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राजस्थान विस चुनाव में कांटे की लड़ाई में भाजपा या कांग्रेस कौन होगा विनर
राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा किसी भी योजना और कार्यक्रम के तहत लाभ उठाने वाले लोगों से लाभार्थी जनसंवाद के जरिये संपर्क कर अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को गतिशील करने की कोशिश में जुटी है। हालांकि भाजपा से वास्तविक लाभ उठाने वाली उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस हो सकती है।
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हालांकि राजस्थान में तीसरी ताकत भी है। और यह जगह पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा आबाद है। लेकिन एक बात साफ है कि इस राज्य में पिछले 25 सालों में किसी की भी सरकार पलटकर नहीं आई है। और भाजपा से यह अलगाव निश्चित रूप से कांग्रेस को फायदा पहुंचाएगा।
राजस्थान के जयपुर, झुंझनू, नागौर, जोधपुर और उदयपुर में इस बदलाव की आहट दिखाई दे रही है। जोकि कहीं न कहीं कांग्रेस की स्वीकारोक्ति का इशारा कर रही है। यहां के लोगों में भाजपा सरकार के प्रति गुस्सा और मोहभंग की स्थिति साफ झलक रही है। लेकिन यह आक्रोश कांग्रेस के वोट के रूप में कितना बदलेगा यह सिर्फ मतदान के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा। क्योंकि मोदी लहर ने 2013 में कांग्रेस को 21 एमएलए पर समेट दिया था। इस चुनाव में कांग्रेस का कोई एजेंडा भी दिखाई नहीं दे रहा है। कांग्रेस का सिर्फ एक तर्क है कि राजस्थान और दिल्ली में भाजपा सरकारें कुछ कर पाने में असफल रही हैं।
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अब तक के ओपिनियन पोल यही कह रहे हैं कि मतदाता परंपरा को कायम रखते हुए कांग्रेस को सत्ता सौंपने जा रहा है। लेकिन क्या ये संभव हो पाएगा क्योंकि कांग्रेस के भीतर सीटों के गलत बटवारे और प्रदेश नेतृत्व को लेकर गंभीर असंतोष है। इसीलिए भाजपा ने राज्य में पूरी ताकत झोंक दी है। पीएम मोदी यहां पर आधा दर्जन सभाएं कर चुके हैं। मोदी की नागौर, भरतपुर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, कोटा और अलवर की जनसभाओं में जुटी भारी भीड़ इस बात की चुगली कर चुकी है कि मोदी मतदाता का मन बदलने में सफल रहे हैं। मोदी अभी राजस्थान में चार पांच जनसभाएं और कर सकते हैं। अमित शाह वहां डेरा डाले हुए हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी राजस्थान में लगातार सभाएं कर रहे हैं। लेकिन वसुंधरा से नाराज कार्यकर्ता अभी भी एक चुनौती हैं।
भाजपा की रणनीति में बदलाव से कांग्रेस भी सतर्क है। राहुल गांधी की भी राजस्थान में लगातार जनसभाएं जारी हैं। कुल मिलाकर अभी राजस्थान में तस्वीर बहुत साफ नहीं है।