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जदयू-भाजपा का जोड़ है टूटेगा नहीं
शिशिर कुमार सिन्हा
पटना: उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में महागठबंधन तो बिखर जाएगा, लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की गांठें नहीं खुलेंगी। लोकसभा चुनाव में उम्मीद से आगे का परिणाम देखकर राजग के दोनों प्रमुख दलों में जो खुशफहमियां थीं, वह अब दूर हो गई हैं। दोनों दलों ने विधानसभा चुनाव अलग-अलग लडऩे की संभावनाओं पर विचार किया, लेकिन बिखराव से दोनों को हार की आशंकाएं सामने दिख गईं। जनता के बीच सदस्यता अभियान और संगठन की बैठकों के दौर के साथ अब साफ हो चला है कि राजग के दोनों दल एक-दूसरे का दामन नहीं छोड़ेंगे। ऐसे में तीसरा दल, यानी लोकजनशक्ति पार्टी भी कहीं नहीं जाने वाली है। इसके साथ ही दलों ने अब अलग अस्तित्व की खबरों का तेज स्वर में खंडन भी करना शुरू कर दिया है।
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लोकसभा चुनाव के बाद से चल रही थी तेज हवा
जैसे घने बादलों के बरसने के बाद आसमान साफ होने लगता है, बिहार में राजग के साथ भी ऐसा ही हुआ है। लोकसभा चुनाव में 40 में से 39 सीटों पर जीत के आधार पर खुशी राजग के तीनों प्रमुख दलों को एक जैसी होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा दिख नहीं रहा था। 17 में 17 सीटें जीतने वाली भाजपा को जीत के साथ एक ही बात नजर आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण ही जदयू को भी 17 में से 16 सीटें मिलीं और लोजपा को भी सभी छह सीटों पर जीत मिली। जदयू वाले भी इसमें काफी हद तक सच्चाई मानते हैं, खासकर जीतने वाले प्रत्याशी। भाजपा को चुनाव परिणाम ने अति-विश्वास से भर दिया था। जीत के बाद से लगातार प्रदेश भाजपा दफ्तर में एक ही बात की चर्चा चल रही थी कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को अकेले उतरना चाहिए। महागठबंधन में टूट और राजग से निकलने की स्थिति में जदयू के उधर नहीं जाने के आसार पर लगातार विचार के साथ ही यह आवाज तेजी से बुलंद होती जा रही थी कि भाजपा अपना मुख्यमंत्री देने के लिए विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगने उतरे। यही कारण है कि भाजपा के कुछ नेता बार-बार ऐसी संभावनाओं को लेकर बयानबाजी भी कर रहे थे। यही हाल जदयू खेमे में भी था।
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लोकसभा चुनाव में जदयू को जिस एक सीट पर हार मिली, वह उसके पास आने की संभावना पहले ही नहीं थी। फिर भी सीट पर जीत के आसार बने थे। जदयू 17 में से 16 सीटों पर जीत में नमो का नाम तो ले रहा था, लेकिन नीतीश के करिश्मे को कमतर नहीं मान रहा था। इसलिए, जदयू के भी ज्यादातर नेता इस मूड में भाजपा को जवाब दे रहे थे कि अगर वह अकेले उतरना चाहे तो दिक्कत नहीं है। लेकिन, विधानमंडल के मानसून सत्र के समापन तक यह साफ हो गया कि जदयू और भाजपा का गठजोड़ टूटेगा नहीं।
सदस्यता अभियान और संगठन की बैठक से मिला फीडबैक
