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बर्थडे स्पेशल: हमारे ऐब ने बेऐब कर दिया हमको- महान शायर जौन एलिया

जौन यूपी के अमरोहा में पैदा हुए थे। पिता अल्लामा शफीक हसन एलिया जाने-माने विद्वान और शायर थे। पांच भाइयों में सबसे छोटे जौन एलिया ने 8 साल की उम्र में ही पहला शेर कहा था।

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Published on: 14 Dec 2020 9:08 AM GMT
बर्थडे स्पेशल: हमारे ऐब ने बेऐब कर दिया हमको- महान शायर जौन एलिया
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बर्थडे स्पेशल: हमारे ऐब ने बेऐब कर दिया हमको- महान शायर जौन एलिया (PC: Social Media)

लखनऊ: महान शायर जौन एलिया की आज जयंती है। 14 दिसंबर 1931 को जन्मे जॉन एलिया का 8 नवंबर, 2002 को पाकिस्तान में इंतकाल हो गया था। जौन सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं हिंदुस्तान व पूरे विश्व में अदब के साथ पढ़े और जाने जाते हैं।

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अमरोहा में हुआ था जन्म

जौन यूपी के अमरोहा में पैदा हुए थे। पिता अल्लामा शफीक हसन एलिया जाने-माने विद्वान और शायर थे। पांच भाइयों में सबसे छोटे जौन एलिया ने 8 साल की उम्र में ही पहला शेर कहा था। जौन एलिया ने अपने लिए अपने पूर्ववर्ती और समकालीन शायरों से अलग अभिव्यक्ति का एक बिल्कुल अलग अंदाज़ और जुदा तेवर विकसित किया था था। प्रेम के टूटने की व्यथा, अकेलेपन और अजनबीयत के गहरे एहसास उनकी शायरी में बहुत तीखेपन के साथ व्यक्त हुए है।

एलिया अपने विचारों के कारण भारत के विभाजन के सख्त खिलाफ थे, लेकिन बाद में इसे एक समझौता के रूप में स्वीकार किया। 1957 में एलिया पाकिस्तान चले गये और कराची को अपना घर बना लिया। जल्द ही वे शहर के साहित्यिक हलकों में लोकप्रिय हो गए। उनकी कविता उनकी विविध अध्ययन आदतों का स्पष्ट प्रमाण थी, जिसके कारण उन्हें व्यापक प्रशंसा और दृढ़ता मिली। सीधे-सरल शब्दों में बड़ी से बड़ी और जटिल से जटिल बात कह देने का हुनर उन्हें पता था अलमस्तजीवन जीवन शैली, हालात से समझौता न करने की आदत और समाज के स्थापित मूल्यों के साथ अराजक हो जाने तक उनकी तेज-तल्ख़ झड़प ने उन्हें ज़िन्दगी में अकेला तो किया, लेकिन लेखन में धार भी बख्शी।

jaun elia jaun elia (PC: Social Media)

संपादक भी बने

एलिया एक साहित्यिक पत्रिका, इंशा के संपादक बने, जहाँ उनकी मुलाकात एक उर्दू लेखक ज़ाहिद हिना से हुई, जिनसे उन्होंने बाद में शादी की।

इनके 2 बेटियों और एक बेटे का जन्म हुआ। लेकिन उन्होंने 80 के दशक के मध्य में तलाक ले लिया। उसके बाद, अलगाव के कारण जौन की स्थिति खराब हो गई। वे जिंदगी से क्रोधित हो गए और शराब पीने लगे।

वो एक विपुल लेखक थे, लेकिन कभी भी उनके लिखित काम को प्रकाशित करने के लिए राजी नहीं किया गया था। उनका पहला कविता संग्रह "हो सकता है" तब प्रकाशित हुआ था जब वह 60 वर्ष के थे।

उनकी कविता का दूसरा खंड 'अर्थात' उनकी मृत्यु के बाद 2003 में प्रकाशित हुआ, और तीसरा खंड "गुमान" (2004) नाम से प्रकाशित हुआ।

एलिया धार्मिक नहीं थे और क्रांतिकारी विचारधारा के थे।उनके बड़े भाई, रईस अमरोहावी को धार्मिक चरमपंथियों ने मार डाला था।

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जौन के कुछ शेर

उसके पहलू से लग के चलते हैं

हम कहीं टालने से टलते हैं

मै उसी तरह तो बहलता हूँ

और सब जिस तरह बहलतें हैं

वो है जान अब हर एक महफ़िल की

हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने में

जो भी खुश है हम उससे जलते हैं।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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