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काली तारीख 6 दिसंबर, जब अयोध्या रोई थी खून के आंसू...जानिए हर घंटे की कहानी
6 दिसंबर 1992 का दिन देश ही नहीं विश्व के इतिहास का सबसे काला दिन बन गया है। हजारों लोग आपस में लड़े-भिड़े, कत्लेआम हुए, उन घावों की टीस आज भी दिलों में उठती है। सिर्फ इतना ही नहीं आज-तक उस घटना से पैदा हुआ बेवजह का टकराव जारी है…
आशीष शर्मा 'ऋषि'
6 दिसंबर 1992 का दिन देश ही नहीं विश्व के इतिहास का सबसे काला दिन बन गया है। हजारों लोग आपस में लड़े-भिड़े, कत्लेआम हुए, उन घावों की टीस आज भी दिलों में उठती है। सिर्फ इतना ही नहीं आज-तक उस घटना से पैदा हुआ बेवजह का टकराव जारी है… कोई शौर्य दिवस मना रहा है, तो कोई कलंक दिवस, लेकिन जिन पर गुजरा उनसे पूछें वो…वो क्या मनाते हैं? कभी सोचा है?…आज उस अमानवीय घटना की बरसी है।
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गंगा-जमुनी तहजीब का संगम है अयोध्या, हिंदुओं के लिए रामलला तो मुस्लिमों के पैगंबरों, बौद्धों के धर्मगुरुओं और जैनियों के तीर्थकरों की कर्मभूमि भी यही है। अयोध्या को अपनों ने ही ऐसे घाव दिए जो नासूर बन गए और दर्द आज भी कायम हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था की देश में साम्प्रदायिक दंगे हुए। आजादी मिली तो दंगे, आजाद हुए तो दंगे। 1984 में दो सिक्खों की गलती की सजा पूरे सिक्ख समुदाय को भुगतनी पड़ी और देश में नरसंहार हुआ। अभी 84 के जख्म भरे भी नहीं थे कि 1992 में एक बार फिर हिन्दू-मुसलमान आमने-सामने थे। एक बार फिर धर्म की आग ने हजारों मासूमों की बलि ले ली। देश में ही नहीं पड़ोसी बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी बेगुनाह हिन्दुओं का खून बहा।
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अयोध्या की कहानी
1528: पांच सौ वर्ष पहले अयोध्या में एक ऐसे स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। कहा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने ये मस्जिद बनवाई थी। जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया था।
1853: हिंदुओं का आरोप था कि राम मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहला दंगा हुआ।
1859: ब्रिटिश सरकार ने मामले की संवेदनशीलता को देख तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दी।
1885: विवाद कोर्ट पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।
23 दिसंबर, 1949: तक़रीबन 50 हिंदुओं ने मस्जिद में कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख नियमित पूजा आरम्भ कर दी। इसके बाद मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया।
5 दिसंबर, 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा पाठ जारी रखने और मस्जिद में राम की मूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को यहीं से ‘ढांचा’ नाम मिला।
17 दिसंबर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।
18 दिसंबर, 1961: यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
1984: विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व मंदिर निर्माण के लिए अभियान आरंभ किया।
1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। इसपर नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।
11 नवंबर 1986: विश्व हिंदू परिषद ने विवादित मस्जिद के पास की ज़मीन पर गड्ढे खोदकर शिला पूजन किया।
1987 में यूपी की तत्कालीन सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की कि विवादित मस्जिद के मालिकाना हक़ के लिए ज़िला अदालत में चल रहे चार अलग अलग मुक़दमों को एक साथ जोड़कर एक साथ सुनवाई की जाए।
जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने विहिप को औपचारिक समर्थन दिया।
जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।
9 नवम्बर, 1989: तत्कालीन पीएम राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी।
25 सितम्बर, 1990: बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे भड़क गए।
नवम्बर 1990: आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया।
अक्टूबर 1991: यूपी में बीजेपी की सरकार थी, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सरकारी तौर पर बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अधिकार में ले लिया।
6 दिसंबर, 1992: देश भर से अयोध्या में पहुचें कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढाह दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए। जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। पीएम पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया।
16 दिसंबर, 1992: जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन।
जनवरी 2002: पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।
अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की बेंच ने सुनवाई शुरू की।
मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद हाई कोर्ट के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।
सितम्बर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए।
अक्टूबर 2004: आडवाणी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की भाजपा की प्रतिबद्धता दोहराई।
जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया।
जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
28 सितम्बर 2010: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया।
30 सितम्बर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
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6 दिसंबर 1992 कैसे क्या हुआ..
