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Swami Avimukteshwaranand Saraswati: छात्र राजनीति से शंकराचार्य तक का सफर, प्रमुख धार्मिक आंदोलनों का किया नेतृत्व

Swami Avimukteshwaranand Saraswati: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बनारस से गहरा नाता रहा है। उनका मूल नाम उमाशंकर है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 13 Sept 2022 3:02 PM IST
swami avimukteshwaranand journey from student politics to shankaracharya
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Swami Avimukteshwaranand

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Swami Avimukteshwaranand Saraswati: जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी दोनों पीठों के नए शंकराचार्य की घोषणा कर दी गई है। ज्योतिष पीठ पर नए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Swami Avimukteshwaranand) होंगे, जबकि द्वारका शारदा पीठ के नए शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती (Swami Sadanand Saraswati) होंगे।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बनारस से गहरा नाता रहा है और उनका मूल नाम उमाशंकर है। उन्होंने काशी के विश्वविख्यात संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है। इस विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान वे छात्र राजनीति में भी सक्रिय थे और छात्रसंघ के पदाधिकारी भी रहे हैं। उन्होंने काशी में कई धार्मिक आंदोलनों का नेतृत्व भी किया है।

प्रतापगढ़ में हुई शुरुआती पढ़ाई

प्रतापगढ़ में 15 अगस्त 1969 को पैदा होने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का मूल नाम उमाशंकर उपाध्याय है। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा प्रतापगढ़ में ही ग्रहण की थी और उसके बाद वे गुजरात चले गए थे। बाद में वे धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी राम चैतन्य के सानिध्य में आए। ब्रह्मचारी राम चैतन्य के की प्रेरणा से ही उनकी संस्कृत में शिक्षा आरंभ हुई। स्वामी करपात्री जी महाराज के अस्वस्थ होने पर वे ब्रह्मचारी राम चैतन्य के साथ काशी आ गए और यहां पर उन्होंने स्वामी करपात्री जी के ब्रह्मलीन होने तक उनकी समर्पित भाव से सेवा की। स्वामी करपात्री जी महाराज की सेवा में जुटे रहने के दौर में ही उन्हें पुरी के पीठाधीश्वर स्वामी निरंजन देव तीर्थ और ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का दर्शन एवं सानिध्य हासिल हुआ।


छात्र राजनीति में भी रहे सक्रिय

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अपनी शास्त्री और आचार्य की पढ़ाई काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से की है। इस दौरान वे छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे और उन्होंने छात्रसंघ के पदाधिकारी के रूप में भी भूमिका निभाई। 1994 में वे विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी चुने गए थे। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्हें 15 अप्रैल 2003 को दंड सन्यास की दीक्षा दी गई और इसके बाद उन्हें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती नाम दिया गया। वाराणसी के केदार घाट स्थित श्रीविद्या मठ की पूरी व्यवस्था व कमान स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ही संभालते रहे हैं।

कई आंदोलनों का किया नेतृत्व

उन्होंने काशी के प्रमुख धार्मिक आंदोलनों का नेतृत्व भी किया है। 2008 में उन्होंने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने की मांग को लेकर 112 दिनों तक काशी में अनवरत अनशन किया था। इस दौरान उन्होंने अन्न-जल त्याग कर गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने और उसे स्वच्छ रखने के लिए ठोस पहल करने की मांग की थी। अनशन के कारण स्वास्थ्य काफी खराब हो जाने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निर्देश पर उन्होंने अनशन समाप्त किया था। इस दौरान कांग्रेसी नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत कई नेताओं से मिलने पहुंचे थे।


2015 में निकाली थी अन्याय प्रतिकार यात्रा

2015 में उन्होंने संतों पर लाठीचार्ज के विरोध में अन्याय प्रतिकार यात्रा निकाली थी। इसके पूर्व वे गंगा सेवा अभियान यात्रा भी निकाल चुके हैं। उन्होंने काशी में मंदिर बचाओ आंदोलन छेड़कर देशभर के हिंदुओं को जागृत करने का प्रयास किया था। अभी हाल में उन्होंने ज्ञानवापी में आदि विश्वेश्वर की पूजा के लिए अन्न जल त्याग कर धरना दिया था। उन्हें स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का प्रमुख शिष्य माना जाता रहा है। अब उन्हें ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य घोषित किया गया है।

स्वामी सदानंद सरस्वती

द्वारका शारदा पीठ के नए शंकराचार्य बनाए गए स्वामी सदानंद सरस्वती का ताल्लुक मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर से है। उन्होंने 18 साल की उम्र में ही स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का सानिध्य हासिल किया था। ब्रह्मचर्य की दीक्षा ग्रहण करने के बाद उन्हें ब्रह्मचारी सदानंद का नाम दिया गया था।

दंड संन्यास की दीक्षा लेने के बाद वे स्वामी सदानंद सरस्वती के नाम से जाने जाने लगे। अभी तक वे गुजरात की द्वारका शारदा पीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के तौर पर सारा कामकाज देखते रहे हैं। अब उन्हें इस पीठ का नया शंकराचार्य घोषित किया गया है।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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