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अटल जी : फसाने जाने-अनजाने, किस्से तमाम आज भी ताजा हो उठते हैं

आया है सो जाएगा, राजा, रंक, फकीर मगर अटल बिहारी वाजपेयी खुद किस्सागो नहीं थे। लेकिन उनसे जो भी मिला उसके पास अटल जी को लेकर कोई न कोई किस्सा जरूर है। शायद ही भाजपा का कोई ऐसा नेता हो जिसने उनसे कुछ न कुछ न सीखा हो।

sudhanshu
Published on: 27 Nov 2018 12:18 AM IST
अटल जी : फसाने जाने-अनजाने, किस्से तमाम आज भी ताजा हो उठते हैं
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लखनऊ: कभी जनसंघ में एक नारा चलता था, ‘अंधेरे में एक चिंगारी। अटल बिहारी अटल बिहारी।’ उनके चारों ओर एक कवि का प्रभामंडल था, जिसे नियति ने राजनीति की ओर ढकेल दिया था। राष्ट्रीय मुद्दों पर कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी से इतर वह विकल्प पेश करते थे। वह बात-बात में ‘झाड़े रहो कलेक्टरगंज’ कहते थे। यह उन पर कानपुर की छाप थी। कानपुर से उन्होंने तालीम पाई थी।

इंद्रजीत जैन की बात रखी

कहा जाता है कि उनके एक दोस्त इन्द्रजीत जैन ने उनसे कहा कि जब तक अटल, आडवाणी और जोशी तीनों मेरे घर खाना नहीं खा लेंगे तब तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री नहीं बन सकेंगे। अटल जी ने उनके यहां खाना खाया और आडवाणी, जोशी पहले खा चुके थे। इसे संयोग कहें कि इसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली पहुंचे तो कानपुर प्रधानमंत्री बनकर ही लौटे। इन्द्रजीत जैन के घर पर वह कानपुर में रुका करते थे। आजकल यहां डॉ.मुरली मनोहर जोशी रुका करते हैं।

अटल जी का फलक बहुत विस्तृत था। वह 6, रायसीना रोड पर रहते थे जहां सामने टैक्सी स्टैंड है। 1984 में दंगे हो रहे थे। बगल में युवक कांग्रेस का ऑफिस है। युवा कांग्रेसी टैक्सी स्टैंड की ओर बढ़े क्योंकि बहुत से ड्राइवर सरदार थे। अटल जी भीड़ को चीरकर बीच में आए और कहा कि ऐसा नहीं होने देंगे। उनकी बात मान ली गई।

अंग्रेजी और जसवंत सिंह

यह बात भी उन्हीं दिनों की है। अंग्रेजी में उनका हाथ थोड़ा सा तंग था। उनका अंग्रेजी का अधिकांश काम लालकृष्ण आडवाणी देखते थे, लेकिन खबरें मीडिया तक बहुत पहुंच जाती थीं। एक दिन अटल ने डॉ.जोशी से कहा कि उन्हें अंग्रेजी का एक सहयोगी चाहिए।

डॉ.जोशी ने कहा कि वह खुद काम करने को तैयार हैं पर अटल के मन में कुछ और चल रहा था। इसी बीच भैरो सिंह शेखावत आए। बात चल ही रही थी कि उन्होंने बताया कि उनके पास एक आदमी है जो बहुत अच्छी अंग्रेजी जानता है। राजनीतिक भी नहीं है।

कुछ दिनों बाद अटल बिहारी वाजपेयी के पास भैरो सिंह शेखावत जसवंत सिंंह को लेकर पहुंचे। जसवंत सिंह तब सेना से रिटायर हुए थे। उन्होंने दिल्ली के एक होटल में अपना एक ऑफिस खोल रखा था। जसवंत सिंह एक साल तक अटल के साथ रहे। बाद में उन्हें पार्टी का कार्यसमिति का सस्दय बनाया गया। यही नहीं, वह आगे चलकर वह अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में विदेश मंत्री रहे।