1992: विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज़्यादा लोग मारे गए।
5 दिसंबर, 1992 लाखों की संख्या में भीड़ इकट्ठा हो रही है। दूर दूर से लोग इसमें हिस्सा लेने अयोध्या पहुँच रहें हैं। कारसेवको का नारा बार-बार गूंज रहा है… मिट्टी नहीं सरकाएंगे, ढांचा तोड़ कर जाएंगे। ये तैयारी एक दिन पहले की गयी थी। कारसेवकों की भीड़ ने अगले दिन 12 बजे का वक्त तय किया कारसेवा शुरू करने का। सबके चेहरे पर जोश और एक जूनून देखा जा रहा था।
6 दिसंबर, सुबह 11 बजे: सुबह 11 बजते ही कारसेवकों के एक बड़ा जत्था सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन उन्हें वापस पीछे धकेला दिया जाता है। तभी वहां नजर आतें हैं वीएचपी नेता अशोक सिंघल, कारसेवकों से घिरे हुए और वो उन्हें कुछ समझाते हैं। थोड़ी ही देर में उनके साथ बीजेपी के बड़े नेता मुरली मनोहर जोशी भी इन कारसेवकों से जुड़ जातें हैं। तभी भीड़ में एक और चेहरा नजर आता है लालकृष्ण आडवाणी का। सभी सुरक्षा घेरे के भीतर मौजूद हैं और लगातार बाबरी मस्जिद की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। कारसेवकों के नारे वातावरण में गूंज रहें हैं। सभी मंदिर के दरवाजे पर पहुंचतें हैं और मंदिर के दरवाजे को तोड़ने की कोशिश करतें हैं| पहली बार मस्जिद का बाहरी दरवाजा तोड़ने की कोशिश की जाती है लेकिन पुलिस इनके कोशिश को नाकाम करती है।
6 दिसंबर, सुबह साढ़े 11 बजे: मस्जिद अब भी सुरक्षित थी। आज के दिन ऐसी थी जो सदियों तक नासूर बने रहने वाली थी। तभी वहां पीली पट्टी बांधे कारसेवकों का आत्मघाती दस्ता आ पहुंचता है। उसने पहले से मौजूद कारसेवकों को कुछ वो कुछ समझातें हैं। सबके चेहरे के भाव से लगता है कि वो किसी बड़ी घटना के लिए सबको तैयार कर रहे हैं। तभी एक चौकाने वाली घटना होती है। बाबरी मस्जिद की सुरक्षा में लगी पुलिस की इकलौती टुकड़ी धीरे धीरे बाहर निकल रही है। न कोई विरोध, न मस्जिद की सुरक्षा की परवाह। पुलिस के निकलते ही कारसेवकों का दल मस्जिद के मेन गेट की तरफ बढ़ता है| दूसरा और बड़ा धावा बोला दिया जाता है। जो कुछ पुलिसवाले वहां बचे रह गए थे वो भी पीठ दिखाकर भाग खड़े होतें हैं।
6 दिसंबर, घडी में दोपहर के 12 बज रहे थे एक शंखनाद पूरे इलाके में गूंज उठाता है। वहाँ सिर्फ कारसेवकों के नारों की आवाज गूंज रही है। कारसेवकों का एक बड़ा जत्था मस्जिद की दीवार पर चढ़ने लगा है। बाड़े में लगे गेट का ताला भी तोड़ दिया गया है। लाखों के भीड़ में कारसेवक मस्जिद में टूट पड़तें हैं और कुछ ही देर में मस्जिद को कब्जे में ले लेतें हैं। तभी इस वक्त तत्कालीन एसएसपी डीबी राय पुलिसवालों को मुकाबला करने के लिए कहतें हैं कोई उनकी बातें नहीं सुनता है। सबके दिमाग में एक ही सवाल उभरा कि क्या पुलिस ड्रामा कर रही हैं। या कारसेवकों के साथ हैं। पुलिस पूरी तरह समर्पण कर चुकी होती है। हाथों में कुदाल लिए और नारे लगते हुए कारसेवक तब तक मस्जिद गिराने का काम शुरू कर देतें हैं। एक दिन पहले की गई रिहर्सल काम आई और कुछ ही घंटों में बाबरी मस्जिद को पूरी तरह ढहा दिया गया।
1990 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजु गुप्ता का बयान: 1990 बैच की आईपीएस अधिकारी अंजु गुप्ता 6 दिसंबर 1992 को ढांचे के ध्वस्त होने के समय फैजाबाद जिले की असिस्टेंट एसपी थीं और उन्हें आडवाणी की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था। साल 2010 में आईपीएस अफसर अंजु गुप्ता ने कहा कि घटना के दिन आडवाणी ने मंच से बहुत ही भड़काऊ और उग्र भाषण दिया था। इसी भाषण को सुनने के बाद कार सेवक और उग्र हो गए थे। अंजु गुप्ता का कहना था कि वह भी मंच पर करीब 6 घंटे तक मौजूद थी, इसी 6 घंटे में विवादित ढांचे को ध्वस्त किया गया था लेकिन उस वक़्त मंच पर आडवाणी मौजूद नहीं थे।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई हजारों निर्दोष मारे गए। राजनीति में भी इसका असर देखने को मिला। इस घटना के बाद कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।