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आजादी के पहले से उठी थी निजता के मौलिक अधिकारों की मांग

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर रोक लगाने के बाद गुरुवार को एक और अहम फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने निजता के अधिकार को भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया। प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकारों के अंतर्गत प्राकृतिक रूप से निजता का अधिकार संरक्षित है। पीठ के सभी नौ सदस्यों ने एक स्वर में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया।

priyankajoshi
Published on: 25 Aug 2017 9:44 AM GMT
आजादी के पहले से उठी थी निजता के मौलिक अधिकारों की मांग
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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर रोक लगाने के बाद गुरुवार को एक और अहम फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने निजता के अधिकार को भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया।

प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकारों के अंतर्गत प्राकृतिक रूप से निजता का अधिकार संरक्षित है। पीठ के सभी नौ सदस्यों ने एक स्वर में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया।

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, एसए बोबडे, आर.के.अग्रवाल, आरएफ नरीमन, ए.एम.सप्रे, डीवाई चन्द्रचूड़, संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे।

आधार की अनिवार्यता को दी गयी थी चुनौती

इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस केएस पुट्टस्वामी, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के पहले चेयरपर्सन रहे मैग्सेसे पुरस्कार सम्मानित शांता सिन्हा और रिसर्चर कल्याणी सेन मेनन ने याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ताओं ने कहा, कोर्ट का आदेश है कि आधार अनिवार्य नहीं होगा और स्वैच्छिक होगा, लेकिन सरकार तमाम योजनाओं जैसे स्कॉलरशिप, राइट टू फूड आदि में इसे अनिवार्य कर रही है। सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर 30 जून के बाद 17 कल्याणकारी योजनाओं में आधार अनिवार्य कर दिया है। इस मामले में आधार कार्ड की अनिवार्यता के खिलाफ दाखिल याचिका पर तुरंत सुनवाई होनी चाहिए और बेंच को इसके लिए आदेश पारित करना चाहिए। इस पर शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से अपना रखने के लिए कहा गया था।

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दो अगस्त को पूरी हुई थी सुनवाई

शुरू में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 7 जुलाई को कहा था कि आधार से जुड़े सारे मुद्दों पर वृहद पीठ को ही निर्णय करना चाहिए और प्रधान न्यायाधीश इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिए कदम उठाएंगे। इसके बाद प्रधान न्यायाधीश के समक्ष इसका उल्लेख किया गया तो उन्होंने इस मामले में सुनवाई के लिये संविधान पीठ गठित की थी। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करने के लिये नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी। संविधान पीठ के समक्ष विचारणीय सवाल था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता है? नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन सुनवाई की थी। दो अगस्त को इस मामले में सुनवाई पूरी हुई थी।

पक्ष-विपक्ष में दी गयीं जोरदार दलीलें

सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विपक्ष में दलीलें दी गईं। इस मुद्दे पर अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल, अतिरक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार, कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, श्याम दीवान, आनंद ग्रोवर, सीए सुंदरम और राकेश द्विवेदी ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने या न करने पर अपनी दलीलें दी थीं। उन्होंने तमाम न्यायिक व्यवस्थाओं की नजीर दी थी। अटार्नी जनरल के.के.वेणुगोपाल ने इस मामले में बहस करते हुए दलील दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आ सकता क्योंकि वृहद पीठ का फैसला है कि यह सिर्फ न्यायिक व्यवस्थाओं के माध्यम से विकसित एक सामान्य कानूनी अधिकार है।

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सरकार के पास प्रतिबंध लगाने का अधिकार

नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने दो अगस्त को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने सार्वजनिक दायरे में आई निजी सूचना के संभावित दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई थी और कहा था कि मौजूदा प्रौद्योगिकी के दौर में निजता के संरक्षण की अवधारणा एक हारी हुई लड़ाई है। इससे पहले 19 जुलाई को सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की थी कि निजता का अधिकार मुकम्मल नहीं हो सकता और सरकार के पास इस पर उचित प्रतिबंध लगाने के कुछ अधिकार हो सकते हैं।

कोर्ट ने पूछे कई सवाल

इस दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुड़े अनेक सवाल पूछे। दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार जीने की स्वतंत्रता में ही समाहित है। उनका यह भी कहना था कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार शामिल है।

क्या है आॢटकल 21

संविधान की धारा 21 नागरिकों के जीने का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है। इसके मुताबिक किसी भी नागरिक को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है। ऐसा केवल कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से ही किया जा सकता है।

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क्या हैं हमारे मौलिक अधिकार

संविधान हर नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार देता है। ये अधिकार हैं - बराबरी का अधिकार, अपनी बात कहने का अधिकार, सम्मान से जीने का अधिकार आदि। अगर ये अधिकार न दिये जाए या छीन लिए जाए तो कोई भी व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। निजता का अधिकार पहले से ही है मगर इसे समग्र रूप से पारिभाषित नहीं किया गया है।

