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक और उसके साथी दलों ने 134 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि 98 सीटें पा कर द्रमुक दूसरे नंबर पर रही। यहां द्रमुक को कांग्रेस का साथ मिला हुआ है।
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सरकार बनाने के लिए तमिलनाडु में 118 सीटों की जरूरत
तमिलनाडु में सरकार बनाने के लिए 118 सीटों की जरूरत है। ऐसा मना जा रहा है कि भाजपा यहाँ अन्नाद्रमुक के साथ चुनाव लड़ सकती है। तमिलनाडु चुनाव से ठीक पहले एक बड़ा सियासी घटनाक्रम ये हुआ है कि अन्नाद्रमुक की पूर्व प्रमुख वी.के. शशिकला ने राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया है। माना जा रहा है कि शशिकला के फैसले से अन्नाद्रमुक को ही फायदा होगा।
अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन में भाजपा और पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) है। वहीं द्रमुक के साथ कांग्रेस, एमडीएमके, वीसीके और कुछ अन्य दल हैं। अभी किसी गठबंधन में सीटों का बँटवारा नहीं हुआ है। राज्य के चुनाव में अभिनेता से नेता बने रजनीकांत और कमल हासन की एंट्री भी रोचक होगी।
केरल
यहां विधानसभा की कुल 140 सीटें हैं और पिनारई विजयन मुख्यमंत्री हैं। केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार है। पिछले असेम्बली चुनाव की बात करें तो एलडीएफ ने 91 सीटों पर जीत दर्ज की थी, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) को 47 सीटें मिली थीं। केरल में बहुमत के लिए 71 सीटों की जरूरत है। भाजपा ने बंगाल के पैटर्न पर केरल में भी काफी समय से जमीनी मेहनत की हुई है।
भाजपा ने यहां लव जेहाद के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया
भाजपा ने यहां लव जेहाद के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया है। केरल में 30 प्रतिशत मुस्लिम और 20 प्रतिशत ईसाई हैं। दोनों के 50 प्रतिशत वोट बैंक मिलकर राज्य की सियासत का रुख तय करते हैं। विश्लेषकों के अनुसार ईसाई वोट इस बार भाजपा के साथ आ सकते हैं। भाजपा का जोर यहाँ दो-तीन सीटें निकालने पर ही होगा। यदि उसका वोट प्रतिशत बढ़ा, तो ये एक बड़ी सफलता होगी।
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पुडुचेरी
15 लाख की आबादी वाले पुडुचेरी में विधानसभा की 30 सीटें है। पुडुचेरी में हाल में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदला है। वी. नारायण सामी अभी तक मुख्यमंत्री थे लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित करने में विफल रहने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वर्तमान में यहां राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। पिछले चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 15 सीटें जीती थीं।
उसके बाद अन्नाद्रमुक को 4, एआईएनआरसी को 8, द्रमुक को 2 और अन्य को 1 सीट मिली थी। यहाँ सरकार बनाने के लिए 16 सीटों की जरूरत होती है। पुडुचेरी में 3 मनोनीत पद भी हैं जिन पर भाजपा के नेता काबिज हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि पुडुचेरी में शायद भाजपा के पक्ष में सत्ता का परिवर्तन हो जाएगा।
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