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संजय गांधी की वह करीबी महिला, इंदिरा व मेनका भी जिसके सामने हो गई थीं बेबस

1946 में आज ही के दिन जन्मे संजय गांधी किसी जमाने में कांग्रेस में इतने ताकतवर हो गए थे कि कई बार वे अपनी मां इंदिरा गांधी के फैसले तक बदलवा देते थे।

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Published on: 14 Dec 2020 5:53 AM GMT
संजय गांधी की वह करीबी महिला, इंदिरा व मेनका भी जिसके सामने हो गई थीं बेबस
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संजय गांधी की वह करीबी महिला, इंदिरा व मेनका भी जिसके सामने हो गई थीं बेबस (PC: social media)

लखनऊ: कांग्रेस के लोग आज भले ही संजय गांधी को भूल गए हों मगर एक जमाना था कि कांग्रेस में संजय गांधी की तूती बोला करती थी। 1975 में आपातकाल घोषित होने से कुछ समय पहले ही संजय गांधी सक्रिय राजनीति में आए थे मगर कांग्रेस ही नहीं बल्कि सरकार और देश में उनका सिक्का चलने लगा था। इंदिरा सरकार के मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों को प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष से ज्यादा तवज्जो संजय और उनकी मंडली को देनी पड़ती थी।

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इमरजेंसी के दौरान ही एक महिला संजय गांधी से नजदीकी के चलते दिल्ली के सत्ता के गलियारों में काफी ताकतवर हो गई थी। इस महिला का नाम था रुखसाना सुल्ताना। खुद इंदिरा गांधी और संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी भी रुखसाना सुल्ताना को नापसंद करती थीं मगर संजय गांधी की मेहरबानी के चलते इस महिला से भिड़ने की हिम्मत किसी की नहीं होती थी।

काफी ताकतवर हो गए थे संजय गांधी

1946 में आज ही के दिन जन्मे संजय गांधी किसी जमाने में कांग्रेस में इतने ताकतवर हो गए थे कि कई बार वे अपनी मां इंदिरा गांधी के फैसले तक बदलवा देते थे। कांग्रेस की युवा शाखा युवक कांग्रेस की बागडोर संजय गांधी को सौंपी गई थी और इसके जरिए संजय ने देश भर में युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज तैयार की थी।

युवक कांग्रेस को मजबूत मनाने के पीछे मकसद तो जयप्रकाश आंदोलन का मुकाबला करने का था मगर संजय गांधी की युवा कांग्रेस आपातकाल के दौरान कांग्रेस में अलग समानांतर सत्ता का केंद्र बन गई थी। हालत यह हो गई थी केंद्र सरकार के कई मंत्री और पार्टी के पदाधिकारी प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष से ज्यादा तवज्जो संजय और उनकी मंडली को दिया करते थे।

सत्ता के गलियारों में रुखसाना की धमक

देश की राजनीति में आपातकाल के समय को एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। आपातकाल के दौरान ही संजय गांधी से नजदीकी बनाकर रुखसाना सुल्ताना ने दिल्ली के सत्ता के गलियारों में अपनी काफी धमक बना ली थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रशीद किदवई ने अपनी चर्चित किताब 24 अकबर रोड में रुखसाना का जिक्र किया है।

इंदिरा व मेनका को नापसंद थी रुखसाना

उन्होंने लिखा है कि रुखसाना की पहचान संजय गांधी की करीबी और एक समाज सेविका के तौर पर थी। रुखसाना ने संजय गांधी के साथ काफी नजदीकी बना ली थी और संजय की पत्नी मेनका गांधी, इंदिरा गांधी, उस वक्त यूथ कांग्रेस की अध्यक्ष अंबिका रुखसाना को पसंद नहीं करती थीं। इसके बावजूद रुखसाना राजनीतिक तौर पर काफी ताकतवर हो गई थी।

नसबंदी कार्यक्रम में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका

आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने काफी जोर-शोर से नसबंदी कार्यक्रम चलाया था। रुखसाना को मुस्लिम बहुल इलाके जामा मस्जिद में लोगों की नसबंदी कराने और वहां से अवैध निर्माण हटाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस मामले को लेकर खूब विवाद भी पैदा हुआ था। रशीद किदवई की किताब के मुताबिक जामा मस्जिद इलाके में रुखसाना ने 8000 लोगों को नसबंदी कराने के लिए प्रेरित किया था जिसके बदले में उसे सरकार से कथित तौर पर 84000 रुपए मिले थे।

sanjay-gandhi sanjay-gandhi (PC: social media)