फिलहाल भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाईटेड ने बिहार में सदस्यता अभियान पर पूरा जोर लगा रखा है। भाजपा बिहार में सदस्यों के मामले में नंबर वन पार्टी बनने की जुगत में है तो जदयू निकाय स्तर तक खुद को मजबूत बनाने के लिए सदस्यता अभियान में ताकत झोंक रहा है। दोनों ही दलों को इस अभियान के सहारे आर्थिक फायदा तो हो ही रहा है, इनके नेताओं की समझ भी ठिकाने पर आ रही है। भाजपा में पिछले दो महीने से अकेले विधानसभा चुनाव में उतरने की जो आवाज उठ रही थी, सदस्यता अभियान के दौरान मिले फीडबैक ने उसे मद्धिम कर दिया है। सदस्यता अभियान और संगठन की बैठकों में सक्रिय नेताओं ने प्रदेश के साथ ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दिग्गजों को यह संदेश साफ तौर पर दिया है कि भाजपा अगर विधानसभा चुनाव में नीतीश के सामने उतरेगी तो न केवल विधानसभा चुनाव में नुकसान होगा, बल्कि लोकसभा के जनादेश पर भी लोग सवाल करेंगे।
आम जनता ने बिखरे महागठबंधन के सामने एकीकृत राजग को विधानसभा चुनाव में बेहतर विकल्प बताया है। भाजपा की तरह ही जदयू को भी अपने जमीनी कार्यकर्ताओं से कुछ ऐसा ही संदेश मिल रहा है। संगठन मजबूती में लगे जदयू नेताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार तक संदेश पहुंचा दिया है कि भाजपा को छोडऩा ठीक नहीं होगा। इससे विशेष तौर पर नीतीश की छवि को नुकसान पहुंचेगा। पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश महागठबंधन के सीएम कैंडिडेट के रूप में लोगों के सामने गए थे, लेकिन लोकसभा में राजग के साथ उतरे। अब दोबारा लोग महागठबंधन या अकेले जदयू को बेहतर विकल्प नहीं बता रहे। दोनों दलों के इस फीडबैक का असर विधानमंडल सत्र के अंतिम दिनों में देखने को भी मिला। भाजपा ने अलग चुनाव लडऩे की बात सार्वजनिक मंच पर कहने वाले अपने नेताओं को कड़ी चेतावनी से लेकर नोटिस तक दे दिया तो जदयू ने भी इस तरह का बड़बोलापन दिखाने वाले अपने नेताओं को नीतीश की सख्त सलाह पहुंचा दी है।
'जिन्हें ख्याली पुलाव पकाना है, पकाएं। कोई परहेज नहीं। लेकिन, भाजपा के अंदर रहते हुए इसपर मनाही है। भाजप और जदयू की दोस्ती पक्की है। हम डबल इंजन सरकार में देश के साथ बिहार के विकास को प्रतिबद्ध हैं। यह प्रतिबद्धता विधानसभा चुनाव के दौरान हमारी एकता से ही दिखेगी। दोनों दलों में ऊपर के स्तर पर ऐसा कोई मतभेद नहीं है। इसलिए, हमने भाजपा के कुछ नेताओं को उनकी समझदारी की भाषा में समझाया है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का स्पष्ट संदेश जदयू के बड़बोले नेताओं के पास पहुंच गया है।'
सुशील कुमार मोदी, उप मुख्यमंत्री व भाजपा नेता
'जदयू में जो कुछ भी होता है, उसके लिए फोरम है और बोलने के लिए व्यक्ति तय हैं। जिन्हें बोलने की जिम्मेदारी मिली है, उन्हें यह भी पता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार क्या कहना चाहते हैं। नीतीश बिहार का विकास चाहते हैं। यही कारण है कि राजग पूरी ताकत के साथ एकीकृत रूप से विधानसभा चुनाव में उतरेगा और केंद्र की अपनी सरकार का बिहार में भरपूर फायदा भी लेगा। ऐसी किसी अफवाह का कोई अर्थ नहीं बनता कि जदयू-भाजपा में कोई मतभेद है। कुछ तकनीकी कारणों से हम केंद्र की सरकार में शामिल नहीं हुए, लेकिन ऐसा नहीं है कि हम सरकार से अलग हैं। वहां भी राजग की ही सरकार है।'
संजय सिंह, मुख्य प्रवक्ता, जनता दल यूनाईटेड