अनंत कुमार बने मंत्री

जब अटल प्रधानमंत्री थे तब अनंत कुमार को उनके दोस्तों ने कर्नाटक से यह सिखाकर भेजा कि वह अटल बिहारी वाजपेयी से मिलकर खुद को मंत्री बनाने का आग्रह करें। अनंत कुमार साहस नहीं जुटा पा रहे थे, लेकिन दोस्तों के कहने पर आए।

अटल जी से मिले मगर कुछ बोल नहीं पाए। लेकिन चलते समय अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने बगल में रखेे हुए इंडियन एयरलाइंस के सिम्बल महाराजा को उनके हाथ पर रख दिया। कुछ दिन बाद हुए विस्तार में अनंत कुमार नागरिक उड्डयन मंत्री बना दिए गए। यह बात 1998 के दिनों की है।

कल्याण और राजनाथ

यूपी में आज के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को जब अटल जी राजनीति में लाकर मेयर का चुनाव लड़वा रहे थे तब उन्हें उनके प्रचार के लिए आयोजित जनसभा में यह कहने में उन्हें कोई गुरेज नहीं हुआ कि मैं अपना प्रतिरूप आपको दे रहा हूं।

अटल जी उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह को बहुत मानते थे। जब कल्याण सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच रिश्तों में तल्खी की इंतहा हो गई और यह तय हो गया कि कल्याण सिंह को हटाकर नया मुख्यमंत्री लाना है तब अटल राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। कल्याण सिंह तैयार नहीं थे। अटल जी ने अपनी इच्छा पर कल्याण सिंह की इच्छा को तरजीह दी।

डॉ.मुरली मनोहर जोशी के सुझाव पर रामप्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया। उस समय भी अटल बिहारी वाजपेयी ने कल्याण सिंह को केन्द्र में कृषि मंत्री बनने का मौका दिया था। हालांकि उन्होंने अपनी सहयोगी नेत्री के सुझाव के चलते इस पर गौर नहीं फरमाया। बाद में राजनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अटल जी के लिए व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा देश था।

कार्यकताओं का ख्याल

अटल जी छोटे कार्यकर्ताओं का भी कितना ख्याल रखते थे, इसे उनके कार्यकर्ता अमित पुरी द्वारा झंडेवाला पार्क को लेकर सर्वोच्च अदालत में लड़ी गई उनकी लड़ाई पर अटल जी की प्रतिक्रिया से समझा जा सकता है।

अमित पुरी 9 साल लखनऊ झंडेवाला पार्क का मुकदमा लड़े। यह मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय तक गया। 14 दिसंबर 1994 को उस समय के मुख्य न्यायाधीश ए.एम.अहमदी ने एक अंतरिम आदेश दिया। उस टिप्पणी से अटल जी बहुत व्यथित हुए।

न्यायालय के इस फैसले पर उन्होंने फरवरी, 1995 को इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा। किसी राजनीतिक कार्यकर्ता द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अटल जी का यह नया व्यक्तित्व सामने आया। बाद में अमित पुरी को उपचुनाव में टिकट मिला। अटल ने उन्हें दो कुर्ते भेजे और कहा कि इन कुर्तों की धवलता कायम रखना।

अंग्रेजी से दूरी

1971 में लखनऊ के रोटरी क्लब के समारोह में अटल आए थे। वहां उन्होंने सबसे कहा कि आप लोग आज ही यह संकल्प ले लें कि रोटरी क्लब के सारे कामकाज आगे से अंग्रेजी में नहीं होंगे। उस समय वह राज्यसभा सदस्य थे। विद्यासागर गुप्त रोटरी क्लब के अध्यक्ष थे।

उन्हीं के निमंत्रण पर अटल जी आये थे। बाद में विद्यासागर गुप्त भाजपा के विधायक बने। बलरामपुर से जब उन्हें चुनाव लडऩा था तो दो लाख रुपए का फंड इक करने का जिम्मा इन्हीं के हवाले था। इनके घर पर बैठक हुई। पैसे तो इक_े हो गए पर इनकी फैक्ट्री पर हुकमरानों का छापा पड़ गया।