तुर्कमान गेट कांड को लेकर हुआ विवाद

इसी दौरान हुए तुर्कमान गेट कांड को लेकर काफी विवाद भी पैदा हुआ था। रुखसाना ने जुलाई 1976 में दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में कई दुकानों को ध्वस्त करा दिया था। इस कार्रवाई के खिलाफ हजारों लोग सड़कों पर उतर आए थे जिसके चलते पुलिस ने उग्र भीड़ पर जमकर लाठीचार्ज करने के साथ ही आंसू गैस के गोले छोड़े थे। इस घटना में पुलिस फायरिंग में कई लोगों की मौत भी हो गई थी। तुर्कमान गेट कांड में रुखसाना की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

अंबिका को संजय ने दिया था यह जवाब

यूथ कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष अंबिका ने भी एक बार इंटरव्यू में खुलासा किया था कि वे इंदिरा गांधी के आवास पर रुखसाना की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं कर पाती थीं। उन्होंने इसे लेकर इंदिरा गांधी से शिकायत भी दर्ज कराई थी।

इस पर इंदिरा गांधी ने अंबिका को संजय गांधी से ही बात करने को कहा था। जब अंबिका ने रुखसाना के बारे में संजय गांधी से शिकायत की तो संजय गांधी ने अंबिका को यह कहकर चुप करा दिया था कि यूथ कांग्रेस को रुखसाना की जरूरत है, ना कि रुखसाना को यूथ कांग्रेस की। इससे समझा जा सकता है कि संजय गांधी रुखसाना पर किस कदर मेहरबान थे।

ऐसे हुई थी संजय की रुखसाना से मुलाकात

रुखसाना की निजी जिंदगी की बात की जाए तो उनकी शादी शिवेंद्र सिंह के साथ हुई थी। दोनों के बीच ज्यादा दिनों तक पटरी नहीं बैठ सकी और जल्द ही दोनों का तलाक हो गया था।

इस विवाह से रुखसाना को एक बेटी भी हुई जिसने बाद में चलकर बॉलीवुड की दुनिया में खूब नाम कमाया जिसे लोग अमृता सिंह के रूप में जानते हैं। शिवेंद्र सिंह से तलाक के बाद रुखसाना ने दिल्ली में एक ज्वेलरी बुटीक खोला था। एक बार संजय सिंह खुद इस बुटीक पर गए थे और इस दौरान दोनों के बीच जान पहचान हुई जो बाद में काफी घनिष्ठ दोस्ती में बदल गई।

जनता पार्टी की सरकार का पतन

आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस को जनता पार्टी के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा और इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हो गई। लेकिन काफी अंतर विरोधों के चलते जनता पार्टी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और 1980 में देश में फिर आम चुनाव हुआ और इस चुनाव में इंदिरा गांधी एक बार फिर सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहीं।

इंदिरा की सत्ता वापसी में भूमिका

आपातकाल के बाद 1977 में कांग्रेस की हार से संजय गांधी में काफी बदलाव लाया। राजनीति को ठेंगे पर रखने वाले संजय गांधी ने इस हार के बाद राजनीति का गुणा-भाग सीख लिया। कहा जाता है कि चरण सिंह जैसे महत्वाकांक्षी नेता को पीएम बनवा कर उन्होंने जनता पार्टी को तोड़ने में प्रमुख भूमिका निभाई और इसके बाद आम लोगों के बीच इंदिरा गांधी की छवि को एक बार फिर चमकाने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही।

इसका नतीजा यह निकला 1980 के जनवरी महीने में हुए चुनाव में कांग्रेस ने न केवल केंद्र में सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की बल्कि 8 राज्यों में भी कांग्रेस की सरकार बनी।

विमान हादसे में इस तरह हुई मौत

1980 में सत्ता में कांग्रेस की वापसी के बाद संजय गांधी का सिक्का ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका क्योंकि एक विमान हादसे ने उनकी जिंदगी छीन ली। 23 जून 1980 को संजय गांधी ने दिल्ली स्थित फ्लाइंग क्लब इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना के संग टू सीटर प्लेन में सवार होकर उड़ान भरी, लेकिन दिल्ली के दक्षिणी इलाके में यह विमान क्रैश कर गया। संजय गांधी और सुभाष सक्सेना दोनों की इस विमान हादसे में तुरंत ही मौत हो गई।

संजय गांधी की इस तरह असामयिक मौत पर इंदिरा गांधी फूट-फूट कर रोई थीं। संजय गांधी की मौत के करीब सवा चार साल बाद 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की भी हत्या हो गई और उसके बाद कांग्रेस और देश की कमान राजीव गांधी के हाथों में आई।

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आपातकाल के बाद नेपथ्य में रुखसाना

जहां तक रुखसाना का सवाल है तो आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनते ही रुखसाना नेपथ्य में चली गईं। ‌इसके बाद उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं सुना गया। 1983 में उनका नाम एक बार फिर तब चर्चा में आया जब उनकी बेटी अमृता सिंह की पहली फिल्म बेताब रिलीज हुई थी। इसके बाद फिर उनके बारे में कुछ ज्यादा चर्चा नहीं सुनी गई।

रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी

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