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बिहार बोर्ड रिजल्ट : फिर सामने आया सच शिक्षा नहीं है एजेंडा
पटना : नाली, सड़क-परिवहन, बिजली, जीवन से जुड़े ये मुद्दे बिहार में एजेंडा हैं, लेकिन शिक्षा एजेंडे में नहीं है। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से जारी मैट्रिक (10 वीं) की परीक्षा के परिणाम ने यह साफ जता-बता दिया है। बिहार बोर्ड ने 26 जून को मैट्रिक परीक्षा का रिजल्ट जारी किया तो 17 लाख 58 हजार 797 परीक्षार्थियों में से 12 लाख 11 हजार 617 ही पास हुए। पिछले साल से 18.77 प्रतिशत रिजल्ट ज्यादा होने के बावजूद सफलता का प्रतिशत 68. 89 रहा। यह 18.77 प्रतिशत की वृद्धि भी पढ़ाई के स्तर में सुधार के कारण नहीं, बल्कि आधे प्रश्न ऑब्जेक्टिव पूछे जाने से हुई। इस परिणाम ने एक और बड़ा सच सामने ला दिया है कि बिहार में एक ही स्कूल काम का है, बाकी सारे नाम के हैं। 2018 की वार्षिक माध्यमिक परीक्षा में टॉप 10 अंक पाने वाले 23 छात्र-छात्राओं में से 16 सिमुलतला के ही हैं। टापर्स तीन छात्राएं ही हैं, तीनों इसी स्कूल की हैं।
सिमुलतला में दाखिले के साथ गुरुकुल कोचिंग
वर्ष 2000 में झारखंड बंटवारे के कारण नेतरहाट विद्यालय के चले जाने के बाद 2010 में नक्सल प्रभावित जमुई जिले के सिमुलतला में सह-शिक्षा के तहत आवासीय विद्यालय में दाखिला शुरू हुआ। यहां छठी कक्षा में दाखिला होता है। स्कूल के पहले बैच से अब तक जो भी बच्चे10वीं की परीक्षा में बैठे, उन्हें अच्छा परिणाम मिला। साल-दर साल, यह चौथा साल है जब सिमुलतला के बच्चे टॉपर्स सूची पर काबिज हैं। स्कूल में छात्र-शिक्षक अनुपात अच्छा है। सभी विषयों के स्थायी शिक्षक हैं। एड-हॉक की भी व्यवस्था है। हालांकि, सिमुलतला स्कूल को भी ताजा परिणाम के बाद सोचने की जरूरत है। बोर्ड टॉपर प्रेरणा राज को महज 457 अंक मिले, जबकि पिछले साल 483 और 2016 की परीक्षा में 487 अंक टॉपर को हासिल हुए थे। इस बार की मैट्रिक टॉपर को दो वर्ष पहले के मैट्रिक टॉपर से 30 अंक और पिछले साल के टॉपर से 26 अंक कम हासिल हुए।
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और बाकी स्कूल तो पूरी तरह भगवान भरोसे
सिमुलतला से अलग राज्य के ज्यादातर सरकारी विद्यालय भगवान भरोसे चल रहे हैं। राजधानी पटना के लगभग एक दर्जन सरकारी स्कूल शिक्षकों के मामले में अच्छी स्थिति में हैं क्योंकि यहां पदस्थापना के लिए हमेशा मारामारी रहती है। पिछले साल बिहार बोर्ड के रिजल्ट की हालत पर बवाल हुआ था तो हाईस्कूलों में शिक्षकों की कमी का मामला चर्चा में रहा था। तत्कालीन शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने बहुत सारी योजनाओं के बारे में जानकारी दी थी और बिहार बोर्ड के अध्यक्ष ने इस साल रिजल्ट जारी किए जाते समय सरकारी स्कूलों में योजनाओं के अमल का दावा तक किया, लेकिन हकीकत यह है कि हाईस्कूल में स्तरीय शिक्षकों को लेकर जमीन पर काम नहीं हुआ है।
विज्ञान, गणित व अंग्रेजी के शिक्षकों की नियुक्ति पर अभी तक ठोस निर्णय नहीं हुआ है। सरकारी स्कूलों में प्रयोगशाला सिर्फ औपचारिकता के लिए हैं। प्रैक्टिकल की कॉपियां छात्र पुरानी कॉपियों से पूरी करते हैं। विद्यार्थियों को प्रैक्टिकल के बगैर ही पढ़ाकर बोर्ड परीक्षा में भेज दिया जाता है। करीब तीन हजार ऐसे स्कूलों में प्रयोगशाला की स्थिति को बेहतर बनाने की योजना तो बनी है, लेकिन उपकरणों की खरीद नहीं हुई है। सरकार स्कूलों को उत्क्रमित करने पर ज्यादा ध्यान दे रही है, हालांकि इसका फायदा किसी स्कूल को मिलता नहीं दिख रहा है। मध्य विद्यालयों से अपग्रेड होकर हाईस्कूल का दर्जा पाने वाले स्कूलों में भी सभी विषयों के शिक्षक नहीं हैं। सैकड़ों स्कूलों में मिडिल स्तर के शिक्षक हाईस्कूल के बच्चों को पढ़ाते हैं।