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'मां, मेरी लाश लेने मत आना...', फांसी से पहले भगत सिंह की अपील, जानिए युवा क्रांतिकारी की पूरी कहानी

Bhagat Singh Jayanti 2024: भगत सिंह ने अहिंसा की धारा को छोड़ नई धारा चुनी। उनका मानना था कि अहिंसा से देश को आजादी नहीं दिलाई जा सकती। आज उनकी 116वीं जन्म जयंती है।

Sidheshwar Nath Pandey
Published on: 28 Sept 2024 1:56 PM IST (Updated on: 1 Oct 2024 2:15 PM IST)
Bhagat Singh Jayanti 2024
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Bhagat Singh Jayanti 2024 (Pic: Newstrack)

Bhagat Singh Jayanti 2024: एक युवा क्रांतिकारी जिसने आठ साल के छोटे से राजनीतिक जीवन में देश ही नहीं दुनिया में वीरता और देशभक्ती की अप्रतिम मिशाल पेश की। अंहिसा की धारा छोड़ एक नई विचारधारा को जन्म दिया। जिसका मानना था कि सत्याग्रह, उपवास और अंग्रेजों का दास बने रहने से देश को आजादी नहीं मिलती। 14 साल की उम्र में स्कूल की किताबों और कपडों को आग लगा कर क्रांतिकारी होने का परिचय दिया। गांव-गांव में पोस्टर छपे। छोटी सी उम्र में जेल काटा। मगर जेल की चार दीवारी उनके विचारों को सीमित नहीं कर सकी। 23 साल की उम्र में देश के लिए फांसी के फंदे पर लटकने से पहले हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी और उर्दू में खूब लिखा। जिसकी वैचारिक-बौद्धिक सक्रियता आज भी लोगों को प्रभावति और प्रेरित करती है। आज उन अमर शहीद भगत सिंह की आज 116वीं जयंती है।

14 की उम्र में जलाई किताब

28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी प्रवृति के थे। 14 साल की उम्र ने उन्होंने सरकारी स्कूल की किताबों और कपड़ों को आग लगा दिया। ऐसा करने पर गांव-गांव उनके पोस्टर चिपकाए गए। उनकी दोस्ती भी राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारी युवाओं से थी। भगत सिंह गांधी से बहुत प्रभावति थे। उन्होंने शुरु में गांधी जी के अहिंसा सत्याग्रहों का समर्थन किया। मगर 1922 में चौरी चौरा कांड के बाद गांधी जी से मतभेद रहने लगे। उन्होंने अहिंसा की धारा को छोड़ कर नई धारा चुनी। भगत सिंह का मानना था कि अहिंसा से देश को आजादी नहीं दिलाई जा सकती। इसका परिचय उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की हत्या कर दिया।

सॉण्डर्स की हत्या के बाद एचएसआरए द्वारा लगाए गए परचे (Pic: Social Media)

सांडर्स की हत्या

30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध हुआ। तत्कालीन पंजाब पुलिस के डीएसपी सांडर्स ने लाला पर लाठियां बरसाईं। 18 दिन बाद लाला की मौत हो गई। मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की गोली मार कर हत्या कर दी। शाम चार बजकर तीन मिनट पर मोटरसाइकिल से बाहर निकला तभी भगत सिंह-राजगुरू की गोली का शिकार हुआ। साथ ही एक और पुलिस कर्मी को गोली मारी। घटना के बाद दोनों क्रांतिकारी फरार हो गए। अंग्रेज पुलिस तमाम कोशिश के बाद भी उन्हें पकड़ नहीं सकी। हत्या की घटना के बाद भगत सिंह चुप नहीं बैठे।


असेंबली में बम विस्फोट

अगली तारीख जो इतिहास में अमर हुई वह है आठ अप्रैल 1929। अंग्रेजों के दमनकारी कानूनों के खिलाफ आवाज पुख्ता तरीके से अंग्रोजों तक पहुंचाने के मकसद से आठ अप्रैल 1929 सरदार भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने फ्रांस के क्रांतिकारी वेलियां का कथन दोहराया कि बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊंचे विस्फोट की जरूरत होती है। इस विस्फोट का मकसद किसी की हत्या करना नहीं था। बम भी खाली बेंच पर फेंके गए थे। साथ में कुछ पर्चे भी जिनपर इस विस्फोट का मकसद लिखा था। बम फटने के बाद उन्होंने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!" का नारा लगाया। विस्फोट के बाद दोनों के पास भागने का पूरा मौका था। मगर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने गिरफ्तारी दी।

जेल में भी क्रांति

भगत सिंह करीब दो साल जेल में रहे। मगर क्रांतिकारी ज्वाला जरा भी कम नहीं हुई। जेल में भी उन्होंने मजदूरों के साथ हो रहे शोषण के विरोध में भूख हड़ताल की। 64 दिन के हड़ताल में उनके एक साथी की जान चली गई। इस दौरान उन्होंने तमाम लेख लिखे। डायरी लिखी। उनकी 'मैं नास्तिक क्यों हूं' किताब आज भी लोगों के बीच प्रचलित है। भगत सिंह पढ़ने के शौकीन थे। कहा जाता है कि उनके हाथ में हमेशा एक किताब रहती थी। मैजिनी और गैरीबाल्डी की जीवनियां उन्हें बहुत पसंद थीं। 'अराजकतावाद और अन्य निबंध' किताब से उन्होंने प्रेरणा ली थी। कम वक्त में भगत सिंह ने बहुत किताबें पढ़ीं।

