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Haryana Politics: बसपा और इनेलो का चुनावी गठबंधन "एक मजबूरी" "
Haryana Politics: हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले बसपा और इंडिया नेशनल लोकदल यानी इनेलो के बीच हुए चुनावी गठबंधन से राजनीतिक दल हैरान है
Haryana Politics: हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले बसपा और इंडिया नेशनल लोकदल यानी इनेलो के बीच हुए चुनावी गठबंधन से राजनीतिक दल हैरान है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण गठबंधन करना और तोड़ना दोनो दलों की राजनीतिक मजबूरी है।इन दोनों ही पार्टियों का हालिया लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। बसपा पहले विधानसभा चुनावों में भी हरियाणा में कई बार गठबंधन का प्रयोग कर चुकी है, लेकिन यह ज्यादा दिन नहीं टिका।हरियाणा में शुरुआत से बसपा का कुछ जनाधार रहा । पर धीरे धीरे वह कमजोर होता गया।लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा को 3.65% और विधानसभा चुनाव 2019 में 4.41% चोट मिले। इनेलो को विधानसभा चुनाव में 2.44% और लोकसभा चुनाव में 1.90% वोट मिले थे। लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा का वोट शेयर 1.28 प्रतिशत जबकि इनेलो का 1.28 प्रतिशत रहा।
सबसे पहले ने 1996 में इनेलो से गठबंधन किया था। उस समय इनेलो काफी मजबूत स्थिति में था। इसके बाद 2019 के लोकसभा के लिए भी बसपा ने फिर इनेलों से गठबंधन किया, लेकिन यह चुनाव से पहले ही टूट गया। बाद में बसपा ने वहां लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (लोसुपा) के साथ मिलकर चुनाव लडा जो बाद में टूट गया। एक बार फिर विधानसभा चुनाव 2019 से पहले इनेलो से अलग होकर जेपीसी के साथ गठबंधन किया। यह गठबंधन भी चुनाव से पहले एक महीने में टूट गया।हरियाणा के कुल 90 विधानसभा सीटों में से इनेलो 53 और बहुजन समाज पार्टी 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इन दलों के बीच तीसरी बार गठबंधन हुआ है। सबसे पहले वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान इन दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ था।1996 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने एक और इनेलो ने चार लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद साल 2018 में इनेलो और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। अब फिर 2024 के विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दल साथ आएं हैं।
बसपा शुरू से ही दलितों पिछड़ों और कमजोर वर्ग
की राजनीति करती रही है। इसमें भी सर से दलित इस जोड़ का मुख्य आधार रहा है। उसे यह डर सता रहा है अंदर की बात कि अभी तो कुछ दलित हिटके है। बचा हुआ दलित पोट भी छिटक गया तो फिर पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका होगा।बसपा को अब नया खतरा चंद्र शेखरआजाद की पार्टी से भी है। जिस तरह चंद्रशेखर ने करीब डेढ़ लाख चोट से लोकसभा नगीना जीती है तब से यह चर्चा में है। यह उपचुनाव भी लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। यही वजह है कि बसपा दलितों को एकजुट कर उपचुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। खतरा यह है कि वह ऐसा नहीं करती तो बचा हुआ दलित वोट बैंक भी उससे न छिटक जाए।हरियाणा के कुल 90 विधानसभा सीटों में से इनेलो 53 और बहुजन समाज पार्टी 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इन दलों के बीच तीसरी बार गठबंधन हुआ है। सबसे पहले वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान इन दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ था।
यह भी बताना जरूरी है कि बसपा अपने गढ़ यूपी में काफी कमजोर हुई है। जिस कारण उसका राष्ट्रीय दल का स्तर भी खत्म होने की कगार पर है।यूपी में 2007 में मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से विधानसभा में 30.43 फीसद वोट हासिल किए। 2009 के लोकसभा चुनावों में भी बसपा 27.4 फीसदी वोट हासिल किए। 2012 में सोशल इंजीनियरिंग की चमक कमजोर पड़ गई। वोट गिरते हुए 25.9 फीसदी पर पहुंच गए। 2014 के लोकसभा चुनावों में बसपा को 20 फीसदी वोट मिले। 2017 में 23 फीसदी वोट मिले। लोकसभा चुनाव 2019 में 19.36 और 2022 में सिर्फ 18.88 फीसद वोट हासिल किए। वहीं लोकसभा चुनाव में बसपा 9.8 फीसद वोट ही हासिल कर सकी।