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Ayodhya : कोरिया की रानी का अयोध्या से क्या है सम्बन्ध ?

Ayodhya : इस भव्य दिन का इंतज़ार सिर्फ भारत देश में ही नहीं अपितु बाहर के भी कई देशों में किया जा रहा है। थाईलैंड से लेकर इंडोनेशिया तक और श्री लंका से लेकर साउथ कोरिया तक बहुत बड़ा वर्ग है।

Aakanksha Dixit
Written By Aakanksha Dixit
Published on: 16 Jan 2024 11:55 AM IST
India News
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suriratna and raja suru 

Ayodhya : 22 जनवरी को होने वाली प्रभु श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा का समारोह किसी से छुपा नहीं है। हर दिन रोज़ ऐसी ख़बरें सुनने को मिलती है जिससे पता चलता है कि राम मंदिर के लिए जनता का उत्साह उनका उमंग तमाम ऊँचाइयाँ पार कर चूका है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले 11 दिन का अनुष्ठान शुरू किया है। देशभर के साधु संत अयोध्या कूच कर चुके है। प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन अयोध्या में 40 लाख दीपों की मदद से प्रभु श्री राम की योद्धा वाली प्रतिकृति बनाई जा रही है। पहली बार ऐसा हुआ है कि दिवाली से पहले हजारों मिट्टी के दीये बिकने शुरू हो गए। मंदिर परिसर से लगातार आ रही तस्वीरें हम सभी का मन मोह रही है। गुजरात से लेकर उड़ीसा तक न जाने कितनी झाकियां अयोध्या के लिए निकल चुकी है। मेहमानों के लिए खास प्रसाद भी तैयार किया जा रहा है। अयोध्या की हर गली दुल्हन की तरह सजायी गयी है।

और भी कई देशों को है इस भव्य दिन का इंतज़ार

अगर हम आपसे कहे कि इस भव्य दिन का इंतज़ार सिर्फ भारत देश में ही नहीं अपितु बाहर के भी कई देशों में किया जा रहा है। थाईलैंड से लेकर इंडोनेशिया तक और श्री लंका से लेकर साउथ कोरिया तक बहुत बड़ा वर्ग है, जो इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है। ये वो देश है जिनका हमारी तरह श्री राम जी से सदियों पुराना नाता है। भारत में हम श्री राम की नगरी को अयोध्या कहते है, वहीँ इंडोनेशिया में योग्या के नाम से जाना जाता है। हम रामकथा कहते है वहीं ये लोग इसे काकावीन कहते है। थाईलैंड की राजधानी को तो पंद्रहवी सदी में अयुथया कहा जाता था। स्थानीय भाषा में वहां के लोग उसे अयोध्या ही कहते थे। थाई संस्कृति का राम भगवान से काफी जुड़ाव है। यहां के राजा अपने नाम के साथ राम लिखते थे।

कोरिया का है महत्वपूर्ण सम्बन्ध

इन सब गाथाओं के बीच एक सबसे दिलचस्प गाथा है, जो जुड़ी है दक्षिण कोरिया से। इसके बारे में शायद ही आप जानते होंगे। अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना ने दक्षिण कोरिया के राजा सुरू से प्रेम विवाह किया था। यही वजह है कि दक्षिण कोरिया के लोग अयोध्या को अपना ननिहाल भी मानते है। आज हम आपको बताएंगे इसकी पूरी कहानी। ये कहानी शुरू होती है 48 ईसापूर्व। अयोध्या में एक राजकुमारी रहती थी सुरीरत्ना। सुरीरत्ना के पिता का नाम पद्मसेन था और माँ थी इंदुमती। पद्मसेन का कौशल साम्राज्य पर राज था। उस समय का कौशल साम्राज्य आज के उत्तर प्रदेश से लेकर उड़ीसा तक फैला था। एक दिन राजा पद्मसेन को सपना आया कि उनकी बेटी का विवाह कोरिया के राजा किम सुरु से होगया। इस सपने की मर्याद रखते हुए उन्होंने अपनी बेटी को पूरे सम्मान के साथ समुद्र के रास्ते से दक्षिण कोरिया भेज दिया। दो महीने की लम्बी यात्रा के बाद रानी सुरीरत्ना दक्षिण कोरिया के किमहये राज्य पहुँच गयी। जिस दौरान सुरीरत्ना कोरिया की यात्रा के लिए निकली थी उसी दौरान कोरिया के राजा पर भीं शादी के लिए दबाव पड़ रहा था। लेकिन राजा का मानना था कि यह सब स्वर्ग से तय होता है। उसके बाद उन्होंने अपने सिपाहियों को दक्षिण आइलैंड की तरफ जाने को कहा। सिपाहियों ने वही किया वहां जाकर उनको एक जहाज़ दिखाई दिया जिसकी सूचना उन्होंने राजा को दी। राजा ने उनको दरबार में लाने को कहा मगर रानी ने मना कर दिया। जिसके चलते राजा ने उनके लिए वही तट किनारे टेंट की व्यवस्था करने को कहा। इसके बाद रानी अपने पूरे काफिले के साथ वहां रूक गयी। रानी से मिलने के राजा स्वयं वहां पहुंचे। रानी ने जब राजा सुरु को सपने के बारे में बताया तो राजा का जवाब सुनकर भी वह सन्न रह गयी। उन्होंने कहा उन्हें भी इस सपने का आभास पहले ही हो चूका था। इसीलिए उन्होंने अभी तक किसी और से शादी नहीं की। इसके बाद दोनों ने विवाह कर लिया। शादी के बाद रानी सुरीरत्ना को हेओ ह्वांग ओक नाम दिया गया।

वहां की 60 मिलियन जनता इनकी वंशज है

शादी के बाद उन्होंने राजा से कहा की वह अपने दो बच्चों को अपना सरनेम देना चाहती है। कोरिया के 60 मिलियन लोग खुद को उनका वंशज मानती है। सूत्रों की माने तो दक्षिण कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम दे-जुंग और पूर्व प्रधानमंत्री पार्क जून-हये भी उनके वंशज है। रानी सुरीरत्ना की इस गाथा का प्रमाण सान्ग युक सकी नमक एक कोरियाई ग्रन्थ में देखने को मिलता है।



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Aakanksha Dixit

Aakanksha Dixit

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नमस्कार मेरा नाम आकांक्षा दीक्षित है। मैं हिंदी कंटेंट राइटर हूं। लेखन की इस दुनिया में मैने वर्ष २०२० में कदम रखा था। लेखन के साथ मैं कविताएं भी लिखती हूं।

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