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देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की जयंती आज:गांधी ने राजेंद्र बाबू का दृष्टिकोण ही बदल दिया

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को हुआ। उनकी आज 134वीं जयंती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर स्मरण करते हुए नमन किया है। डॉक्टर राजेंद्र बाबू भारत के पहले राष्ट्रपति थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे।

Anoop Ojha
Published on: 3 Dec 2018 9:49 AM GMT
देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की जयंती आज:गांधी ने राजेंद्र बाबू का दृष्टिकोण ही बदल दिया
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देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को हुआ। उनकी आज 134वीं जयंती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर स्मरण करते हुए नमन किया है। डॉक्टर राजेंद्र बाबू भारत के पहले राष्ट्रपति थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे। पूरे देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था। डॉक्टर राजेंद्र बाबू अत्यंत सरल और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे वे सभी वर्ग के लोगों से सामान्य व्यवहार रखते थे।



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प्रारंभिक जीवन

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। राजेन्द्र प्रसाद अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। महादेव सहाय फारसी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अपनी माँ और बड़े भाई से काफी लगाव था। माता धार्मिक महिला थी पांच वर्ष की आयु में राजेंद्र प्रसाद को उनके समुदाय की एक प्रथा के अनुसार उन्हें एक मौलवी के सुपुर्द कर दिया गया जिसने उन्हें फ़ारसी सिखाई। बाद में उन्हें हिंदी और अंकगणित सिखाई गयी। मात्र 12 साल की उम्र में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से हो गया।

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प्रतिभाशाली छात्र

राजेंद्र प्रसाद एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और उन्हें 30 रूपए मासिक छात्रवृत्ति दिया गया।

इसके बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त की थी जो निश्चित ही राजेंद्र प्रसाद और उनके परिवार के लिए गर्व की बात थी।

उसके बाद प्रसाद जी ने प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया जहां से उन्होंने स्नातक किया 1960 में यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता से इकोनॉमिक्स में किया ।

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महात्मा गांधी से मिलने के बाद राजेंद्र प्रसाद का दृष्टिकोण ही बदल गया

भारतीय राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के के प्रभाव ने राजेंद्र प्रसाद को काफी प्रभावित किया। जब गांधीजी बिहार के चंपारण जिले में तथ्य खोजने के मिशन पर थे तब उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को स्वयंसेवकों के साथ चंपारण आने के लिए कहा। गांधीजी ने जो समर्पण, विश्वास और साहस का प्रदर्शन किया उससे डॉ. राजेंद्र प्रसाद काफी प्रभावित हुए। गांधीजी के प्रभाव से डॉ. राजेंद्र प्रसाद का दृष्टिकोण ही बदल गया। उन्होंने अपने जीवन को साधारण बनाने के लिए अपने सेवकों की संख्या कम कर दी। उन्होंने अपने दैनिक कामकाज जैसे झाड़ू लगाना, बर्तन साफ़ करना खुद शुरू कर दिया जिसे वह पहले दूसरों से करवाते थे। गांधीजी के संपर्क में आने के बाद वह आज़ादी की लड़ाई में पूरी तरह से मशगूल हो गए।एक नई ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया 1931 में कांग्रेस ने आंदोलन छेड़ दिया था।

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स्वतंत्रता आंदोलन

इस दौरान डॉक्टर प्रसाद को कई बार जेल जाना पड़ा 1934 में उनको मुंबई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। एक से अधिक बार अध्यक्ष बनाए गए जुलाई 1946 को जब संविधान सभा को भारत के संविधान के गठन की जिम्मेदारी सौंपी गयी तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। आज़ादी के ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतन्त्र भारत का संविधान लागू किया गया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का प्रयोग उन्होंने काफी सूझ-बूझ से किया और दूसरों के लिए एक नई मिसाल कायम की।

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संविधान निर्माण के लिए अध्यक्ष नियुक्त

आजादी के बाद बनी पहली सरकार में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को पंडित जवाहरलाल नेहरु की सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर खाद व कृषि विभाग का काम सौंपा गया। इसके साथ ही इन्हें भारतीय संविधान सभा में संविधान निर्माण के लिए अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। सेवानिवृत्ति के बाद अपने जीवन के कुछ महीने उन्होंने पटना के सदाक़त आश्रम में बिताये। 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का देहांत हो गया।

1921 से 1946 के दौरान राजनितिक सक्रियता के दिनों में राजेन्द्र प्रसाद पटना स्थित बिहार विद्यापीठ भवन में रहे थे। मरणोपरांत उसे 'राजेन्द्र प्रसाद संग्रहालय' बना दिया गया।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

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