ये हैं 6 मौलिक अधिकार

छह मौलिक अधिकार इस प्रकार हैं :-

-स्वतंत्रता का अधिकार : यह अधिकार भारतीय नागरिकों को बोलने, कहीं भी रहने, संघ या यूनियन बनाने और व्यापार करने की आजादी देता है।

-शोषण के विरुद्ध अधिकार : यह बालश्रम का विरोध और मानव तस्करी रोकने का अधिकार देता है। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखाने में काम करने से भी रोकता है।

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार : धर्म की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार किसी भी धर्म को मानने, उसका आचरण और प्रचार करने की अनुमति देता है। यह सिखों को कटार रखने की अनुमति भी देता है। यह धार्मिक कार्यों की स्वतंत्रता का भी अधिकार देता है।

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार : यह हमें अपनी संस्कृति और भाषा को बचाए रखने का अधिकार देता है। अल्पसंख्यकों के हितों को सुराक्षित रखने और स्कूल-कॉलेज की स्थापना करने के साथ ही उसके संचालन का अधिकार भी देता है।

-संपत्ति का अधिकार : यह भारतीय नागरिकों को संपत्ति अर्जित करने का अधिकार देता है।

-संवैधानिक उपचारों का अधिकार : यदि किसी कारण से किसी नागरिक के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है तो कोर्ट ऐसे मामले में दखल देता है।

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सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी निजी जानकारी

सुप्रीम कोर्ट ने निजता यानी प्राईवेसी को संविधान के तहत ‘मौलिक अधिकार’ करार दिया है। इसका एक मतलब यह है कि अब किसी की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी। यानी अगर फोन कंपनी, रेलवे या एयरलाइंस आपसे आपकी निजी जानकारी मांगती हैं तो इस स्थिति में निजता के मौलिक अधिकार की तरह आप अपनी जानकारी देने से इनकार कर सकते हैं।

क्या है निजी जानकारी

निजी जानकरी में किसी भी व्यक्ति के बारे में कोई भी जानकारी शामिल होती है। जैसे कि नाम, पता, परिवार का ब्यौरा, जन्मतिथि, फोन नंबर, ईमेल, फोटो वगैरह।

तो क्या जानकारी देने से मना कर सकते हैं?

ऐसा नहीं हो सकते है कि निजता की दलील देकर सरकार का हर काम ही ठप करा दिया जाए। निजी जानकारी न देने की एक सीमा भी है। जानकारी ने देने पर कोई सेवा देने से इनकार किया जा सकता है। इसी तरह यदि किसी ने कोई अपराध किया है तो वो निजता की दलील देकर जानकारी देने से इनकार नहीं कर सकता।

क्या होगा कोर्ट के फैसले का असर

भविष्य में सरकार के नियम-कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकेगी कि वो निजता के अधिकार का हनन करता है। हालांकि किसी भी मौलिक अधिकार की सीमा होती है। संविधान में बकायदा उनका जिक्र है। कोर्ट को निजता की सीमाएं भी तय करनी पड़ेंगी।

आजादी के पहले से उठती रही है मांग

निजता के अधिकार का मुद्दा आजादी के पहले से उठता रहा है। 1925 में महात्मा गांधी की सदस्यता वाली समिति ने कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल को बनाते समय इसका उल्लेख किया था। मार्च 1947 में बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि लोगों को अपनी निजता का अधिकार है। उन्होंने इस अधिकार के उल्लंघन को रोकने के लिए कई मापदंड तय करने की वकालत की थी। साथ में उनका यह भी कहना था कि अगर किसी कारणवश निजता के अधिकार को भेदना सरकार के लिए जरूरी हो तो सब कुछ न्यायालय की कड़ी देखरेख में होना चाहिए। 1895 में लाए गए भारतीय संविधान बिल में भी निजता के अधिकार की वकालत सशक्त तरीके से की गई थी। 2015 में केन्द्र ने कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं क्योंकि संविधान के तीसरे खण्ड में इसकी अलग व्याख्या नहीं की गई है। वैसे यह मामला कई बार अदालतों में उठ चुका है। कोर्ट के अलग-अलग फैसलों से स्थिति कभी स्पष्ट नहीं हो पाई है। 1954 और 1963 में सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग खण्डपीठों ने अपने फैसलों में कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है।

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priyankajoshi

इन्होंने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत नई दिल्ली में एनडीटीवी से की। इसके अलावा हिंदुस्तान लखनऊ में भी इटर्नशिप किया। वर्तमान में वेब पोर्टल न्यूज़ ट्रैक में दो साल से उप संपादक के पद पर कार्यरत है।

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