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UP: महिला जज ने मांगी इच्छा मृत्यु, CJI को लिखा पत्र, '...महिलाएं यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीख लें'

Banda News: बांदा में तैनात सिविल जज ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से इच्‍छा मृत्‍यु की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि बाराबंकी में तैनाती के दौरान जिला जज ने उनके साथ शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना की।

Anwar Raza
Report Anwar RazaWritten By aman
Published on: 14 Dec 2023 4:25 PM IST (Updated on: 14 Dec 2023 5:53 PM IST)
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सुप्रीम कोर्ट (Social Media)

Banda News : उत्तर प्रदेश के बांदा में तैनात सिविल जज ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से इच्‍छा मृत्‍यु की मांग की है। आरोप है कि, बाराबंकी (Barabanki) में तैनाती के दौरान जिला जज द्वारा शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना की गई। इतना ही नहीं, जिला जज द्वारा रात में मिलने आदि का भी दबाव बनाया गया। पीड़िता ने जिला जज के खिलाफ शिकायत की थी। बावजूद कोई सुनवाई न होने निराश सिविल जज ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश को पत्र लिखकर इच्‍छा मृत्‍यु की मांग की है।

सिविल जज द्वारा इच्छा मृत्यु की मांग के बाद न्यायपालिका को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि, सवाल ये भी हो रहा है कि जब जिला जज ही सुरक्षित महसूस नहीं कर रहीं, तो आम महिलाओं का क्या कहना? इस पत्र के बाद लोगों की नजर सीजेआई के अगले कदम पर है। फिलहाल, बांदा में तैनात सिविल जज ने दो पेज का भारी भरकम पत्र लिखा है।

CJI से मांगी इच्छा मृत्यु

ये वाकया तब का है जब वो बाराबंकी में तैनात थीं। बाराबंकी में तैनाती के दौरान जिला जज द्वारा शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना, रात में मिलने को कहना जैसे वाकये उनके साथ हुए। इससे आजिज आकर उन्होंने शिकायत की। बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई। जिससे निराश होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी। महिला सिविल जज ने अपनी जिंदगी समाप्त करने की अनुमति मांगी है।

पत्र में क्या लिखा महिला जज ने?

महिला जज ने सर्वोच्च न्यायालय को लिखे पत्र में कहा है, 'मुझे एक चलती-फिरती लाश बना दिया गया है। इस प्राणहीन निर्जीव शरीर को अब ढोने का कोई मकसद नहीं है। मैं बड़े उत्साह से न्यायिक सेवा (judicial service) में शामिल हुई थी। उम्मीद थी इससे आम लोगों को न्याय मिलेगा। मुझे क्या पता था कि, मैं जिस भी दरवाजे पर जाउंगी, मुझे न्याय के लिए भिखारी बना दिया जाएगा। POSH एक्ट (वर्कप्लेस पर उत्पीड़न एक्ट) हमसे बोला गया एक बड़ा झूठ है। कोई नहीं सुनता।'

'मेरे साथ कूड़े जैसा व्यवहार हुआ'

आगे लिखती हैं, 'मेरी सेवा के थोड़े से ही समय में मुझे खुली अदालत में दुर्व्यवहार का दुर्लभ सम्मान मिला। मेरे साथ हद दर्जे तक यौन उत्पीड़न किया गया। मेरे साथ बिल्कुल कूड़े जैसा व्यवहार किया गया है। मेरी दूसरों को न्याय दिलाने की आशा थी। लेकिन क्या भला मिला।'

महिला जज- यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीख लें

महिला जज ने लिखा, 'मैं भारत में काम करने वाली महिलाओं से कहना चाहती हूं। यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) के साथ जीना सीखें। यह हमारे जीवन का सत्य है। पॉश अधिनियम, यह हमसे बोला गया एक बड़ा झूठ है। कोई सुनता नहीं, कोई परेशान नहीं करता। उन्होंने लिखा, शिकायत करोगी तो प्रताड़ित किया जायेगा। अगर कोई महिला सोचती है कि आप सिस्टम के खिलाफ लड़ेंगे, तो मैं आपको बता दूं, मैं ऐसा नहीं कर सकती। क्योंकि, मैं जज हूं। मैं अपने लिए निष्पक्ष जांच तक नहीं कर सकी। चलो न्याय क्लोज करें। मैं सभी महिलाओं को सलाह देती हूं कि वे खिलौना या निर्जीव वस्तु बनना सीखें'।

HC में की शिकायत, पूछने तक की जहमत नहीं उठाई

महिला जज ने लिखा, मैंने 2022 में मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद हाई कोर्ट से शिकायत की। मगर, आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। किसी ने भी मुझसे यह पूछने तक की जहमत नहीं उठाई कि क्या हुआ? आप परेशान क्यों हैं? मैंने जुलाई 2023 में हाईकोर्ट की आंतरिक शिकायत समिति से शिकायत की। जांच शुरू करने में ही 6 महीने और एक हजार ईमेल लग गए, जो जांच प्रस्तावित जांच भी है। वह एक दिखावा है। पूछताछ में गवाह जिला न्यायाधीश के तत्काल अधीनस्थ हैं। समिति कैसे गवाहों से अपने बॉस के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह मेरी समझ से परे है। यह बहुत बुनियादी बात है कि निष्पक्ष जांच के लिए गवाह को प्रतिवादी (अभियुक्त)के प्रशासनिक नियंत्रण में नहीं होना चाहिए।'

मेरी प्रार्थना पर ध्यान नहीं दिया गया

उन्होंने कहा, 'मेरी प्रार्थना पर ध्यान नहीं दिया गया। मैंने केवल इतना अनुरोध किया था कि जांच लंबित रहने के दौरान जिला न्यायाधीश का स्थानांतरण कर दिया जाए। लेकिन, मेरी प्रार्थना पर भी ध्यान नहीं दिया गया। ऐसा नहीं है कि मैंने जिला जज के तबादले की प्रार्थना यूं ही कर दी थी। माननीय उच्च न्यायालय पहले ही न्यायिक पक्ष में यह निष्कर्ष दे चुका है कि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरी शिकायतों और बयान को मौलिक सत्य के रूप में लिया जाएगा।'

बस एक निष्पक्ष जांच की मांग की थी

महिला जज ने लिखा, 'मैं बस एक निष्पक्ष जांच की कामना करती थी.अब जिंदगी जीने का कोई मकसद नहीं बचा,जांच अब सभी गवाहों के नियंत्रण में जिला न्यायाधीश के अधीन होगी। हम सभी जानते हैं कि ऐसी जांच का क्या हश्र होता है। जब मैं स्वयं निराश हो जाऊंगी तो दूसरों को क्या न्याय दूंगी? मुझे अब जीने की कोई इच्छा नहीं है। पिछले डेढ़ साल में मुझे एक चलती-फिरती लाश बना दिया गया है। मेरी जिंदगी का कोई मकसद नहीं बचा है। कृपया, मुझे अपना जीवन सम्मानजनक तरीके से समाप्त करने की अनुमति दें।'

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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