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भक्तों के लिए खुले बदरीनाथ मंदिर के कपाट, कभी भगवान शिव का था यह निवास स्थान

बदरीनाथ धाम के कपाट शुक्रवार को ब्रह्ममुहूर्त और मेष लग्न में 4 बजकर 15 मिनट पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। बदरीनाथ धाम के कपाट पूरे वैदिक मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले गए।

Dharmendra kumar
Published on: 10 May 2019 3:40 AM GMT
भक्तों के लिए खुले बदरीनाथ मंदिर के कपाट, कभी भगवान शिव का था यह निवास स्थान
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बदरीनाथ: बदरीनाथ धाम के कपाट शुक्रवार को ब्रह्ममुहूर्त और मेष लग्न में 4 बजकर 15 मिनट पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। बदरीनाथ धाम के कपाट पूरे वैदिक मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले गए।

बदरीनाथ के कपाट खुलने पर यहां छह माह से जल रही अखंड ज्योति के दर्शनों के लिए देश-विदेश के तीर्थयात्रियों का बदरीनाथ धाम में पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। पहले ही गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खुल चुके है। जिसके साथ ही चारधाम की यात्रा शुरु हो चुकी है।

परंपरा के मुताबिक बदरीनाथ धाम में छह माह मानव और छह माह देव पूजा होती है। शीतकाल के दौरान देवर्षि नारद यहां भगवान नारायण की पूजा करते हैं। इस दौरान भगवान बदरी विशाल के मंदिर में सुरक्षा कर्मियों के सिवा और कोई भी नहीं रहता। 20 नवंबर 2018 को कपाट बंद कर दिए गए थे और इसके साथ ही चार धाम यात्रा पर भी विराम लग गया था।

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बद्रीनाथ पर पहले भगवान शिव निवास किया करते थे, लेकिन बाद में भगवान विष्णु इस जगह पर रहने लगे। भगवान शिव और भगवान विष्णु न केवल एक दूसरे को बहुत मानते थे बल्कि दोनों एक दूसरे के आराध्य भी थे।

हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, बद्रीनाथ धाम में भगवान शिव अपने परिवार समेत निवास करते थे। एक बार विष्णुजी ऐसा एकांत स्थान खोज रहे थे जहां उनका ध्यान भंग न हो। ऐसे में उन्हें बद्रीनाथ जगह पसंद आई, जो पहले से ही भगवान शंकर का निवास स्थान था। भगवान विष्णु ने ऐसे में तरकीब लगाई। एक छोटे बच्चे का रूप धारण कर वह वो रोने लगे जिसे उनकर माता पार्वती बाहर आईं और बच्चे को चुप कराने की कोशिश की।

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माता पार्वती बच्चे को लेकर घर के भीतर जाने लगीं तो भगवान शंकर को भगवान विष्णु की लीला समझ आ गई। उन्होंने माता पार्वती को मना किया लेकिन वे नहीं मानीं। मां पार्वती ने बच्चे को थपकी देकर सुला दिया। जब बच्चा सो गया तो माता पार्वती घर से बाहर आईं। इसके बाद बच्चे के भेष में लीला रचा रहे श्री हरि विष्णु ने दरवाजे को अन्दर से बंद कर लिया और जब भगवान शिव वापस आए तो बोले कि मुझे ध्यान के लिए ये जगह बहुत पसंद आ गई है। आप कृपा करने परिवार सहित केदारनाथ धाम प्रस्थान करिए। मैं भविष्य में अपने भक्तों को यहीं दर्शन दूंगा। तभी से बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु का लीलास्थल बना जबकि केदारनाथ भगवान शिव की भूमि बना।

Dharmendra kumar

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