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मैने गांधी वध क्यों किया! आखिर क्या थी इसकी सच्चाई

नाथूराम के तर्कों के साथ समस्याएं थीं। मसलन, उसकी सोच थी कि गांधी देश के बंटवारे के प्रति उत्साहित थे, जबकि इतिहास के मुताबिक मामला बिलकुल उल्टा था। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कांग्रेस में गांधी तानाशाह थे, लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस के अंदर अपनी बात मनवाने के

Harsh Pandey
Published on: 30 Jun 2023 12:10 PM
मैने गांधी वध क्यों किया! आखिर क्या थी इसकी सच्चाई
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नई दिल्ली: 2 अक्टूबर का दिन भारतीय जनमानस के लिए एक त्योहार होता है। 15 अगस्त, 26 जनवरी की भांति 2 अक्टूबर भी पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, कारण है कि 2 अक्टूबर 1869 के दिन महात्मा गांधी का जन्म हुआ था।

इसके साथ ही आज के ही दिन भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। पूरा देश गांधी जयन्ती के साथ पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री की जयन्ती मना रहा है।

बापू, महात्मा गांधी, गांधी जी यानी मोहनदास करमचंद गांधी, आज पूरा राष्ट्र उनकी 150वीं जयंती पर उन्हें याद कर रहा है। गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।

गांधीजी ने पूरा जीवन लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया, उनका प्रभाव यहां तक था कि अंग्रेजों को भी उनके सामने झुकना पड़ा, आईये

आपको बताते हैं गांधी जी से जुड़े अनोखे तथ्य...

कहानी उस वक्त की है, गिरफ़्तार होने के बाद गोडसे ने गांधी के पुत्र देवदास गांधी को तब पहचान लिया था जब वे गोडसे से मिलने थाने पहुँचे थे, कहा जाता है कि इस मुलाकात का जिक्र नाथूराम के भाई और सह अभियुक्त गोपाल गोडसे ने अपनी किताब गांधी वध क्यों, में किया है।

बताया गया कि गोपाल गोडसे को फांसी नहीं हुई, क़ैद की सजा हुई थी। जब देवदास गांधी पिता की हत्या के बाद संसद मार्ग स्थित पुलिस थाने पहुंचे थे, तब नाथूराम गोडसे ने उन्हें पहचाना था।

दरअसल, गोपल गोडसे ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है कि देवदास शायद इस उम्मीद में आए होंगे कि उन्हें कोई वीभत्स चेहरे वाला, गांधी के खून का प्यासा कातिल नज़र आएगा, लेकिन नाथूराम सहज और सौम्य थे। उनका आत्म विश्वास बना हुआ था, देवदास ने जैसा सोचा होगा, उससे एकदम उलट, इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि निश्चित तौर पर हम ये नहीं जानते कि वाकई में ऐसा रहा होगा।

देवदास से मुलाकात के अंश...

अपनी किताब में उन्होंने लिखा कि नाथूराम ने देवदास गांधी से कहा कि मैं नाथूराम विनायक गोडसे हूं, हिंदी अख़बार हिंदू राष्ट्र का संपादक, मैं भी वहां था जहां जहां गांधी की हत्या हुई थी।

इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि आज तुमने अपने पिता को खोया है, मेरी वजह से तुम्हें दुख पहुंचा है, तुम पर और तुम्हारे परिवार को जो दुख पहुंचा है, इसका मुझे भी बड़ा दुख है। कृप्या मेरा यक़ीन करो, मैंने यह काम किसी व्यक्तिगत रंजिश के चलते नहीं किया है, ना तो मुझे तुमसे कोई द्वेष है और ना ही कोई ख़राब भाव।

देवदास ने पूछा- तुमने ऐसा क्यों किया...

इसके बाद जवाब में नाथूराम ने कहा कि केवल और केवल राजनीतिक वजहसे, नाथूराम ने देवदास से अपना पक्ष रखने के लिए समय मांगा लेकिन पुलिस ने उसे ऐसा नहीं करने दिया। अदालत में नाथूराम ने अपना वक्तव्य रखा था, जिस पर अदालत ने पाबंदी लगा दी।

गोडसे ने अपनी पुस्तक में किया जिक्र...

गोपाल गोडसे ने अपनी पुस्तक के अनुच्छेद में नाथूराम की वसीयत का जिक्र किया है, जिसकी अंतिम पंक्ति है- "अगर सरकार अदालत में दिए मेरे बयान पर से पाबंदी हटा लेती है, ऐसा जब भी हो, मैं तुम्हें उसे प्रकाशित करने के लिए अधिकृत करता हूं।"

अदालत में गोडसे का बयान...

