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Haryana: हरियाणा में गैर जाट मतदाताओं पर फोकस करेगी BJP, विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने बनाई नई रणनीति
Haryana Politics: भाजपा विधानसभा चुनाव के दौरान नई रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में जुटी हुई है।
Haryana Politics: हरियाणा के लोकसभा चुनाव में झटका लगने के बाद भाजपा विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुटी हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 10 सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा को इस बार सिर्फ पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ा है जबकि पांच सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली है। लोकसभा चुनाव के नतीजे की समीक्षा में पार्टी ने पाया कि जाट बिरादरी ने इस बार भाजपा को वोट नहीं दिया है।
इसलिए भाजपा विधानसभा चुनाव के दौरान नई रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में जुटी हुई है। हरियाणा में गैर जाट मतदाताओं की संख्या करीब 75 फीसदी है और विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा इसी वोट बैंक पर फोकस करेगी। हरियाणा की सियासत जाट और गैर जाट के बीच ही घूमती रही है। ऐसे में भाजपा ने राज्य में अपनी सत्ता बचाने के लिए बदली हुई रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया है।
जातीय समीकरण साधने की कोशिश
हरियाणा में नायब सिंह सैनी के मुख्यमंत्री बनने के बाद लंबे समय से नए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं मगर अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर मोहनलाल बडौली की ताजपोशी हो चुकी है। राई से विधायक बडौली ने रोहतक में रविवार को पार्टी की ओर से आयोजित कार्यक्रम के दौरान अपनी जिम्मेदारी संभाल ली है। बडौली का ताल्लुक ब्राह्मण समुदाय से है जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पिछड़े समुदाय से आते हैं।
इस तरह भाजपा ने राज्य के दो प्रमुख पदों के जरिए जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाबी समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को केंद्र में मंत्री बनाया जा चुका है। उन्होंने 10 वर्षों तक राज्य की कमान संभाली और इस साल भाजपा ने उन्हें लोकसभा में भेज कर राज्य में बड़ा सियासी बदलाव किया था।
लोकसभा चुनाव में नहीं मिला जाटों का वोट
वैसे 2014 में हरियाणा की सत्ता में आने से पहले भाजपा को गैर जाटों की पार्टी कहा जाता था क्योंकि जाट बिरादरी का वोट कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पक्ष में शिफ्ट हो चुका था। हुड्डा से पहले इस बिरादरी का वोट चौटाला परिवार के पक्ष में पड़ा करता था। हालांकि हरियाणा की सत्ता पाने के बाद भाजपा जाट मतदाताओं को भी आकर्षित करने की कोशिश में जुटी रही मगर पार्टी को इस काम में ज्यादा कामयाबी नहीं मिल सकी। इस बार के लोकसभा चुनाव में जाट बिरादरी का वोट भाजपा के पक्ष में नहीं पड़ा।
पार्टी ने हरियाणा में सियासी झटका लगने के बाद हार के कारणों का विश्लेषण किया है और इस विश्लेषण में साफ हो गया है कि जाट मतदाताओं ने इस बार कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है। यही कारण है कि भाजपा बदली हुई रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में जुटी हुई है।
जाट और गैर जाट पर टिकी है सियासत
हरियाणा की सियासत को नजदीक से देखने वाले जानकारों का मानना है कि राज्य की सियासत लंबे समय से दो वर्गों में बंटी रही है। हरियाणा में जाट और गैर जाट सियासत के दो प्रमुख केंद्र माने जाते रहे हैं। हरियाणा में शुरुआत से ही भाजपा को गैर जाटों की पार्टी माना जाता रहा है और यही कारण है कि 1980 से अभी तक प्रदेश अध्यक्ष पद पर गैर जाटों का ही प्रभुत्व रहा है। 1980 से अभी तक सिर्फ दो मौकों पर जाट बिरादरी से जुड़े नेताओं को अध्यक्ष पद की कमान सौंप गई है। सुभाष बराला और ओमप्रकाश धनखड़ के अलावा 1980 के बाद अभी तक पार्टी को कोई जाट प्रदेश अध्यक्ष नहीं मिला है।
इसलिए रणनीति बदलने की मजबूरी
जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे देखने के बाद भाजपा अपनी सोशल इंजीनियरिंग पर वापस लौटने को मजबूर हुई है। विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की ओर से तैयारी शुरू कर दी गई है और इस बार पार्टी 75 फ़ीसदी गैर जाटों को केंद्र में रखते हुए रणनीति बना रही है। वैसे यह भी सच्चाई है कि कांग्रेस को इस बार के लोकसभा चुनाव में जाटों के अलावा गैर जाटों का भी वोट हासिल हुआ है।
विशेष रूप से दलित मतदाताओं ने काफी संख्या में कांग्रेस को समर्थन दिया है। कुछ दूसरे समुदायों का वोट भी कांग्रेस प्रत्याशियों को हासिल हुआ है और इसी कारण पार्टी पांच सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही है।
अब गैर जाट मतदाताओं पर फोकस
वैसे नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री और मोहनलाल बडौली को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से साफ हो गया है कि भाजपा 2014 से पहले वाले सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को आधार बनाकर चुनाव मैदान में उतरने वाली है। बडौली को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपने के साथ ही पार्टी नेतृत्व ने इस बात को साफ कर दिया है कि इसका फोकस गैर जाट मतदाताओं पर होगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल में मनोहर लाल खट्टर के अलावा राव इंद्रजीत सिंह और किशन लाल गुर्जर को भी जगह दी गई है। 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने गैर जाट मतदाताओं पर फोकस किया था और अब 2024 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी उसी राह पर चलती हुई दिख रही है।
विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ओबीसी वर्ग के सम्मेलन की शुरुआत करने जा रही है जिससे इस बात पर मुहर लगती है कि पार्टी इस वर्ग के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में जुट गई है। गृह मंत्री अमित शाह आज अहीरवाल पहुंचने वाले हैं जहां वे अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी का चुनावी बिगुल फूंकेंगे। इसके बाद से पार्टी की ओर से चुनाव अभियान और तेज करने की तैयारी है।