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August Kranti Diwas: अंग्रेजों के खिलाफ बापू ने फूंका था संघर्ष का बिगुल, गोरों को दिखाई थी भारत की ताकत

August Kranti Diwas: 9 अगस्त की तारीख को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है। अंग्रेजों के खिलाफ इस लड़ाई में बापू की ओर से दिए गए करो या मरो के नारे का जादुई असर दिखा था।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 9 Aug 2022 2:21 AM GMT
August Kranti Diwas
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August Kranti Diwas (photo: social media )

August Kranti Diwas: आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में आजादी के लिए किए जाने वाले संघर्ष को याद करना भी जरूरी है। आज वह ऐतिहासिक दिन है जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने देश को आजादी दिलाने और अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ा था। इसीलिए 9 अगस्त की तारीख को अगस्त क्रांति दिवस (August Kranti Diwas) के रूप में जाना जाता है। अंग्रेजों के खिलाफ इस लड़ाई में बापू की ओर से दिए गए करो या मरो के नारे का जादुई असर दिखा था।

देश को आजादी दिलाने के लिए स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने अपने स्तर पर कई छोट-बड़े आंदोलन चलाए मगर राष्ट्रपिता बापू की ओर से 9 अगस्त 1942 को छेड़े गए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन ने निर्णायक भूमिका निभाई और इस आंदोलन की ताकत को देखते हुए अंग्रेजों को इस बात का एहसास हो गया कि अब भारत में उनके लिए लंबे समय तक रहना संभावना नहीं है। इस आंदोलन को अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।

देश को एकजुट करने का बड़ा प्रयास

अंग्रेजों की गुलामी से भारत को मुक्ति दिलाने के लिए भारत माता के अनेक सपूतों ने अपनी शहादत दी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद देश की आजादी के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और इसी कड़ी मैं उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन छेड़कर देश भर के लोगों को एकजुट करने का बड़ा प्रयास किया था।

बापू ने करो या मरो का नारा देते हुए देशवासियों का आह्वान किया था कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए उन्हें पूरी तत्परता के साथ एकजुट होकर संघर्ष में जुट जाना चाहिए। इस आंदोलन की शुरुआत बम्बई के एक पार्क में हुई थी और इस पार्क को अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है।

प्रस्ताव के बाद छेड़ा था बड़ा आंदोलन

अगस्त क्रांति का प्रस्ताव 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस के बम्बई में हुए अधिवेशन में पारित किया गया था। इस अधिवेशन में अंग्रेजों के खिलाफ देशव्यापी अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत करने का फैसला किया गया था और उसी के अनुरूप महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। हालांकि कांग्रेस के अधिवेशन में पारित किए गए प्रस्ताव को लेकर भी पार्टी नेताओं में मतभेद उभर आए थे। इसी कारण चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।

पंडित जवाहरलाल नेहरू और अबुल कलाम आजाद भी इस आंदोलन की सफलता को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे मगर महात्मा गांधी के आह्वान पर उन्होंने इस आंदोलन को समर्थन देने का फैसला किया था। लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और अशोक मेहता जैसे नेताओं ने भी इस आंदोलन का भरपूर समर्थन किया था।

इन नेताओं का मानना था कि अंग्रेजों के खिलाफ आर-पार की जंग छेड़ी जानी चाहिए। जानकारों का कहना है कि मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस आंदोलन का विरोध किया था।

अंग्रेजों ने की थी वादाखिलाफी

इस आंदोलन की पृष्ठभूमि को भी समझना जरूरी है। दरअसल अंग्रेज शुरुआत से ही देश की संपत्ति लूटने और यहां के लोगों को धोखा देने की कोशिश में जुटे हुए थे। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मुसीबत में फंसने के बाद अंग्रेजों ने भारत से सैनिकों की सहायता मांगी थी। उन्होंने वादा किया था कि इसके बदले वे देश को आजाद कर देंगे। देश के जांबाज सैनिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों का पूरा साथ दिया।

हजारों भारतीय सैनिक इस युद्ध के दौरान मारे गए मगर युद्ध समाप्त होने के बाद अपनी आदत के अनुरूप अंग्रेजों ने एक बार फिर भारत को धोखा दिया। वे अपने वादे से मुकर गए। अंग्रेजों की वादाखिलाफी से नेताओं को काफी निराशा हुई और इसके बाद ही अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए महात्मा गांधी ने आर-पार की लड़ाई लड़ने का मन बना लिया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आखिरी रास्ते के रूप में अंतिम लड़ाई का बिगुल फूंक दिया था।

अंग्रेजों को दिखाई भारत की ताकत

इस आंदोलन की ताकत को देखते हुए अंग्रेजों में घबराहट फैल गई थी और उन्होंने कांग्रेस नेताओं की ताबड़तोड़ गिरफ्तारी शुरू कर दी थी। आंदोलन की शुरुआत के साथ ही अंग्रेजों ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान का देशवासियों पर काफी असर पड़ा था और इसलिए अंग्रेजों ने बापू को अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया। अंग्रेजों ने इस अहिंसक आंदोलन को निर्ममता से कुचलने की पूरी कोशिश की। जानकारों का कहना है कि अंग्रेजों की निर्ममता की वजह से ही करीब साढ़े नौ सौ लोग इस आंदोलन के दौरान मारे गए थे। घायल होने वाले लोगों की संख्या भी सैकड़ों में थी। आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने करीब साठ हजार लोगों को गिरफ्तार किया था।

इस आंदोलन ने पूरे देश में गजब का असर दिखाया था और अंग्रेजों के खिलाफ पूरा देश एकजुट होकर आवाज बुलंद करने लगा। इस आंदोलन के बाद अंग्रेजों को देशवासियों की ताकत का पूरा एहसास हो गया था। अंग्रेजों ने भीतर ही भीतर समझ लिया था कि अब इस देश में लंबे समय तक हुकूमत करना संभव नहीं है और आखिरकार पांच साल बाद 15 अगस्त 1947 को अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए मजबूर हो गए।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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