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भानगढ़: जहां सजती है भूतों की महफिल
कपिल भट्ट
जयपुर: एक जमाना था जब वहां मंदिरों की घंटियों से आस्था के सुर प्रवाहित होते थे तो शाम होते ही तवायफों के घुंघरुओं की झनकार रसिकों को मदहोश कर देती थी, लेकिन आज वहां सजती है भूतों की महफिल। हालांकि यहां के भूतों को आज तक किसी ने नहीं देखा, लेकिन इनके चर्चे इतने हो चुके हैं कि इस इलाके की गिनती आज देश के सबसे बड़े भुतहा इलाके में की जाती है। राजस्थान का भानगढ़ भारत के सबसे कुख्यात भुतहा किले के रूप में जाना जाता है। किंवदती है कि यह किला और भानगढ़ कस्बा एक शाप के कारण एक रात में ही खंडहर में तब्दील हो गए थे। तभी से यहां सिर्फ खंडहर ही बचे हैं और उनमें चलता है भूतों का राज। यहां रात के समय में रुकना कतई मना है। आज तक कोई भी इस जगह पर रात गुजारने की हिमाकत नहीं कर सका। इस किले में प्रवेश करने वालों को पहले ही चेतावनी दे दी जाती है कि वे सूर्यास्त के बाद इस किले ही नहीं अपितु इसके आसपास के इलाके में न आएं अन्यथा उनके साथ कुछ भी भयानक घट सकता है।
यहां के स्थानीय निवासी बताते हैं कि रात के समय इस किले से तरह-तरह की भयानक आवाजें आती हैं। उनका तो यह भी कहना है कि आज तक रात के समय जो भी इस किले के अंदर गया वह वापस नही लौटा। भानगढ़ के इस भुतहा भय के पीछे कितनी सच्चाई और कितना मिथक है? इस राज से आज तक कोई परदा नहीं उठा सका। अलवर जिले में भानगढ़ सरिस्का अभयारण्य के पास स्थित है। अरावली पर्वतमालाओं की हरी भरी गोद में बिखरे भानगढ़ के इन खंडहरों में आज भले ही भूतों का भय पसरा हो, लेकिन किसी समय यहां जिंदगी मचला करती थी। भानगढ़ एक भव्य और आबाद इलाका था। इसके किले और कस्बे में राजसी वैभव बिखरा रहता था। बताया जाता है कि भानगढ़ के किले को आमेर के राजा भगवंतदास ने 1573 में बनवाया था। बाद में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल भगवंतदास के बेटे मान सिंह के छोटे भाई माधो सिंह ने इसे अपनी रिहाइश बना लिया।
कभी चरम पर था भानगढ़ का वैभव
उस समय भानगढ़ का वैभव चरम पर था। किले के अंदर करीने से बनाए गए बाजार, खूबसूरत मंदिरों, भव्य महल और तवायफों के आलीशान कोठे इसके यौवन को और परवान चढ़ाते थे। यहां तवायफों का महल भी है तो गोपीनाथ, सोमेश्वर, मंगलादेवी और कृष्णकेशव के मंदिर भी। भानगढ़ को पूरी नगर नियोजन कला के साथ बसाया गया था। यहां बाजार और बाग तथा बावडिय़ां बहुत ही खूबसूरती के साथ बनाए गए हैं। मौजूदा भानगढ़ एक शानदार अतीत की बर्बादी की दुखद दास्तान है। किले के अंदर की इमारतों में से किसी की भी छत नहीं है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसके लगभग सभी मंदिर पूरी तरह से सलामत हैं। इन मंदिरों की छतों, दीवरों और खंभों पर की गई नक्काशी से यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी समय में यह किला कितना खूबसूरत और भव्य रहा होगा।
अकाल में उजड़ गया इलाका
अपने समय में भानगढ़ जितना वैभवशाली था उतने ही कहानी-किस्से इसकी बर्बादी के बारे में पढऩे और सुनने को मिलते हैं। कहते हैं कि माधो सिंह की मौत के बाद उसका बेटा छतर सिंह भानगढ़ का राजा बना, जिसकी 1630 ई. में एक लड़ाई में मौत हो गई। इसके बाद भानगढ़ की गद्दी पर बैठे उसके बेटे अजब सिंह ने इसके कुछ दूरी पर अजबगढ़ नामक एक किला बनवाया जो कि पानी से परिपूर्ण इलाके में स्थित था। अजब सिंह वहीं रहने लगा। इसके बाद आमेर के राजा जय सिंह ने 1720 ई. में भानगढ़ को जबरन अपने राज्य में मिला लिया। इसके बाद भानगढ़ उजडऩे लग गया। यहां पर पानी की कमी तो थी ही, 1783 के अकाल में यह इलाका पूरी तरह से उजड़ गया। लेकिन मिथकीय कथाएं व रहस्यमय और रोचक कहानियां भानगढ़ की बर्बादी के बारे में बयां करती हैं।
