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Bihar Politics: वक्फ बिल के समर्थन से जदयू में सियासी भूचाल,निशाने पर आए नीतीश कुमार,विधानसभा चुनाव में क्या होगा असर
Bihar Politics: वक्फ संशोधन बिल पारित होने के बाद जदयू के कई मुस्लिम नेता इस्तीफा दे चुके हैं और बिहार के विभिन्न जिलों से मुस्लिम नेताओं की नाराजगी की खबरें सामने आ रही हैं।
Nitish Kumar (Photo: Social Media)
Bihar Politics: संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने के बाद बिहार की सियासत करवट लेती हुई दिख रही है। संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है। वक्फ संशोधन बिल को संसद में पारित करना आसान नहीं माना जा रहा था मगर एनडीए के सहयोगी दलों की मदद से सरकार इसे आसानी से पारित करने में कामयाब रही।
इस बिल के पारित होने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि इन दोनों की इस बिल को पारित कराने में बड़ी भूमिका रही है। बिहार में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इसलिए नीतीश कुमार को होने वाले सियासी नफा-नुकसान का आकलन किया जाने लगा है। वक्फ संशोधन बिल पारित होने के बाद जदयू के कई मुस्लिम नेता इस्तीफा दे चुके हैं और बिहार के विभिन्न जिलों से मुस्लिम नेताओं की नाराजगी की खबरें सामने आ रही हैं।
जदयू के मुस्लिम नेताओं के धड़ाधड़ इस्तीफे
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सियासत का माहिर खिलाड़ी माना जाता रहा है मगर वक्फ संशोधन बिल का समर्थन करके नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ती हुई दिख रही हैं। नीतीश कुमार से नाराज जदयू के मुस्लिम नेताओं ने बगावती तेवर दिखाना शुरू कर दिया है। जदयू के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव मोहम्मद शाहनवाज मलिक, प्रदेश महासचिव मोहम्मद तबरेज सिद्दीकी अलीग, दिलशान राईन और मोहम्मद कासिम अंसारी आदि ने वक्फ बिल पर समर्थन से नाराज होकर जदयू से इस्तीफा दे दिया है।
जदयू के राष्ट्रीय महासचिव गुलाम रसूल बलियावी और और एमएलसी गुलाम गौस की नाराजगी भी सामने आ चुकी है। बलियावी ने तो यहां तक कह दिया है कि अब सेक्युलर और कम्युनल में कोई फर्क नहीं रह गया है। मुजफ्फरपुर के एम राजू नैयर ने भी जदयू के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। नैयर युवा जदयू के प्रदेश सचिव थे और उन्होंने इस बिल को मुसलमान के हितों के खिलाफ बताया है।
बिहार के विभिन्न जिलों में भी जदयू से जुड़े मुस्लिम नेता भी धड़ाधड़ इस्तीफा दे रहे हैं। मोतिहारी में पार्टी के 18 मुस्लिम नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है तो कुछ अन्य जिलों से भी कई मुस्लिम पदाधिकारियों के इस्तीफा देने की खबर है।
बिहार में मुस्लिम मतदाताओं का रुख
बिहार के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाता बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं मगर उनका अधिकांश वोट राजद और कांग्रेस वाले विपक्षी महागठबंधन को मिलता रहा है। बिहार में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 17.8 फ़ीसदी है। 2020 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए को करीब पांच फीसदी मुस्लिम वोट हासिल हुए थे और इनमें से भी अधिकांश वोट जदयू के खाते में ही गए थे। दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन 76 फ़ीसदी मुस्लिम वोट का समर्थन पाने में कामयाब रहा था।
लोकसभा चुनाव 2019 में भी एनडीए (जदयू-बीजेपी गठबंधन) को करीब छह प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे, जबकि महागठबंधन को करीब 77 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। इस तरह साफ है कि बिहार के अधिकांश मुस्लिम मतदाता हाल के चुनावों में राजद की अगुवाई वाले गठबंधन को ही समर्थन देते रहे हैं।
अब जदयू के मुस्लिम नेताओं की नाराजगी के बाद माना जा रहा है कि राजद और कांग्रेस के पक्ष में यह समर्थन और मजबूत हो सकता है जबकि जदयू को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
राजद की मुद्दे को भुनाने की कोशिश
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव का माय समीकरण यानी (मुस्लिम-यादव) पहले से ही काफी असर दिखाता रहा है। इस समीकरण के दम पर ही राजद अपनी ताकत दिखाने में कामयाब होता रहा है। वक्फ संशोधन विधेयक पर राजद ने स्पष्ट रुख अपनाते हुए संसद से लेकर सड़क तक तीखा विरोध जताया है। ऐसे में माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान मुस्लिम वोट बैंक राजद के समर्थन में और मजबूती से गोलबंद हो सकता है।
राजद की ओर से तेजस्वी यादव को बिहार के विधानसभा चुनाव में सीएम चेहरा बताया जा रहा है और तेजस्वी ने वक्फ बिल पर काफी आक्रामक तेवर अपना रखा है। वे बिहार के विभिन्न इलाकों में इस मुद्दे को गरमाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। हाल में उन्होंने कहा था कि हमारी सरकार बनने पर इस बिल को पूरी तरह रद्द कर दिया जाएगा। तेजस्वी यादव इसके जरिए मुसलमानों में पार्टी की पैठ को और मजबूत बनाना चाहते हैं।
जदयू की ओर से डैमेज कंट्रोल
केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और संजय झा समेत जदयू के अन्य नेताओं की ओर से की जा रही कोशिशों के बावजूद मुस्लिम नेताओं का गुस्सा कम नहीं हो रहा है। जदयू के नेताओं की ओर से मुसलमानों को यह समझाने की कोशिश भी की जा रही है कि नीतीश कुमार ने अब तक के अपने 19 साल के कार्यकाल के दौरान मुस्लिम समुदाय के लिए काफी कुछ काम किया है। वैसे इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा है कि आखिरकार जदयू ने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन क्यों किया?
नीतीश कुमार के सामने बड़ी चुनौती
सियासी जानकारों का मानना है कि आने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार के सामने मुसलमानों के बीच अपनी सेक्युलर छवि को बनाए रखना बड़ी चुनौती साबित होगा। उनकी ओर से मुस्लिम समुदाय के लिए किए गए कामों की चाहे जितनी भी दुहाई दी जाए मगर इसका असर तभी दिख सकता है जब मुस्लिम समुदाय को यह महसूस हो कि उनके सवालों का जवाब मिल गया है।
वक्फ बिल पर संसद में बहस से पहले मुस्लिम संगठनों की ओर से नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का भी बहिष्कार किया गया था। विपक्षी गठबंधन की ओर से इस मुद्दे पर नीतीश को घेरने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जाएगी। मुस्लिम नेताओं की ओर से की जा रही घेरेबंदी पर अभी तक नीतीश कुमार ने चुप्पी साध रखी है। इस मुद्दे पर अभी तक उनका कोई बयान सामने नहीं आया है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि नीतीश कुमार इस घेरेबंदी को तोड़ने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं।