यहां गैर मुसलमानों के लिए खोली गई 'मोदी मस्जिद', जानिए क्या है इसका इतिहास

बेंगलुरु के लोगों के लिए रविवार का दिन काफी ख़ास रहा। 170 साल में आज पहली बार मोदी मस्जिद के दरवाजे गैर मुसलमानों के लिए खोल दिए गये। यहां पर मुसलमानों के साथ सभी धर्मों के लोगों ने मस्जिद का दीदार किया।

Aditya Mishra
Published on: 19 Jan 2020 3:55 PM GMT
यहां गैर मुसलमानों के लिए खोली गई मोदी मस्जिद, जानिए क्या है इसका इतिहास
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नई दिल्ली: बेंगलुरु के लोगों के लिए रविवार का दिन काफी ख़ास रहा। 170 साल में आज पहली बार मोदी मस्जिद के दरवाजे गैर मुसलमानों के लिए खोल दिए गये। यहां पर मुसलमानों के साथ सभी धर्मों के लोगों ने मस्जिद का दीदार किया।

सभी के चेहरे पर एक अलग तरह की ख़ुशी नजर आ रही थी। ये नजारा बेहद अनोखा था। बताया जा रहा है कि इस मस्जिद को गैर मुसलमानों के लिए इसलिए खोला गया ताकि वो उनके धर्म और मस्जिद के कामकाज को बाकी धर्मों के लोग और भी अच्छे ढंग से समझ सकें। इसके लिए काफी दिन पहले से ही तैयारियां चल रही थी।

आयोजकों ने 'हमारी मस्जिद को देखें' अभियान के तहत सिर्फ 170 गैर मुसलिम लोगों को एंट्री देने का मन बनाया था। लेकिन मस्जिद में दोपहर तक करीब चार सौ लोगों ने एंट्री की।

समाज के हर वर्ग के लोग मस्जिद के बाहर देखे गए। जिसमें स्टूडेंट्स, लेखक, बिजनेसैन और महिलाएं भी शामिल थीं। आयोजकों ने लोगों को साफ-साफ ये हिदायत दे रखी थी कि वो किसी राजनीतिक मुद्दे पर यहां बातचीत न करें।

यहां के शिवाजी नगर में मौजूद इस मस्जिद का पूरा नाम मोदी अब्दुल गफूर मस्जिद है। इसका नाम मोदी अब्दुल गफूर के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने मस्जिद के लिए अपनी जमीन दी थी।

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क्या है बेंगलुरु की मोदी मस्जिद का इतिहास

1849 के आसपास जब टास्कर टाउन को मिलिट्री और सिविल स्टेशन के रूप में जाना जाता था, वहां एक अमीर व्यापारी मोदी अब्दुल गफूर रहते थे। उन्होंने यहां एक मस्जिद की जरूरत महसूस की और 1849 में इसका निर्माण किया।

बाद में मोदी अब्दुल गफूर के परिवार ने बेंगलुरु में कुछ और मस्जिदों का निर्माण किया। यहां तक कि टेनरी क्षेत्र में एक सड़क को मोदी रोड के नाम से जाना जाता है।

2015 में मूल मस्जिद की पुरानी संरचना को गिराकर नई इमारत का निर्माण किया गया। नई बनी मस्जिद को कुछ समय पहले ही सार्वजनिक रूप से खोला गया था।

मस्जिद के मुख्य वास्तुकार हसीबुर रहमान हैं। उन्होंने मीडिया को बताया, "मस्जिद बनाने के लिए भारत-इस्लामिक आर्किटेक्चर को अपनाया गया है, जिसमें 30,000 वर्ग फुट का निर्मित क्षेत्र है। जिसमें महिलाओं के लिए एक मंजिल है, जिसमें बुनियादी सुविधाओं के साथ प्रार्थना की जाती है।

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