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Narendrajit Singh: संघ परिवार के मुखिया बैरिस्टर नरेन्द्रजीत सिंहजी के जन्मदिवस पर विशेष

Narendrajit Singh: 1935 में उनका विवाह जम्मू-कश्मीर राज्य के दीवान बद्रीनाथ जी की पुत्री सुशीला जी से हुआ। 1944 में वे पहली बार एक सायं शाखा के मकर संक्रांति उत्सव में मुख्य अतिथि बनकर आये। 1945 में वे विभाग संघचालक बनाये गये। 1947 में श्री गुरुजी ने उन्हें प्रांत संघचालक घोषित किया। नरेन्द्र जी का परिवार अत्यधिक सम्पन्न था; पर शिविर आदि में वे सामान्य स्वयंसेवक की तरह सब काम स्वयं करते थे।

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Published on: 18 May 2023 7:55 PM GMT
Narendrajit Singh: संघ परिवार के मुखिया बैरिस्टर नरेन्द्रजीत सिंहजी के जन्मदिवस पर विशेष
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Birthday special of Sangh Parivar head barrister Narendrajit Singh (Photo-Social Media)

Narendrajit Singh: भारतीय समाज में संघ और इसके स्वयंसेवक बहुत विशिष्ट स्थान और महत्व रखते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वस्तुतः मनुष्य के समग्र विकास और निर्माण की कार्यशाला है। इस संगठन ने समय समय पर समाज को ऐसे ऐसे रत्न दिए हैं जिनसे समाज ने दिशा पाई है और भारतीयता के मूल्यों को साथ गति मिली है। संघ परिवार में ऐसे ही एक अभिभावक तुल्य महापुरुष हुए हैं बैरिस्टर नरेंद्रजीत सिंह। संघ परिवार का आज का स्वरूप बहुत विशाल हो चुका है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में संघचालक की भूमिका परिवार के मुखिया की होती है। बैरिस्टर नरेन्द्रजीत सिंह ने उत्तर प्रदेश में इस भूमिका को जीवन भर निभाया। उनका जन्म 18 मई, 1911 को कानपुर के प्रख्यात समाजसेवी रायबहादुर श्री विक्रमाजीत सिंह के घर में हुआ था। शिक्षाप्रेमी होने के कारण इस परिवार की ओर से कानुपर में कई शिक्षा संस्थाएं स्थापित की गयीं। नरेन्द्र जी की शिक्षा स्वदेश व विदेश में भी हुई। लंदन से कानून की परीक्षा उत्तीर्ण कर वे बैरिस्टर बने। वे न्यायालय में हिन्दी में बहस करते थे। उन्होंने प्रसिद्ध लेखकों के उपन्यास पढ़कर अपनी हिन्दी को सुधारा। कम्पनी लाॅ के वे विशेषज्ञ थे, उनकी बहस सुनने दूर-दूर से वकील आते थे।

1935 में उनका विवाह जम्मू-कश्मीर राज्य के दीवान बद्रीनाथ जी की पुत्री सुशीला जी से हुआ। 1944 में वे पहली बार एक सायं शाखा के मकर संक्रांति उत्सव में मुख्य अतिथि बनकर आये। 1945 में वे विभाग संघचालक बनाये गये। 1947 में श्री गुरुजी ने उन्हें प्रांत संघचालक घोषित किया। नरेन्द्र जी का परिवार अत्यधिक सम्पन्न था; पर शिविर आदि में वे सामान्य स्वयंसेवक की तरह सब काम स्वयं करते थे। उन्होंने अपने बच्चों को संघ से जोड़ा और एक पुत्र को तीन वर्ष के लिए प्रचारक भी बनाया। 1948 ई0 के प्रतिबंध के समय उन्हें कानपुर जेल में बंद कर दिया गया। कांग्रेसी गुंडों ने उनके घर पर हमला किया। शासन चाहता था कि वे झुक जाएं; पर उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि संघ का काम राष्ट्रीय कार्य है और वह इसे नहीं छोड़ेंगे। उनके बड़े भाई ने संदेश भेजा कि अब पिताजी नहीं है। अतः परिवार का प्रमुख होने के नाते मैं आदेश देता हूं कि तुम जेल मत जाओ; पर बैरिस्टर साहब ने कहा कि इस अन्याय के विरोध में परिवार को भी समर्पित करना पड़े, तो वह कम है। वे जेल में सबके साथ सामान्य भोजन करते और भूमि पर ही सोते थे। 1975 में आपातकाल में भी वे जेल में रहे। जेल में मिलने आते समय उनके परिजन फल व मिष्ठान आदि लाते थे। वे उसे सबके साथ बांटकर ही खाते थे।

