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Atal Bihari Vajpayee Jayanti: सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के नेता भी थे अटल के मुरीद, नेहरू ने 1957 में ही कर दी थी PM बनने की भविष्यवाणी

Atal Bihari Vajpayee Jayanti: सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के नेता भी उन्हें पूरा सम्मान दिया करते थे। इसीलिए उन्हें भारतीय राजनीति का अजातशत्रु कहा जाता है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 25 Dec 2023 8:09 AM IST
Atal Bihari Vajpayee Jayanti
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Atal Bihari Vajpayee Jayanti  (photo: social media )

Atal Bihari Vajpayee Jayanti: देश की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ने वाले नेताओं में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम काफी आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। वाजपेयी उन बिरले राजनीतिज्ञों में थे जिनकी बहुमुखी प्रतिभा का हर कोई मुरीद था। सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के नेता भी उन्हें पूरा सम्मान दिया करते थे। इसीलिए उन्हें भारतीय राजनीति का अजातशत्रु कहा जाता है। भारतीय जनता पार्टी को पूरी मजबूती के साथ देश में स्थापित करने वाले वाजपेयी का जन्म आज ही के दिन 1924 में हुआ था। अपनी समावेशी राजनीति के चलते कई बार अटल ने अपने विरोधियों को भी अपने साथ लेकर चलने में कामयाबी हासिल की थी।

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर आज तक हर प्रधानमंत्री ने अटल बिहारी वाजपेयी को पूरा सम्मान दिया। अटल की प्रतिभा से प्रभावित होकर पंडित नेहरू ने 1957 में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि एक दिन अटल बिहारी वाजपेयी उनकी सीट (प्रधानमंत्री की सीट) पर कब्जा करेंगे और देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। पंडित नेहरू की और भविष्यवाणी 1996 में सब साबित हुई जब अटल जी ने देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने कुल तीन बार देश के प्रधानमंत्री पद के दायित्व को संभाला।

तीखे विरोध के बावजूद नेहरू थे मुरीद

एक राजनेता के तौर पर जितनी प्रसिद्धि अटल बिहारी वाजपेयी को मिली, उतनी कम ही लोगों को नसीब होती है। नेहरू और वाजपेयी में एक बात यह सामान थी कि दोनों अपनी-अपनी पार्टी के पहले ऐसे नेता थे जो देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। जिस समय नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे, उस समय वाजपेयी नेहरू की नीतियों का विरोध करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते थे। खासतौर पर कश्मीर को लेकर नेहरू की नीतियों का वाजपेयी ने जमकर विरोध किया था।

वाजपेयी ने कई मुद्दों पर भले ही नेहरू का तीखा विरोध किया मगर दोनों के संबंधों को यूं समझ जा सकता है कि एक बार पंडित नेहरू ने वाजपेयी के बारे में बड़ी भविष्यवाणी कर दी थी। पंडित नेहरू ने 1957 में ही इस बात का ऐलान कर दिया था कि वाजपेयी एक न एक दिन जरूर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।


1957 में पहली बार बने सांसद

वाजपेयी ने अपने जीवन का पहला चुनाव 1955 में लड़ा था। 1955 में पंडित नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित के इस्तीफा देने के कारण लखनऊ सीट पर उपचुनाव हुआ था मगर इस उपचुनाव में वाजपेयी तीसरे नंबर पर रहे थे।

दो साल बाद देश में आम चुनाव होने पर 1957 में वाजपेयी तीन सीटों पर किस्मत आजमाने के लिए उतरे। 1957 में वाजपेयी ने यूपी के बलरामपुर, लखनऊ और मथुरा सीटों से नामांकन दाखिल किया था। बलरामपुर में उन्हें जीत हासिल हुई जबकि लखनऊ और मथुरा सीटों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लखनऊ सीट पर वे दूसरे नंबर पर रहे थे। हालांकि बाद के दिनों में अटल ने लखनऊ संसदीय सीट पर कई बार जीत हासिल करने में कामयाबी हासिल की।


