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खौफनाक वो काली रात! 35 साल बाद भी ये लोग हो रहे विकलांग

आज से 35 साल पहले भोपाल में हुई गैस त्रासदी के पीड़ितों का दर्द कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। आज उस घटना को घटे साढ़े तीन दशक से अधिक हो गया है। बहुत कुछ दल गया है। राज्य व केंद्र में कई सरकारें आई गई। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वहां के पीड़ितों की किस्मत। आज भी लोगों पर उस काली रात की स्याही के दाह नहीं मिटे है।

suman
Published on: 3 Dec 2019 6:47 AM GMT
खौफनाक वो काली रात! 35 साल बाद भी ये लोग हो रहे विकलांग
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भोपाल: आज से 35 साल पहले भोपाल में हुई गैस त्रासदी के पीड़ितों का दर्द कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। आज उस घटना को घटे साढ़े तीन दशक से अधिक हो गया है। बहुत कुछ दल गया है। राज्य व केंद्र में कई सरकारें आई गई। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वहां के पीड़ितों की किस्मत। आज भी लोगों पर उस काली रात की स्याही के दाह नहीं मिटे है।

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आज भी असर

एक रिपोर्ट के मुताबिक गैस पीड़ितों को न तो ठीक से आर्थिक मदद मिली, न ठीक से स्वास्थ्य सेवाएं। हाल इतना बुरा है कि इन्हें पीने के लिए साफ और शुद्ध पानी तक नहीं मिला। 2-3 दिसंबर, 1984 की रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली गैस 'मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक)' ने हजारों लोगों को एक ही रात में मौत की नींद सुला दिया था। उस के गवाह कई लोगों की नींद आज भी गायब हो जाती है जब उस मंजर को याद करते है।

आज कई दशक होने के बाद भी उस गैस का शिकार बने परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक विकलांग हो रही है। शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के जन्म का सिलसिला अब भी जारी है। इन्हीं बच्चों में से एक है, मोहम्मद जैद (15). इस बच्चे की जिंदगी बोझ बन गई है।इन असहाय लोगों की मदद एक चिंगारी ट्रस्ट है जो गैस पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगाने का काम कर रहा है।

चिंगारी ट्रस्ट दे रहा जीवन

इस ट्रस्ट की चंपा देवी शुक्ला और रशीदा बी बताती हैं कि उनके संस्थान में हर रोज 170 बच्चे आते हैं। इन बच्चों का यहां फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, विशेष शिक्षा वगैरह उपलब्ध कराई जाती है।इन बच्चों को चिंगारी पुनर्वास केंद्र लाने और छोड़ने के लिए वाहन सुविधा है, साथ ही इन्हें नि:शुल्क भोजन भी कराया जाता है। पी नगर में रहने वाली मुमताज बी के पति मोहम्मद सईद भी जहरीली गैस की जद में आए थे। वह लगातार बीमारियों से घिरते गए और पिछले दिनों उनकी मौत हो गई। मुमताज की मानें तो सईद के फेफड़े बुरी तरह प्रभावित हो चुके थे। उन्हें जहरीली गैस से मिली बीमारी के एवज में महज 25 हजार रुपये का मुआवजा मिला।

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भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की संयोजक साधना कार्णिक ने सरकार पर गैस पीड़ितों के प्रति नकारात्मक रुख अपनाने का आरोप लगाय। उनका आरोप है कि गैस प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को जहरीला और दूषित पानी पीने को मिल रहा है. यही कारण है कि गुर्दे, फेफड़े, दिल, आंखों की बीमारी और कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

नहीं मिल रहा उचित इलाज

गैस कांड प्रभावित बस्तियों में अब भी बीमार पीड़ितों की भरमार है।ज्यादातर यहां विकलांग नजर आते हैं विधवाओं की संख्या में लगातार बढ़ रही है। सरकार ने गैस पीड़ितों के लिए अस्पताल भी खोले गए हैं, मगर यहां उस तरह के इलाज की सुविधाएं नहीं हैं, जिनकी जरूरत इन बीमारों को है।उस एक ही रात हजारों जिंदगियां लील ली, लेकिन असर आज भी है। जिस अमेरिकी कंपनी डाओ केमिकल्स से रिसाव हुआ उसका मालिक भी घटना के बाद फरार हो गया था। जिसकी मौत हो गई, लेकिन उसे सजा नहीं मिल पाई।यह भी दुखद बात है।

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