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Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: अटल ने बताये थे सुशासन के मायने, नेहरू ने की थी पीएम बनने की भविष्यवाणी
Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने घोषणा की कि 25 दिसंबर को पूर्व प्रधान मंत्री के सम्मान में "सुशासन दिवस" कहा जाएगा।
Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी की आज जन्मशती है। वाजपेयी ने तीन बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में काम किया। पहली बार 1996 में उनका कार्यकाल 13 दिनों का रहा, फिर 1998-1999 के बीच 13 महीनों का दूसरा कार्यकाल रहा और उसके बाद 1999-2004 तक वाजपेयी का पूर्ण कार्यकाल रहा। प्रसिद्ध कवि और लेखक अटलजी प्रधानमंत्री बनने वाले भारतीय जनता पार्टी के पहले नेता थे।
2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने घोषणा की कि 25 दिसंबर को पूर्व प्रधान मंत्री के सम्मान में "सुशासन दिवस" कहा जाएगा।
सरकार ने यह फैसला किया कि हर साल इस दिन को यह सुनिश्चित करने के लिए मनाया जाएगा कि देश के नागरिकों के साथ सरकार द्वारा उचित व्यवहार रहे और उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं और सेवाओं का पूरा लाभ मिले।
आखिर है क्या सुशासन का सिद्धांत
इसको जानने के लिए पहले अटल जी को समझना पड़ेगा। अपनी सोच के चलते अटल जी एक नेता के रूप में पूरे देश में सर्वमान्य रहे। ऐसे नेता जिनकी तारीफ में देश के पहले प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू भी मौन नहीं रह सके थे। अटलजी का नेहरू से एक अलग ही रिश्ता था। आज के राजनीतिक दौर में जब भाजपा जवाहरलाल नेहरू के फैसलों की कटु आलोचना कर रही है। ऐसे में यह बात उल्लेखनीय है कि नेहरू ही वह पहले शखस थे जिसने अटल जी के प्रधानमंत्री होने की भविष्यवाणी कर दी थी। 1957 में जब वाजपेयी पहली बार लोकसभा सांसद बने थे, तब नेहरू ने उन्हें एक विदेशी अतिथि से भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में मिलवाया था। यह तब हुआ जब वाजपेयी नेहरू सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक थे। वाजपेयी ने कश्मीर को भारत और पाकिस्तान के बीच मुद्दा बनाने के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था। ये वाजपेयी के सुशासन के सिद्धांत ही थे जो उनका कद बड़ा और विराट करते गए।
इसी तरह से 1962 में चीन हमले के समय जब भारतीय सेनाएं एक के बाद एक मोर्चे पर हार का सामना कर रही थीं, तब वाजपेयी ही थे जिसने नेहरू से मुलाकात की और उनसे संसद का सत्र बुलाने को कहा। वाजपेयी के तर्कों से नेहरू सहमत हुए और संसद का सत्र बुलाया गया। संसद में चीनी आक्रमण पर बोलते हुए वाजपेयी ने नेहरू से कहा कि उन्होंने चीनी खतरे को नजरअंदाज करके "बहुत बड़ा पाप" किया है।
इसी तरह से जब जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ तो ये अटलजी थे जिन्होंने नेहरू के व्यक्तित्व की तुलना वाल्मीकि के महाकाव्य रामायण में रचित भगवान राम से की थी। लेकिन तुलना से पहले, वाजपेयी ने नेहरू को भारत माता का "पसंदीदा राजकुमार" कहा था। वाजपेयी ने कहा, "भारत माता आज शोक में डूबी हुई है। उसने अपना पसंदीदा राजकुमार खो दिया। मानवता आज दुखी है। उसने अपना भक्त खो दिया है। शांति आज बेचैन है। उसका रक्षक नहीं रहा। दलितों ने अपना आश्रय खो दिया है। आम आदमी की आँखों की रोशनी चली गई है।" भारतीय राजनीति में विरोधी पार्टी के सांसद के मुख से इस तरह के उद्गार निकलना उस समय भी अप्रत्याशित था। और आज भी अप्रत्याशित है। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी का अंदाज निराला था वह दुश्मन को भी दोस्त बनाने की कला जानते थे।
वाजपेयी ने देश को अपने व्यवहार और सबको साथ लेकर चलने की नीति के जरिए ऐसे लोकतांत्रिक मानदंड स्थापित किए जिनकी मिसाल आज भी दी जाती है। उनका सुशासन का सिद्धांत भी प्रसिद्ध है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य सरकार की लोगों के प्रति जिम्मेदारियों के लिए जागरूकता फैलाना है। प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी कई जनकेंद्रित नीतियों को अपनाया जिसमें किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नदियों की जोड़ने की योजना, राष्ट्रीय ग्राम स्वास्थ्य कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाएं शुरू करायीं। इन योजनाओं का सुशासन के नजरिए से दूरगामी असर समाज पर पड़ा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अटल जी के सुशासन सिद्धांत का पूरी तरह से अनुसरण किया और खुद को प्रधान सेवक घोषित करते हुए लोगों की सेवा करना, उनकी सभी अपेक्षाएं संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत पूरी करना, सरकारी नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करना पर अपना जीवन समर्पित कर दिया। अटल जी की नीतियां, नेतृत्व और दिशा निर्देशन आज भी सरकारों के लिए प्रेरणा और आदर्श की तरह काम करती हैं। इसीलिए सुशासन दिवस मनाया जाता है।