जानिए राम मंदिर और करतारपुर गुरुद्वारा साहिब में क्या है कनेक्शन

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है। संविधान पीठ ने शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े की याचिकाएं खारिज कर दीं। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन रामलला को दी है। इसके साथ ही देश की सर्वोच्च अदालत ने मुस्लिम पक्ष को सरकार से 5 एकड़ जमीन देने को कहा है।

Dharmendra kumar
Published on: 9 Nov 2019 6:28 AM GMT
जानिए राम मंदिर और करतारपुर गुरुद्वारा साहिब में क्या है कनेक्शन
X

नई दिल्ली: अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया है। संविधान पीठ ने शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े की याचिकाएं खारिज कर दीं। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन रामलला को दी है। इसके साथ ही देश की सर्वोच्च अदालत ने मुस्लिम पक्ष को सरकार से 5 एकड़ जमीन देने को कहा है।

लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि आज ही राम मंदिर पर ऐतिहासिक फैसला आया है और ऐतिहासिक करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन हो रहा है।

सिखों के गुरु श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के मौके पर कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ। अब सिख श्रद्धालु भारत से पाकिस्तान जाकर आसानी से करतारपुर साहिब में मत्था टेक सकेंगे।

आपको जानकर हैरानी होगी कि राम मंदिर को लेकर पहली एफआईआर आयोध्या में 30 नवंबर 1858 को सिखों के खिलाफ हुई।

रिपोर्ट में कहा गया कि निहंग सिख बाबरी ढांचे में घुस गए हैं और राम नाम के साथ हवन कर रहे हैं। राम मंदिर के लिए पहली एफआईआर हिंदुओ के खिलाफ नहीं सिखों के खिलाफ हुई।

आईए जानते हैं कब-कब क्या हुआ

-सन् 1853 को हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ। उसके बाद से ये विवाद अनवरत जारी है। राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-धार्मिक विवाद होने के कारण ये मामला कोर्ट में पहुंच गया है।

-1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।

-1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगवा दिया।

-वर्ष 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में भगवान राम की पूजा अर्चना के लिए विशेष इजाजत मांगी थी। उसी साल महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदुओं की पूजा जारी रखने के लिए मुकदमा दायर किया।

-निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांरित करने लिए अपील दायर की।

-1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड भी विवादित स्थल पर मालिकाना हक के लिए कानूनी लड़ाई की जंग में कूद पड़ा और मुकदमा दायर किया।

-अयोध्या विवाद में अब विश्व हिंदू परिषद कूद पड़ा और उसने विवादित स्थल का ताला खोलने और रामजन्मभूमि को स्वतंत्र कराने और एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया।

-1984 में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया।

-वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवादित स्थल का ताला खुलवा दिया।

-एक फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदओं को पूजा की इजाजत दे दी। इस घटना के बाद नाराज मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

-1989 से यह मुद्दा राजनीतिक हो गया और विश्व हिंदू परिषद के आंदोलन को भाजपा ने समर्थन देकर राम मंदिर आंदोलन को तेज कर दिया।

-वर्ष 1989 में राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद के निकट राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास की इजाजत दे दी।

-राजीव गांधी के बाद राम मंदिर का मुद्दा भाजपा ने लपक लिया और 25 सितम्बर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली।

-1990 में रथयात्रा पर निकले लालकृष्ण आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया था। उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव थे।

Fir की काॅपी

-आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने केंद्र की तत्कालीन वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था।

-अक्टूबर 1991 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विवादित स्थल के आसपास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

-विवाद इतना बढ़ा कि छह दिसम्बर 1992 को हजारों कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद को गिरा दिया और एक अस्थायी मंदिर बना दिया। इस घटना के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में दंगे हुए। इन दंगों में करीब दो हजार लोगों की मौत हो गई।

-उसके दस दिन बाद 16 दिसम्बर, 1992 को लिब्राहन आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्राहन को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।

-लिब्राहन आयोग को 16 मार्च, 1993 तक यानी तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए।

-1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी थे लेकिन कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की ओर से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।

-1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे 1997 में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया।

-2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुईं तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।

-2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।

-30 जून, 2009 को लिब्राहन आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपी।

-31 मार्च, 2009 को समाप्त हुए लिब्राहन आयोग का कार्यकाल अंतिम बार तीन महीने अर्थात् 30 जून तक के लिए बढ़ाया गया।

-2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया, जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू पक्ष को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा।

-न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है, इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा।

-दो न्यायाधीशों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं, इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान पक्षों को दे दिया जाए लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

-उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 12 अगस्त, 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार

होने का दावा किया।

-फैसले के विरोध में मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। शनिवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

Next Story