फांसी रोकने की कोशिशें

26 अगस्त, 1930 को अदालत ने फैसला सुनाया। भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत दोषी करार दिया गया। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत ने 68 पन्नों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई। भगत सिंह की फांसी रोकने के लिए कई प्रयास किए गए। फाँसी की माफी के लिए प्रिवी परिषद में अपील दायर की गई। तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष पं. मदन मोहन मालवीय ने वायसराय से मानवता के आधार पर सजा को माफ करने की अपील की। महात्मा गाँधी ने 17 फरवरी 1931 को वायसराय से सजा माफ करने के लिए बात की। मगर बात नहीं बनी।

भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह (Pic: Social Media)

पिता से नाराज

30 सितम्बर 1930 को भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने ट्रिब्यूनल में सजा माफ करने की अर्जी पेश की। इस बात की जानकारी जब भगत सिंह को हुई तो वह बहुत नाराज हुए। उन्होंने अपने पिता को पत्र लिख कर नाराजगी जाहिर की। 4 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह ने पत्र में लिखा, मुझे जानकर हैरानी हुई कि आपने मेरे बचाव के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल में अर्जी भेजी है। यह खबर इतनी यातनामय है कि मैं उसे खामोशी से बर्दाश्त नहीं कर सका। पिता जी, मैं बहुत दुख अनुभव कर रहा हूं। यदि कोई अन्य व्यक्ति मुझसे ऐसा व्यवहार करता तो मैं इसे गद्दारी से कम नहीं मानता।

फांसी की जगह गोली मारने की अपील

इसके साथ ही 20 मार्च 1931 का पंजाब के गवर्नर को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने फांसी की जगह गोली मारने की अपील की। उन्होंने लिखा, तुम्हारे न्यायालय के कथनानुसार हमने एक युद्ध का संचालन किया। इसलिए हम युद्ध बन्दी है। हम कहते हैं कि हमारे साथ वैसा ही व्यवहार हो। अर्थात हम कहते हैं कि हमें फांसी चढ़ाने की जगह गोली मार दिया जाए। भगत सिंह ने खुद सांडर्स की हत्या का जुर्म कबूल किया था। उन्होंने अपने आरोपों को युवाओं को प्रेरित करने का नया जरिया बनाया। माफी की जगह उन्होंने हजारों लोगों को प्रेरित किया।

भगत सिंह की मां विद्यावती देवी (Pic: Social Media)

मां से आखिरी मुलाकात

फांसी से पहले भगत सिंह ने अपने परिवार से आखिरी बार मुलाकात की। तीन मार्च 1931 को मुलाकात के दौरान पूरा परिवार उदास था। मगर भगत सिंह के चेहरे पर शिकन भी नहीं थी। वह खुशी-खुशी लोगों को अपने बढ़े हुए वजन के बारे में बता रहे थे। एक-एक कर लोगों से मिलने के बाद आखिरी बारी मां की थी। विद्यावती देवी अपने 23 साल के बेटे को आखिरी बार देख रही थीं। भगत सिंह ने हंसते हुए मां को पास बुलाया। उन्होंने कहा, मां, मेरी लाश लेने आप मत आना। कुलवीर (छोटा भाई) को भेज देना। कहीं आप रोने लगीं तो लोग कहेंगे भगत सिंह की मां रो रही है।

भगत सिंह का मृत्यु प्रमाण पत्र (Pic: Social Media)

फांसी के पहले तक पढ़ते रहे किताब

23 मार्च 1931 को भगत सिंह को उनके साथियों सुखदेव व राजगुरु के साथ फांसी दी जानी थी। इस दिन फांसी के दो घंटे पहले वकील प्राणनाथ आखिरी इच्छा जानने के लिए उनसे मिलने में कामयाब रहे। उनके अनुसार मौत से पहले भगत सिंह पिंजरे में बंद शेर की तरह घूम रहे थे। उनके चेहरे पर वही रौनक थी। इस मुलाकात में भी भगत सिंह ने किताब “द रेवोल्यूशनरी लेनिन” के विषय में पूछा। फांसी के लिए जाने से पहले तक भगत सिंह यह किताब पढ़ते रहे। शाम 7 बजकर 33 मिनट पर उन्हें फांसी दी गई।



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Sidheshwar Nath Pandey

Sidheshwar Nath Pandey

Content Writer

मेरा नाम सिद्धेश्वर नाथ पांडे है। मैंने इलाहाबाद विश्विद्यालय से मीडिया स्टडीज से स्नातक की पढ़ाई की है। फ्रीलांस राइटिंग में करीब एक साल के अनुभव के साथ अभी मैं NewsTrack में हिंदी कंटेंट राइटर के रूप में काम करता हूं। पत्रकारिता के अलावा किताबें पढ़ना और घूमना मेरी हॉबी हैं।

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