कल्याण सिंह से जंग

कल्याण सिंह और अटल बिहारी वाजपेई के रिश्तों को लेकर तमाम खबरें साया हुईं। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बीच की जंग का गवाह लखनऊ बना। दोनों ओर से तीर चले। मुख्यमंत्री बदलने पर अड़ गये अटल बिहारी वाजपेयी। एक बार तो ऐसा भी समय आया कि जब उन्होंने डॉ.जोशी से कहा कि इस विवाद में आपको उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया जाए।

इस पर डॉ. जोशी का जवाब था कि क्या मैं आपके मंत्रिमंडल में आपको अच्छा नहीं लग रहा हूं? बात हसीं-मजाक में टल गई। मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री की लड़ाई में यह भी हुआ कि अटल जी नामांकन करके निकले तो लखनऊ के बेगम हजरतमहल पार्क में रैली थी। उस रैली में लाल जी टंडन बोले, राजनाथ सिंह बोले, लेकिन मंच पर रहते हुए उस समय के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को माइक नसीब नहीं हुआ।

कल्याण ने कार्यक्रम कटवा दिया

प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी टंडन जी के यहां खाना खाने गए मगर कल्याण सिंह को आमंत्रित नहीं किया गया। कल्याण सिंह भी कई बार एयरपोर्ट पर उन्हें लेने नहीं गए। उस चुनाव में तो एक वित्तीय घराने की ओर से उन्हें हराने व सपा उम्मीदवार को जिताने के लिए तिकड़म की गयी।

अटल जी ने उसी घराने में अपना कार्यक्रम दे दिया। हालांकि कल्याण सिंह ने अंतिम समय उस कार्यक्रम को इसलिए कटवा दिया क्योंकि उनको लगता था कि उस घराने की हरकत से अटल जी के साथ उनके रिश्तों में नाहक खटास आई।

राजभवन की प्रेस काफ्रेंस में पत्रकार के.विक्रम राव ने सवाल पूछा कि अटल जी आपका जिसने भी विरोध किया-बलराज मधोक, दीनदयाल शर्मा, मौलीचंद्र शर्मा, गोविन्दाचार्य, सुब्रमण्यम स्वामी आदि किसी को पनपने का मौका नहीं मिला। क्या कारण है कि कल्याण सिंह आपके पास बैठे हैं। अटल जी ने हंसकर जवाब दिया-पार्टी को कल्याण सिंह की जरूरत है।

दांवपेंच के महारथी

पार्टी के कुछ लोग यह भी कहते रहे हैं कि उनके जीवन का सिद्धांत है कि कभी भी बीजेपी को चुनाव में बहुमत न मिले वरना आडवाणी प्रधानमंत्री बन जाएंगे क्योंकि गठबंधन के लिए अटल ज्यादा पसंदीदा उम्मीदवार थे। अटल राजनीति के दांवपेंच भी बहुत अच्छा चल लेते थे।

वैंकया नायडू पार्टी के अध्यक्ष थे। उन्होंने बयान दिया कि इस बार का लोकसभा चुनाव अटल-आडवाणी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। अटल जी अमेरिका में थे। लौटकर उन्होंने कह दिया कि आडवाणी नेता हैं। मेरी नहीं उनकी अगुवाई में चुनाव होंगे। फिर क्या था, पार्टी उन्हें मनाने में जुट गई।

आडवाणी ने तय किया कि वह नम्बर 2 पर रहेंगे। 1995 के मुम्बई अधिवेशन में आडवाणी ने अटल का नाम प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में घोषित किया था। अटल गुजरात के गांधीनगर और लखनऊ दोनों जगह से लड़े और दोनों जगह से जीते। बाद में गांधीनगर से इस्तीफा दे दिया। तब तक उन्हें हवाला कांड से क्लीनचिट मिल गई थी।

मोदी का चाहते थे इस्तीफा

1953 में वह जनसंघ में आए और 1972 में स्थापित हो गये। पार्टी को खड़ा करने में अटल ने बहुत मेहनत की। खूब घूमते थे। 1972 से 77 तक वह रिजर्व रहे। संसद में परफार्मेंस पर ध्यान दिया। 1984 से 95 अकेले रहे। 1995 के बाद ‘बेस्ट ऐलीमेंंट’ के तौर पर 2004 तक बने रहे।

