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बाबुल सुप्रियो और मुनमुन सेन में कांटे की टक्कर

seema
Published on: 3 May 2019 12:28 PM IST
बाबुल सुप्रियो और मुनमुन सेन में कांटे की टक्कर
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बाबुल सुप्रियो और मुनमुन सेन में कांटे की टक्कर

कोलकाता। चौथे चरण के मतदान में बर्दवान जिले की आसनसोल संसदीय सीट भी शामिल थी जहां से सिटिंग सांसद और केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो भाजपा के उम्मीदवार हैैं, जबकि उनकी प्रतिद्वंदवी हैं तृणमूल कांग्रेस की मुनमुन सेन। इसके पहले मुनमुन बांकुड़ा से सांसद रही हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान उनके दोस्त हैं, इसलिए वह डंके की चोट पर कह चुकी हैं कि हालात चाहे जो भी हों वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बातचीत करती रहेंगी। इस दोस्ती को भाजपा ने चुनावी मुद्दा बनाया था।

ममता बनर्जी ने मुनमुन सेन के समर्थन में प्रचार में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबुल सुप्रियो के समर्थन में जनसभा की। पिछले दो साल से हर बार रामनवमी के त्यौहार पर यहां दंगे होते रहे हैं और बड़ी संख्या में हिंदीभाषी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इसीलिए इस बार इस सीट पर बेहद दिलचस्प मुकाबला हो गया है।

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स्थानीय लोगों के अनुसार विगत पांच साल में बाबुल सुप्रियो ने यहां बहुत काम किया है। इस बार भी उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। इलाके में सात विधानसभा में से पांच पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है, जबकि बाकी की दो सीटों पर माकपा का कब्जा है। भाजपा के यहां एक भी विधायक नहीं हैं। ऐसे में बाबुल सुप्रियो के लिए इस सीट पर एकतरफा जीत दर्ज करना इतना आसान नहीं होगा।

आसनसोल में रानीगंज है, जहां की कोयला खदानों से निकला कोयला पूरे देश में भेजा जाता है। आसनसोल में ही मैथन बांध है। यह जिला विश्व के सबसे तेजी से विकसित हो रहे जिलों में शामिल है। यहां कई प्रसिद्ध जैन मंदिर हैं। यहां की साक्षरता दर 87 प्रतिशत है। शिक्षण संस्थाओं के लिए भी यह जाना जाता है।

सांप्रदायिक हिंसा का साया

कोयला खदान वाला यह इलाका हाल के समय में सांप्रदायिक हिंसा के लिए भी सुर्खियों में रहा है। ताजा मामला रामनवमी के मौके पर निकले जुलूस पर पथराव के बाद दो समुदायों के बीच हुए दंगों का है। घटना के बाद से पुलिस ने भाजपा के ही कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जिससे क्षेत्र में सत्तारूढ़ तृणमूल के प्रति लोगों की नाराजगी है। संसदीय सीट के विभिन्न इलाकों में तनाव है और लोग खुलकर राजनीति पर बात नहीं करते। माहौल में पसरे सांप्रदायिक तनाव को महसूस करना भी खास मुश्किल नहीं है। नुक्कड़ और चाय दुकानों पर राजनीति पर खुलेआम बहस करने की बंगाल की परंपरा यहां सिरे से गायब है।

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संघ भी है मजबूत

आसनसोल इलाके में कुल वोटरों में 30 फीसदी लोग हिंदीभाषी हैं, जबकि अल्पसंख्यकों की तादाद लगभग 15 फीसदी है। हाल के वर्षों में इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थिति लगातार मजबूत हुई है और वह हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए भजपा के लिए अनुकूल माहौल बनाने में कामयाब रहा है। दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस असंतोष से जूझ रही है। कई स्थानीय नेता मुनमुन सेन की उम्मीदवारी से नाराज हैं। आसनसोल नगर निगम के मेयर जितेंद्र तिवारी को यहां से टिकट मिलने की उम्मीद थी लेकिन ममता ने मुनमुन को तरजीह दी। अंदरूनी गुटबाजी पार्टी के लिए भारी साबित हो सकती है। पिछली बार भी इसी वजह से बाबुल सुप्रियो जीत गए थे और अबकी बार भी हालात लगभग वैसे ही हैं।

तृणमूल नेता और राज्य के श्रम मंत्री मलय घटक कहते हैं कि आसनसोल के लोग जानते हैं कि गड़बड़ी कौन फैला रहा है। यहां इस बार तृणमूल ही जीतेंगी। मुनमुन सेन को उम्मीद है कि बांकुड़ा की तरह यहां भी उनको कामयाबी मिलेगी। वे कहती हैं कि इलाके के लोग भाजपा की नीतियों से परेशान हैं। बीते पांच साल में इलाके में विकास के नाम पर कोई काम नहीं हुआ है, इसलिए लोगों ने सांसद बदलने का मन बना लिया है।

तृणमूल और भाजपा के अलावा कांग्रेस उम्मीदवार विश्वरूप मंडल कहते हैं कि यहां भाजपा और तृणमूल के उम्मीदवार हवाई हैं। जीत के बाद उनके दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे। वाममोर्चा उम्मीदवार गौरांग चटर्जी भी लगभग यही बात दोहराते हैं। वे कहते हैं कि स्थानीय भाजपा सांसद के केंद्र में मंत्री होने के बावजूद इलाके में रोजग़ार समेत दूसरी समस्याएं जस की तस हैं।

कब किसने की जीत दर्ज

1952 : यहां से कांग्रेस के अतुल्य घोष जीते।

1957 : कांग्रेस के मनमोहन दास को जीत मिली।

1962 : कांग्रेस से अतुल्य घोष को मौका मिला और वह विजयी रहे।

1967 : एसएसपी के डी. सेन को विजय मिली।

1971 और १९७७ : सीपीएम के रोबिन सेन को विजय मिली।

1980 : कांग्रेस के आनंद गोपाल मुखर्जी को विजय मिली।

1984 : कांग्रेस के आनंद गोपाल मुखर्जी सांसद चुने गए।

1989,91,96 : सीपीएम के हराधन रॉय लगातार तीन बार सांसद चुने गए।

1998, १९99,2004 : सीपीएम के विकास चौधरी सांसद रहे।

2005 : उपचुनाव में सीपीएम के बंशगोपाल चौधरी सांसद बने।

2009 : सीपीएम के बंशगोपाल चौधरी ने सीट बचाए रखी और 2014 तक सांसद रहे।

२०१४ : भाजपा के बाबुल सुप्रियो ने जीत दर्ज की।

मतदाताओं का आंकड़ा

कोयलांचल क्षेत्र होने की वजह से यहां बड़ी संख्या में बिहार उत्तर प्रदेश और झारखंड के हिंदी भाषी मतदाता हैं। इसके अलावा आदिवासी समुदाय के लोग भी बड़े पैमाने पर रहते हैं। 2011 की जनगगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 2137389 है। इसमें से 19.95 फीसदी ग्रामीण हैं और 80.05 फीसदी शहरी। 2017 की वोटर लिस्ट के मुताबिक यहां मतदाताओं की संख्या 1569569 है।

2014 के आंकड़े

2014 में भाजपा के बाबुल सुप्रियो ने तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन को हराया था। बाबुल सुप्रियो को 419983 वोट जबकि डोला सेन को 349503 वोट मिले। भाजपा को 36.76 फीसदी, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को 30.59 फीसदी, सीपीएम को 22.39 फीसदी और कांग्रेस को मात्र 4.25 फीसदी वोट मिले थे।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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