जब नेहरू ने की पीएम बनने की भविष्यवाणी

भारतीय जनसंघ उस समय काफी छोटी पार्टी थी मगर इसके बावजूद पंडित नेहरू वाजपेयी की बातों को काफी ध्यान से सुना करते थे। संसद में वाजपेयी के भाषण को पंडित नेहरू काफी महत्व दिया करते थे। पहली बार सांसद बनने पर भी वाजपेयी आंतरिक मामलों के साथ ही अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी काफी जोरदार ढंग से अपनी बात संसद में रखा करते थे।

वाजपेयी के व्यक्तित्व और भाषण से पंडित नेहरू इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि 1957 में ही उन्होंने वाजपेयी के बारे में एक बड़ी भविष्यवाणी कर डाली। 1957 में एक विदेशी डेलीगेशन भारत आया हुआ था। उस विदेशी डेलीगेशन के सामने वाजपेयी का परिचय कराते हुए नेहरू बोले-ये युवा एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा। आखिरकार नेहरू की बात सच साबित हुई और वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुए।


नेहरू की तस्वीर हटाने पर हुए थे नाराज

1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर वाजपेयी को देश का विदेश मंत्री बनाया गया था। उस समय सत्ता बदलते ही ब्यूरोक्रैट्स ने कांग्रेस के निशान वाले चिन्ह और उनके नेताओं की तस्वीर हटानी शुरू कर दी। उन्हें लग रहा था कि इंदिरा विरोध पर बनी सरकार में कांग्रेस की निशानियों से सत्ता में बैठे लोग नाराज हो सकते हैं।

उस समय जब वाजपेयी एक दिन अपने मंत्रालय पहुंचे तो उन्हें अपने दफ्तर में एक हिस्सा खाली दिखाई पड़ा। इस पर वाजपेयी ने अपने सचिव से कहा कि मैं पहले भी इस मंत्रालय में आया करता था और इस जगह पर पर पंडित नेहरू की तस्वीर हुआ करती थी। आखिरकार वह तस्वीर कहां चली गई उसे तस्वीर को पुन: उसी स्थान पर लगाया जाए। उनके निर्देश पर पंडित नेहरू की तस्वीर को फिर उसी स्थान पर लगाया गया। संसद में एक बार अपने भाषण के दौरान वाजपेयी ने इस प्रकरण का जिक्र भी किया था। यह सुनकर सदन में बैठे सांसद मेजें थपथपानेने लगे थे।


पंडित नेहरू के निधन पर दिया था भावुक भाषण

पंडित नेहरू के निधन पर भी वाजपेयी ने काफी भावुक भाषण दिया था। उन्होंने कहा था कि भारत माता आज दुखी है। देश ने आज अपना चहेता राजकुमार खो दिया है। देश के आम आदमी ने अपना आंखों का सितारा खो दिया है। देश के वंचित तबके ने अपना रहनुमा खो दिया। पर्दा अब गिर चुका है। दुनिया जिस चलचित्र को ध्यान से देख रही थी, उसके मुख्य किरदार ने अपना अंतिम दृश्य पूरा किया और सर झुकाकर विदा हो गया।


पीएम के रूप में तीन बार संभाली कमान

पंडित नेहरू की भविष्यवाणी के बाद वाजपेयी 1996 से 1999 के बीच तीन बार देश के प्रधानमंत्री चुने गए। वे पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने मगर उनकी सरकार सिर्फ 13 दिनों तक ही रह पाई। इस दौरान इस्तीफा देने से पूर्व अटल का भाषण आज भी याद किया जाता है। 1998 में वे दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुए मगर उनकी सरकार 13 महीने तक ही चल सकी। 1999 में वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और इस बार उन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। वाजपेयी के बारे में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वे पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।

इस कार्यकाल के दौरान वाजपेयी ने सहयोगी दलों के साथ बेहतर सामंजस्य बनाए रखा। देश की सियासत में वाजपेयी अकेले ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष में भी काफी सम्मान हासिल था। वे जब संसद में बोला करते थे तो सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष के लोग भी पूरे सम्मान के साथ उनकी बातों को सुना करते थे।



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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