संवेदनशील होने के कारण उनके जीवन में बहुत उतार चढ़ाव आए। उनकी संवदेनशीलता इससे समझी जा सकती है कि उन्हें खरगोश पालने का बेहद शौक था। एक बार उनके खरगोश के बच्चे हुए। अटल जी संसद गए थे। उसी बीच कुछ बच्चे टलहते हुए धूप में चले गए। उनमें से तीन बच्चे मर गए।

अटल जी इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानते रहे। उन्हें राष्ट्रपति बनने का सुझाव उस समय के संघ प्रमुख डॉ. राजेन्द्र सिंह रज्जू भइया ने दिया था। अटल जी कुछ बोले नहीं। इसी बार एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाया गया। अटल जी को अयोध्या में भाजपा के सीधे जुडऩे में आपत्ति थी। नरेन्द्र मोदी को लेकर अटल और आडवाणी में मतभेद थे। अटल जी गुजरात दंगों के बाद नरेन्द्र मोदी का इस्तीफा चाहते थे मगर आडवाणी मानते थे कि मोदी अपराधी नहीं हैं, बल्कि वह स्वयं राजनीति के शिकार हो गए हैं।

खानेपीने के शौकीन

कानपुर, मथुरा, लखनऊ, बलरामपुर उनकी हंसी-ठिठोली का गवाह है। उनको मथुरा के पेड़े, ठंडाई, मालपुए, चौक की आम की खीर, आलू, गोभी, मूली और साग के पराठे व जबेली-दही बहुत पसंद थे। चौक की चाट, मिठाइयां, रबड़ी, खीर व कढ़ी-चावल के शौकीन थे। वह अच्छा भोजन भी बनाते थे। चाइनीज खाने का उन्हे बेहद शौक था।

सूर्यकांत त्रिपाठी, निराला, हरिवंश राय बच्चन, शिवमंगल सिंह सुमन और फैज अहमद फैज उनके पसंदीदा कवि थे। भीम सेन जोशी, अमजद अली और कुमार गंदर्व ने उन्हें शास्त्रीय संगीत सुनने का शौकीन बना दिया था। नौका विहार भी उनका एक शौक था।

भाषण खुद तैयार करते थे

संसद में दिए गए अपने भाषण वह खूब तैयार करते थे। हालांकि वो भाषण देने के इतने माहिर थे कि उनको सुनने वाला बीच में छोडक़र नहीं जा सकता था। राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन अखबारों का सफल संपादन किया था। जब वह ताजमहल गए थे तो उन्होंने लाल रंग के नहीं नारंगी रंग के गुलाब को कोट में लगाया था। जाना एक अनिवार्य और बेहद दुखदाई क्रिया होती है।

आया है सो जाएगा, राजा, रंक, फकीर मगर अटल बिहारी वाजपेई खुद किस्सागो नहीं थे। लेकिन उनसे जो भी मिला उसके पास अटल जी को लेकर कोई न कोई किस्सा जरूर है। शायद ही भाजपा का कोई ऐसा नेता हो जिसने उनसे कुछ न कुछ न सीखा हो।

लाल जी टंडन उनके बेहद प्रिय लोगों में थे। तभी तो पांच बार जिस लखनऊ सीट से वह सांसद बने वो सीट उन्होंने लालजी टंडन को दी। विपक्ष का भी शायद कोई ऐसा शख्स हो जिसे राष्ट्रीय मुददे पर अटल जी का साथ न मिला हो। इसी मायने में वह अजातशत्रु थे। वह खुलकर हंसते थे, खुलकर बातें करते थे। खुलकर खाते थे। खुलकर जीते थे। उनका खुलापन ऐसा था कि कोई उसमें समा जाए। इसीलिए आज हर तरफ शोक, दर्द, वेदना और उनसे जुड़ी कोई न कोई यादें हैं।

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