ऐसे फिर नाथूराम के वक्तव्य में आख़िर है क्या? उसमें नाथूराम ने इन पहलुओं का ज़िक्र किया है- पहली बात, वह गांधी का सम्मान करता था। उसने कहा था कि वीर सावरकर और गांधीजी ने जो लिखा है या बोला है, उसे मैंने गंभीरता से पढ़ा है। मेरे विचार से, पिछले तीस सालों के दौरान इन दोनों ने भारतीय लोगों के विचार और कार्य पर जितना असर डाला है, उतना किसी और चीज़ ने नहीं।

दूसरी बात, जो नाथूराम ने कही, "इनको पढ़ने और सोचने के बाद मेरा यकीन इस बात में हुआ कि मेरा पहला दायित्व हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए है, एक देशभक्त और विश्व नागरिक होने के नाते, 30 करोड़ हिंदुओं की स्वतंत्रता और हितों की रक्षा अपने आप पूरे भारत की रक्षा होगी, जहां दुनिया का प्रत्येक पांचवां शख्स रहता है।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस सोच ने मुझे हिंदू संगठन की विचारधारा और कार्यक्रम के नज़दीक किया। मेरे विचार से यही विचारधारा हिंदुस्तान को आज़ादी दिला सकती है और उसे कायम रख सकती है।" इस नज़रिए के बाद नाथूराम ने गांधी के बारे में सोचा।

उन्होंने अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र किया कि 32 साल तक विचारों में उत्तेजना भरने वाले गांधी ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा तो मैं इस नतीजे पर पहुंच गया कि गांधी के अस्तित्व को तुरंत खत्म करना होगा।

साथ ही गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों को हक दिलाने की दिशा में शानदार काम किया था, लेकिन जब वे भारत आए तो उनकी मानसिकता कुछ इस तरह बन गई कि क्या सही है और क्या गलत, इसका फैसला लेने के लिए वे खुद को अंतिम जज मानने लगे।

इसके साथ ही उन्होंने लिखा कि अगर देश को उनका नेतृत्व चाहिए तो यह उनकी अपराजेयता को स्वीकार्य करने जैसा था, अगर देश उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करता तो वे कांग्रेस से अलग राह पर चलने लगते।

महात्मा पर आरोप...

इस सोच ने नाथूराम को गांधी की हत्या करने के लिए उकसाया, नाथूराम ने भी कहा कि इस सोच के साथ दो रास्ते नहीं हो सकते, या तो कांग्रेस को गांधी के लिए अपना रास्ता छोड़ना होता और गांधी की सारी सनक, सोच, दर्शन और नजरिए को अपनाना होता या फिर गांधी के बिना आगे बढ़ना होता।"

तीसरा आरोप...

गांधी पर तीसरा आरोप ये था कि गांधी ने पाकिस्तान के निर्माण में मदद की, इस पर नाथूराम ने कहा कि जब कांग्रेस के दिग्गज नेता, गांधी की सहमति से देश के बंटवारे का फ़ैसला कर रहे थे, उस देश का जिसे हम पूजते रहे हैं, मैं भीषण ग़ुस्से से भर रहा था। व्यक्तिगत तौर पर किसी के प्रति मेरी कोई दुर्भावना नहीं है।

लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि मैं मौजूदा सरकार का सम्मान नहीं करता, क्योंकि उनकी नीतियां मुस्लिमों के पक्ष में थीं। लेकिन उसी वक्त मैं ये साफ देख रहा हूं कि ये नीतियां केवल गांधी की मौजूदगी के चलते थीं।"

नाथूराम के तर्कों के साथ समस्याएं थीं। मसलन, उसकी सोच थी कि गांधी देश के बंटवारे के प्रति उत्साहित थे, जबकि इतिहास के मुताबिक मामला बिलकुल उल्टा था। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कांग्रेस में गांधी तानाशाह थे, लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस के अंदर अपनी बात मनवाने के लिए गांधी को भूख हड़ताल करनी पड़ती थी। किसी तानाशाह को आदेश देने के सिवा कुछ करने की जरूरत क्यों होगी?

विचारधारा से थी नफ़रत...

नाथूराम ने गांधी की अंतिम भूख हड़ताल पर सवाल उठाए, लेकिन यह उन्होंने तब किया जब भारत अपने ही वादे से पीछे हट रहा था, गांधी ने इस मौके पर देश को सही एवं उपयुक्त रास्ता दिखाया था।

नाथूराम ने अदालत में जो भी कहा, तर्क के आधार पर उससे सहमत नहीं हुआ जा सकता। यह देवदास को दिए बयान से भी उलट है, केवल राजनीति के चलते उसने गांधी की हत्या नहीं की थी।

साथ ही उन्होंने लिखा कि वह गांधी की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से नफ़रत करता था। यह वास्तविक हिंदू धर्म भाव के बिलकुल उलट था और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उसका 'ब्रेनवाश' किया था।

गौरतलब है कि 2 अक्टूबर का दिन भारतीय जनमानस के लिए एक त्योहार होता है। 15 अगस्त, 26 जनवरी की भांति 2 अक्टूबर भी पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, कारण है कि 2 अक्टूबर 1869 के दिन महात्मा गांधी का जन्म हुआ था।

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