एक हजार चमगादड़ों के साथ रहती है यह महिला

raghvendra
Published on: 1 Jun 2018 10:32 AM GMT
एक हजार चमगादड़ों के साथ रहती है यह महिला
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अहमदाबाद: पूरे देश में निपाह वायरस के खतरे के बीच गुजरात की एक महिला दूसरों के लिए अचरज का विषय बनी हुई है। केरल में इस बीमारी से 12 लोगों की मौत के बाद लोग सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को इस वायरस से सतर्क कर रहे हैं। केरल में कई लोगों के इससे संक्रमित होने की खबर है। हालात ये हो गए हैं कि इस वायरस के कारण कई राज्यों में हाई अलर्ट तक घोषित कर दिया गया है।

इस बीमारी के बारे में खास बात यह है कि चमगादड़ों को इसके फैलने का प्रमुख कारण बताया जा रहा है। इसके बावजूद चमगादड़ों को लक्ष्मी स्वरूप मानने वाली गुजरात की इस महिला ने अपने घर में करीब एक हजार चमगादड़ पाल रखे हैं। चमगादड़ों के प्रति प्रेम के कारण ही यह महिला आसपास के लोगों में चामाचिडिय़ा वाली के नाम से जानी जाती है।

पड़ोसी परेशान

पहले पड़ोसियों को भी कोई दिक्कत नहीं थी मगर अब बीमारी फैलने की खबरों के कारण वे जरूर असहज हो गए हैं। अब पड़ोसी चाहते हैं कि चमगादड़ों को घर से हटा दिए जाएं। उनके एक पड़ोसी धुला भाई ने कहा कि देश पर निपाह वायरस का खतरा मंडरा रहा है।

ऐसे में पड़ोस में इतनी भारी संख्या में चमगादड़ों का रहना खतरे से खाली नहीं है। आस-पास रहने वाले लोगों में खौफ का माहौल है, लेकिन फिर भी भी शांता बेन इन्हें हटाने को तैयार नहीं हैं।

स्वास्थ्य विभाग की नींद उड़ी

चमगादड़ों के कारण पड़ोसियों की नहीं बल्कि स्वास्थ्य विभाग और ग्राम पंचायत दोनों की नींद उड़ा दी है। ग्रामीणों ने तो इन चमगादड़ों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। गांव के सरपंच भीमसुख भाई सिपाही ने कहा कि शांता बेन को निपाह के बारे में समझाया जा रहा है। अगर वे चमगादड़ों को हटाने के लिए तैयार हो जाती हैं तो वन विभाग की मदद से चमगादड़ों को उनके घर से निकालने का प्रयास किया जाएगा।

निपाह वायरस के लक्षण

निपाह वायरस से पीडि़त लोगों के ब्रेन में सूजन आ जाती है। बुखार, सिरदर्द, उल्टी और चक्कर आना भी इस इंफेक्शन के लक्षण हैं। इस वायरस से पीडि़त व्यक्ति कोमा में जा सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है। यह इंफेक्शन इतना खतरनाक है कि इससे पीडि़त व्यक्ति 24 से 28 घंटों में कोमा में पहुंच सकता है।

दो कमरों में रहते हैं चमगादड़

गुजरात की 75 वर्षीय शांता बेन प्रजापति राज्य के कडी तहसील के राजपर गांव की रहने वाली हैं। वे गांव में तीन कमरे वाले अपने पुश्तैनी घर में अकेली रहती हैं। उनका एक बेटा भी है मगर वह उनके साथ नहीं रहता। वह अपनी पत्नी के साथ किसी और शहर में रहता है। घर के दो कमरों में चमगादड़ और एक कमरे में शांता बेन खुद रहती हैं। शांता बेन दिलेर महिला हैं और हजारों चमगादड़ों के बीच रहने वाली इस वृद्ध महिला को डरावने लगने वाले चमगादड़ों से डर नहीं लगाता। वे इन चमगादड़ों को लक्ष्मी का अवतार मानती हैं।

शांता बेन करीब पांच साल से चमगादड़ों के साथ रह रही हैं। उनका कहना है कि पिछले चार-पांच साल से वे चमगादड़ों के साथ रह रही हैं। उन्हें न तो दिक्कत होती है और न डर लगता है। हालांकि घर की साफ-सफाई में जरूर थोड़ी दिक्कतें आती हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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