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'...तो बाकी कैदियों को रिहाई की राहत क्यों नहीं? बिलकिस बानो गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट का गुजरात सरकार से तल्ख़ सवाल

Bilkis Bano Gang Rape Case: गुजरात सरकार ने साल 2002 दंगों के दौरान बिलकिस बानो गैंगरेप मामले के सभी 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई के अपने फैसले का बचाव किया था।

Aman Kumar Singh
Published on: 17 Aug 2023 10:38 PM IST (Updated on: 17 Aug 2023 10:58 PM IST)
...तो बाकी कैदियों को रिहाई की राहत क्यों नहीं? बिलकिस बानो गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट का गुजरात सरकार से तल्ख़ सवाल
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Bilkis Bano Gang Rape Case (Social Media)

Bilkis Bano Gang Rape Case: गुजरात के बिलकिस बानो गैंगरेप केस के दोषियों की रिहाई के मामले में गुरुवार (17 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से कई तल्ख सवाल किए। जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagaratna) और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां (Justice Ujjwal Bhuyan) की दो सदस्यीय खंडपीठ ने पूछा कि, 'दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास (Life Imprisonment) में बदल दिया गया था। ऐसी स्थिति में उन्हें 14 साल की सजा के बाद कैसे रिहा किया जा सकता है'?

सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार से ये भी पूछा कि, 'इसी तरह अन्य कैदियों को रिहाई की राहत क्यों नहीं मिली? इसमें इन दोषियों को 'चुनिंदा तरीके' से पॉलिसी का लाभ क्यों दिया गया'? आपको बता दें कि, वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था। उनके परिजनों को उन्मादी भीड़ ने मौत के घाट उतार दिया गया था।

बिलकिस बानो केस के दोषियों की हुई थी रिहाई

गौरतलब है कि, बिलकिस बानो मामले में दोषी ठहराए गए सभी 11 लोगों को गुजरात सरकार ने समय से पहले रिहाई दी थी। जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। इस केस में सुनवाई जारी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने 17 अगस्त को गुजरात सरकार से कहा है कि, राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में सलेक्टिव नहीं होना चाहिए। प्रत्येक कैदी को सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर अवश्य दिया जाना चाहिए।'

गुजरात सरकार- ये 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' केस नहीं

शीर्ष अदालत के सवालों पर गुजरात सरकार (Government of Gujarat) ने दोषियों की समय पूर्व रिहाई के अपने फैसले का बचाव किया। गुजरात गवर्नमेंट की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू (ASG SV Raju) ने कहा कि, 'कानून के मुताबिक दुर्दांत अपराधियों को भी खुद को सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए। ASG ने दलील दी कि 11 दोषियों का अपराध जघन्य था, मगर 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' केस की श्रेणी में नहीं आता है। इसलिए, उन्हें सुधार का मौका दिया जाना चाहिए।'

सुप्रीम कोर्ट- छूट की नीति 'सेलेक्टिव' क्यों?

गुजरात सरकार की इस दलील पर बेंच ने सवाल किया, 'जेल में अन्य कैदियों पर ऐसा कानून कितना लागू हो रहा? अदालत ने कहा, हमारी जेलें खचाखच भरी क्यों हैं? छूट की नीति 'सेलेक्टिव' रूप से क्यों लागू की जा रही हैं? सुधार का अवसर केवल कुछ कैदियों को ही क्यों, प्रत्येक कैदी को भी मिलना चाहिए। लेकिन, जहां दोषियों ने 14 साल की सजा पूरी कर ली है वहां छूट की नीति कहां तक लागू हो रही है? क्या इसे सभी मामलों में लागू किया जा रहा है? अदालत ने गुजरात सरकार से एक के बाद एक कई सख्त सवाल किए।

ASG बोले- छूट नीति अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न

इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने जवाब दिया। उन्होंने कहा, 'सभी राज्यों को इस प्रश्न का उत्तर देना होगा। छूट नीति अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न होती है। अन्य राज्यों की छूट नीति पर टिप्पणी करते हुए बेंच ने कहा, सवाल ये है कि क्या समय से पहले रिहाई की नीति उन सभी लोगों के संबंध में सभी मामलों में समान रूप से लागू की जा रही है, जिन्होंने कारावास में 14 साल पूरे कर लिए हैं और इसके पात्र हैं?'

बेंच ने रुदुल शाह मामले का दिया उदाहरण

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा, 'दूसरी ओर हमारे पास रुदुल शाह (Rudul Shah) जैसे मामले हैं। भले ही उसे बरी कर दिया गया हो, लेकिन वह जेल में ही रहा। चरम मामले, इस तरफ और उस तरफ दोनों तरफ हैं। आपको बता दें, रुदुल शाह को 1953 में पत्नी की हत्या के आरोप में अरेस्ट किया गया था। 3 जून, 1968 को एक सत्र न्यायालय की ओर से उसे बरी किए जाने के बावजूद, वह कई वर्षों तक जेल में रहा। आख़िरकार उसकी रिहाई 1982 में हुई। जीवन के तीन दशक उसने जेल में बिता दिए।

CBI की राय का भी अदालत में हुआ जिक्र

अतिरिक्त सॉलिसिटर राजू ने अदालत में कहा, '11 दोषियों की सजा माफ करने पर सीबीआई की ओर से दी गई राय से पता चलता है कि इसमें दिमाग का कोई इस्तेमाल ही नहीं हुआ। दरअसल, केंद्रीय जांच एजेंसी ने कहा था कि, 'किया गया अपराध 'जघन्य और गंभीर' था। इसलिए दोषियों को समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता। उनके साथ कोई नरमी नहीं बरती जा सकती। अतिरिक्त सॉलिसिटर ने ये भी कहा कि, अपराध को जघन्य बताने के अलावा कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया। मुंबई में बैठे अधिकारी को जमीनी हकीकत का ज्ञान नहीं है। इस मामले में स्थानीय पुलिस अधीक्षक (superintendent of police) की राय CBI अधिकारी से ज्यादा उपयोगी है।

अगली सुनवाई 24 अगस्त को

अब इस मामले में अगली सुनवाई 24 अगस्त को फिर शुरू होगी। इस केस में बिलकिस बानो की ओर से दी गई पिटीशन के अलावा TMC नेता महुआ मोइत्रा, CPI (M) नेता सुभाषिनी अली सहित कई अन्य की ओर से दी गई जनहित याचिकाओं ने छूट को चुनौती दी है।



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Aman Kumar Singh

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