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मिसाल: एक ऐसा गांव जहां हिन्दू देते हैं मस्जिद में अजान...

गांव के लोग बताते है कि मस्जिद की तामीर  बदरे आलम ने दो सौ साल पहले कराई थी। जब नालंदा विश्वविद्यालय था तब वहां मंडी लगा करती थी।

Aditya Mishra
Published on: 30 Aug 2019 3:58 PM IST
मिसाल: एक ऐसा गांव जहां हिन्दू देते हैं मस्जिद में अजान...
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लखनऊ: नालंदा यूं ही विश्वगुरु नहीं बना। बल्कि,यहां की मिट्टी की सोंधी महक व लोगों की खासियत कुछ ऐसी है जिसे भुलाया नहीं जा सकता।

बेन प्रखंड के माड़ी गांव के लोग गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहे हैं। माड़ी गांव के हिन्दू अपने गांव में स्थित एक मस्जिद की न सिर्फ देख-रेख करते हैं बल्कि इस मस्जिद में पांचों वक्त नमाज़ अदा हो इसका भी जिम्मा उठाए हुए हैं।

मस्जिद की रंगाई-पुताई से लेकर इसकी देखरेख की जिम्मेदारी भी हिन्दू परिवार वालों ने अपने जिम्मे ले रखी है।

इस गांव में एक भी घर मुस्लिम का नहीं है क्योंकि काम और बेरोजगारी के आलम ने इस गांव से उन्हें पलायन करने को मजबूर कर दिया।

अब चूकि गांव में मुसलमान नहीं हैं तो ऐसे में इस गांव के हिन्दू अनूठी गंगा-जमुनी तहजीब की संस्कृति की मिसाल पेश कर रहे हैं।

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ना छुटे नमाज इसलिए करते है ऐसा काम

इस मस्जिद में हर दिन पांचों वक्त की अज़ान होती है। हिन्दूओं को अज़ान देनी नहीं आती तो वे लोग पेन ड्राइव की मदद लेते हैं। पूरे गांव के लोग इसमे बढ़ चढक़र सहयोग करते हैं.मस्जिद की सफाई का जिम्मा गौतम महतो, अजय पासवान, बखोरी जमादार व अन्य के जिम्मे है।

मस्जिद से जुड़ी हुई है आस्था

ग्रामीणों की मस्जिद से गहरी आस्था जुड़ी है। ऐसी कि कोई भी शुभ कार्य के शुरू में मस्जिद का पहला दर्शन ज़रूरी है ।सदियों से जारी इस परंपरा को लोग बखूबी निभा भी रहे हैं।

मस्जिद के बाहर एक मजार है जिस पर हिंदू ही चादरपोशी करते आ रहे हैं। मस्जिद की सुबह शाम सफाई भी नियमित रूप से की जाती है।

ऐसे हुई थी परम्परा की शुरुआत

गांव में पहले अक्सर आग लगती और बाढ़ आती थी। इसी दौरान एक बुजुर्ग हज़रत इस्माइल गांव के रास्ते से गुजर रहे थे। वे वहाँ रुके और वहीं उनका देहांत हो गया।

उसके बाद यहां आग लगना और सैलाब आना बंद हो गया। तब से गांव को इब्राहिम पुर माड़ी कहा जाने लगा।1942-42में सांप्रदायिक झगड़ों में मुसलमान गांव छोड़ चले गये। तब से हिंदुओं ने मोर्चा संभाल लिया।

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ऐसे पड़ा गांव का नाम मांड़ी

गांव के लोग बताते है कि मस्जिद की तामीर बदरे आलम ने दो सौ साल पहले कराई थी। जब नालंदा विश्वविद्यालय था तब वहां मंडी लगा करती थी।

इसलिए गांव का नाम मंडी पड़ा था। इसे बोलचाल में लोग माड़ी कहने लग गये। यह भी मान्यता चली आ रही है कि जो मस्जिद के दर्शन नहीं करता उस पर आफत आ जाती है।



Aditya Mishra

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