गुरु के शाप से नगर हुआ बर्बाद
मिथकों के मुताबिक भानगढ़ में गुरु बालूनाथ नामक एक शापित स्थान है। यहां बालूनाथ रहते थे। बताया जाता है कि भानगढ़ में एक महल के निर्माण के समय उन्होंने राजा को यह चेतावनी दी थी कि महल की ऊंचाई इतनी नहीं होनी चाहिए कि उसकी छाया उनके ध्यान स्थान से आगे निकल जाए। अगर ऐसा हो गया तो यह पूरा नगर ध्वस्त हो जाएगा। लेकिन राजा अजब सिंह ने इस बात पर गौर नहीं किया और महल की ऊंचाई इतनी बढ़ा दी कि उसकी परछाईं गुरु बालूनाथ के ध्यान स्थान से आगे निकल गई। लिहाजा गुरु के शाप से यह नगर एक ही रात में बर्बाद हो गया। बचे तो सिर्फ यहां के मंदिर।
कई फिल्मों की हो चुकी है शूटिंग
भानगढ़ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन आता है। इस विभाग ने भी दिन ढलने के बाद इस किले में जाने पर पाबंदी लगा रखी है। हालांकि भुतहा इलाका होने के कारण भानगढ़ भयभीत करने वाली जगह है, लेकिन इसके बावजूद इसे देखने के लिए हर साल बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। वहीं राकेश रोशन की प्रसिद्घ फिल्म करण-अर्जुन सहित कई फिल्मों की यहां शूटिंग भी हो चुकी है। लेकिन यहां सबकुछ आप दिन में ही कर सकते हैं।
रात के वीराने में कोई यहां फटकता भी नहीं है। दिन के समय में भी भानगढ़ में खामोशी पसरी रहती है। उसे तोड़ते हैं सिर्फ यहां सैर करने वाले सैलानी। लेकिन ज्यादातर सैलानियों का कहना है कि उनको दिन में भी यहां पर अजीब तरह का अहसास होता है। कुछ बैचेनी और हल्की-सी सिहरन। वहीं तेज हवाओं के साथ केवड़े की खुशबू भी यहां के वातावरण को और रहस्यमय बना देती है। भानगढ़ में केवड़े के पेड़ों की भरमार है। यहां आने पर केवड़े की खुशबू आपको मस्त कर देती है।
तंत्र साधना करने आते हैं तांत्रिक
भानगढ़ सैलानियों और पुरातत्वशास्त्रियों के लिए तो आकर्षण का केंद्र है ही साथ ही तांत्रिक क्रिया करने वाले भी यहां अक्सर अपना काम करने के लिए आते रहते हैं। यहां के सुनसान पड़े रहने वाले मंदिरों में तंत्र साधना करने वाले चोरी-छिपे आकर अपनी साधना करते रहते हैं क्योंकि यहां के अधिकांश मंदिरों में नियमित पूजा नहीं होती। कुछ मंदिरों में तो मूर्तियां भी नहीं हैं। किले के बाहर बनी एक छतरी तो तांत्रिक क्रिया करने वालों का सबसे प्रमुख स्थान है। माना जाता है कि तांत्रिक शींडा इसी जगह पर रहता था। लोगों का मानना है कि यहां आकर तांत्रिक साधना करने वालों को उनकी विशेष कृपा मिलती है। ऐसी ही न जाने कितनी कथा-कहानियां अपने अंदर समेटे हुए भानगढ़ के ये खंडहर आज भी रहस्य ही बने हुए हैं। ऐसा रहस्य जिस पर से परदा आज तक कोई भी नहीं उठा सका।
तांत्रिक को हो गया था राजकुमारी से प्यार
एक अन्य कहानी के अनुसार भानगढ़ यहां रहने वाले शींडा नामक एक तांत्रिक के शाप के कारण बर्बाद हुआ। किंवदंती बताती है कि इस तांत्रिक को भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती से प्रेम हो गया था, जो कि उस समय पूरे राजपूताना में सबसे सुंदर मानी जाती थी। एक दिन तांत्रिक ने राजकुमारी की नौकरानी को बाजार से इत्र खरीदते देख लिया। उसने उस इत्र पर तांत्रिक प्रयोग कर दिया ताकि उसे लगाते ही राजकुमारी उसकी ओर आकर्षित हो जाए। लेकिन इस बात का राजकुमारी को पता चल गया और उसने एक पत्थर लुढक़ाकर तांत्रिक को मार दिया, लेकिन मरते-मरते तांत्रिक भानगढ़ के विनाश का शाप दे गया और यहां के मंदिरों को छोडक़र यह इलाका एक ही रात में बर्बाद हो गया। ऐसे अनेक किस्से भानगढ़ की बर्बादी के बारे में आज भी प्रचलित हैं। इस इलाके के आसपास के गांवों में रहने वालों का आज भी विश्वास है कि अब भी राजकुमारी रत्नावती और भानगढ़ के निवासियों की आत्माएं किले में भटकती हैं। ऐसे में इन आत्माओं के भय से कोई भी रात के समय में यहां जाने की जुर्रत नहीं करता।