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जदयू-भाजपा ने शुरू किया सफाई अभियान, कांग्रेस-राजद का भी ध्यान
शिशिर कुमार सिन्हा
पटना: समाज कल्याण विभाग के सोशल ऑडिट के बाद मुजफ्फरपुर स्थित बालिका अल्पावास गृह (शेल्टर होम) में बलात्कार, यौन व मानसिक उत्पीडऩ का खुलासा हुआ जिसके तुरंत बाद सरकारी तंत्र के एक्शन में नहीं आने के कारण जिस तरह से बिहार की नीतीश कुमार सरकार की किरकिरी हुई, उससे सरकार में शामिल जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी ने अब छाछ को भी फूंक कर पीना शुरू कर दिया है। दोनों पार्टियों ने अब न केवल एनजीओ, बल्कि अपने से जुड़े एनजीओ संचालकों की भी जांच-पड़ताल शुरू कर दी है। एनजीओ के अलावा सहकारी संगठन में शामिल सदस्यों की भी कुंडली खंगाली जा रही है और पार्टी से उनका कनेक्शन देखा जा रहा है ताकि लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष को बहुत कुछ हाथ नहीं लगे।
मंत्री के कारण बैकफुट पर रही सरकार
समाज कल्याण विभाग के तहत शेल्टर होम में घिनौने कुकृत्यों के खुलासे के बावजूद विभागीय मंत्री मंजू वर्मा ने नैतिकता की दुहाई देकर इस्तीफा नहीं दिया था। इतना ही नहीं, शेल्टर होम में पति की आवाजाही की बात आने पर भी मंत्री बड़बोलेपन के साथ पेश आ रही थीं। बाद में मोबाइल कॉल डिटेल्ड रिपोर्ट (सीडीआर) में पति का नाम आ गया तो मंत्री को इस्तीफा देना पड़ गया। करीब 15 दिनों तक सरकार की किरकिरी सिर्फ मंत्री और उनके पति के कारण होती रही। विपक्ष ने इसे ही मुख्य मुद्दा बनाए रखा। मंत्री के इस्तीफे से यह मुद्दा थोड़ा ठंडा पड़ा तो मुजफ्फरपुर का शेल्टर होम चलाने वाले ब्रजेश ठाकुर के राजनीतिक कनेक्शन पर सभी का ध्यान आया। लगभग सभी दलों के नेताओं के साथ ब्रजेश की उठ-बैठ के कारण विपक्ष इस मुद्दे पर ज्यादा हमलावर नहीं दिखा। कांग्रेस टिकट के लिए ब्रजेश के एक्टिव रहने की बात सामने आई तो विपक्ष में बैठ रही इस पार्टी ने इसे छवि खराब करने की साजिश भर बताकर चुप्पी साध ली।
हालांकि, कांग्रेस के लिए मुसीबत यहीं खत्म नहीं हुई। पटना के एक ऐसे ही शेल्टर होम ‘आसरा’ की दो युवतियों की मौत के बाद गिरफ्तार एनजीओ संचालन समिति के मनीषा दयाल और चिरंतन को लेकर भी कांग्रेस फंसती दिखी। हालांकि, कांग्रेस नेताओं के साथ कई प्रशासनिक अधिकारी और सरकारी तंत्र के भी कई बड़े नाम खासकर मनीषा दयाल से जुड़े होने के कारण सभी की नजरें उसी की ओर टिकी हैं। न केवल नजरें, बल्कि मनीषा और चिरंतन के बयान पर बिहार का राजनीतिक और प्रशासनिक सिस्टम कान लगाए बैठा है।
मनीषा से जुड़े एवीएन इंग्लिश स्कूल, एवीएन सॉल्यूशन, बड्डी कैपिटल, अनु-माया और पिंकशी फाउंडेशन के साथ कॉरपोरेट क्रिकेट लीग में किसी भी तरह जुड़े लोगों की संख्या हजार में है और इनमें ठीकठाक संख्या ऐसे लोगों की है, जो मनीषा दयाल के कारण इन संगठनों-संस्थाओं से गहरे जुड़े थे और इस जुड़ाव का लाभ ले-दे रहे थे। मनीषा प्रकरण में सरकार और विपक्ष, दोनों ही के कई नेताओं का नाम आना तय है। ऐसे में कोई भी दल इस प्रकरण पर बहुत कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है। जदयू के पास समाज कल्याण विभाग था और मनीषा दयाल का ज्यादा वास्ता इसी से था, इसलिए वह संकट में है। राजद इसलिए परेशान है कि उसके कुछ नेताओं से मनीषा दयाल की नजदीकियां हैं। कांग्रेस इसलिए क्योंकि उसके कई नेताओं का मनीषा से बेहद करीबी रिश्ता रहा है। भाजपा के भी कई नेता मनीषा के विभिन्न संगठनों के आयोजनों से वास्ता रखने के कारण घिर सकते हैं। ब्रजेश ठाकुर के मीडिया से जुड़े होने के कारण कुछ लोग उससे बातचीत को लेकर बच भी सकते हैं, लेकिन मनीषा और चिरंतन से करीबी रिश्ता निकलने पर गर्दन फंसनी तय देख राजनीति के साथ प्रशासनिक गलियारे में युद्ध के पहले की शांति जैसी स्थिति है।
सभी दल ढूंढ़ रहे अपने से जुड़े ऐसे लोग
पहले ब्रजेश ठाकुर और अब मनीषा दयाल -दो अलग-अलग तरह की शख्सियत और गुनाह करीब एक जैसा- राजनीतिक दलों, खासकर सत्तारूढ़ पार्टियों को इन दोनों से ऐसी सीख मिली है कि अब सभी ने ऐसी थर्ड पार्टीज को रडार पर रख लिया है। भाजपा और जदयू विशेष रूप से ऐसे नामों की तलाश में जुटे हैं जो पार्टी में रहते हुए या संगठन का फायदा उठाकर एनजीओ यह सहकारी संगठन के नाम पर कुछ कर रहे हैं। इनका इंटरनल ऑडिट कराने की तैयारी है ताकि साफ नाम अलग चुने जा सकें। दोनों ही पार्टियां अब ऐसे लोगों को दरकिनार करना चाह रही हैं, जिनके कारण लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष को भ्रष्टाचार या छवि के नाम पर कुछ कहने-बोलने का मौका मिल सकता है। मुख्यमंत्री ने तो साइकिल योजना के भी निरीक्षण की बात कह दी है, जिसके तहत छात्राओं को स्कूल जाने में सहूलियत के नाम पर साइकिल दी जा रही है। इस योजना में भी घालमेल की बात लंबे समय से सामने आ रही थी। इसमें भी थर्ड पार्टी के कारण कागज पर साइकिल खरीदने का अंदेशा देखते हुए सरकार ने गहन निरीक्षण की प्लानिंग की है।