बैरिस्टर साहब के पूर्वज पंजाब के मूल निवासी थे। वे वहां से ही सनातन धर्म सभा से जुड़े थे।1921 में उनके पिता श्री विक्रमाजीत सिंहजी ने कानपुर में ‘सनातन धर्म वाणिज्य महाविद्यालय’ की स्थापना की। इसके बाद तो इस परिवार ने सनातन धर्म विद्यालयों की शृंखला ही खड़ी कर दी। बैरिस्टर साहब एवं उनकी पत्नी (बूजी) का दीनदयाल जी से बहुत प्रेम था। उनकी हत्या के बाद कानपुर में हुई श्रद्धांजलि सभा में बूजी ने उनकी स्मृति में एक विद्यालय खोलने की घोषणा की। पंडित जी की हत्या के दो वर्ष के भीतर ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय विद्यालय शुरू हो गया जिसकी प्रतिष्ठा आज प्रदेश के बड़े विद्यालयों में है। उनके परिवार द्वारा चलाये जा रहे सभी विद्यालयों की पूरे प्रदेश में धाक है। विद्यालयों से उन्हें इतना प्रेम था कि उनके निर्माण में धन कम पड़ने पर वे अपने पुश्तैनी गहने तक बेच देते थे। मेधावी छात्रों से वे बहुत प्रेम करते थे। जब भी कोई निर्धन छात्र अपनी समस्या लेकर उनके पास आता था, तो वे उसका निदान अवश्य करते थे।

संघ परिवार से जुड़े लोग बताते हैं की वे बहुत सिद्धांतप्रिय थे। एक बार उनके घर पर चीनी समाप्त हो गयी। बाजार में भी चीनी उपलब्ध नहीं थी। उन्होंने अपने विद्यालय के छात्रावास से कुछ चीनी मंगायी; पर साथ ही उसका मूल्य भी भेज दिया। उनका मत था कि राजनीति में चमक-दमक तो बहुत है; पर उसके माध्यम से जितनी समाज सेवा हो सकती है, उससे अधिक बाहर रहकर की जा सकती है।
बैरिस्टर साहब देश तथा प्रदेश की अनेक धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी थे। जब तक स्वस्थ रहे, तब तक प्रत्येक काम में वे सहयोग देते रहे। 31 अक्तूबर, 1993 को उनका शरीरांत हुआ। उन्होंने अपने व्यवहार से प्रमाणित कर दिखाया कि परिवार के मुखिया को कैसा होना चाहिए। आज बैरिस्टर साहब के बेटे वीरेन्द्र पराक्रमादित्यजी पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र संघचालक हैं।

संघ के कानपुर प्रांत वर्तमान प्रांत संघ चालक ज्ञानेंद्र सचान जी कहते हैं कि हममें से अनेक कार्यकर्त्ता माननीय बैरिस्टर साहब को परिवार के मुखिया के रूप में उनके प्रेम एवं अनुशासन के साक्षी रहे, साथ ही माननीय वीरेंद्र जी की सरलता व सादगी से प्रभावित रहे हैं। मुझे भी दोनों विभूतियों का सुखद सान्निध्य प्राप्त रहा और उनकी सादगी व स्नेह-वत्सलता ने हम सभी स्वयंसेवकों को प्रभावित किया। संघ परिवार के वरिष्ठ सदस्य भवानी भीख तिवारी जी कहते हैं कि संघ में ऐसे अनेक तपोनिष्ठ कार्यकर्त्ता हैं, जो कई पीढ़ियों से संगठन व समाज की सेवा में अहर्निश लगे हुए हैं। एक विचार-परंपरा से कई-कई पीढ़ियों को जोड़े रखना संघ कार्यपद्धति की अद्भुत विशेषता है। बैरिस्टर साहब की जीवनी लिखने वाले उनके सहयोगी भी डॉक्टर कमल गुप्ता जी कहते हैं कि बैरिस्टर साहब का पूरा जीवन ही संघ के नए कार्यकर्ताओं के लिए आदर्श है। बैरिस्टर साहब के व्यक्तित्व का प्रभाव श्री सुदर्शन जी ने अपने संस्मरणों में कई जगह उल्लिखित किया है। उनके जन्मदिन पर हमारा यह संकल्प बनता है कि उनके द्वारा स्थापित मानदंडों को ही लक्ष्य बना कर हमें चलना है। बैरिस्टर साहब और उनके परिवार के अतिनिकट रहे श्री काशी सिंह कहते हैं कि संघ के आदर्श और बैरिस्टर साहब एक दूसरे के पर्याय हैं। संघ के विशाल वटवृक्ष के आकार में बैरिस्टर साहब का योगदान अद्भुत है। शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्य मानवता की धरोहर हैं।

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