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Abolish Waqf Act: वक्फ एक गूढ़ पहेली, अपने आप में है सुपर कानून, खत्म हुआ तो आएगा क्रांतिकारी बदलाव
Abolish Waqf Act: वक्फ एक राजनीतिक मुद्दा है। अधिकांश राज्यों के अपने वक्फ कानून हैं और केंद्र में लगभग हमेशा एक समग्र कानून लागू होता है; आखिरी वक्फ अधिनियम 2013 था।
Abolish Waqf Act: भाजपा के एक सांसद ने राज्यसभा में एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया है जो अगर पास हो गया तो आज़ाद देश की तवारीख में एक क्रांतिकारी बदलाव की लहर उत्पन्न कर देगा। ये विधेयक मांग करता है कि वक्फ एक्ट को खत्म कर दिया जाए। वक्फ वैसे भी बहुत विवादित चीज है लेकिन फिर भी ये मजबूती से बना हुआ है। वक्फ के तहत भारत में कितनी प्रॉपर्टी है इसका कोई निश्चित आंकड़ा ही नहीं है। फिर भी ये जान लीजिए कि कुछ अनुमान चौंकाने वाले हैं। जैसे कि एक दावा है कि जौनपुर में आधी से ज्यादा जमीन वक्फ की है, कन्नौज की पहाड़ियों की लगभग सारी भूमि वक्फ क्षेत्र है। अहमदाबाद में लगभग 13 प्रतिशत वक्फ का स्वामित्व है। कोलकाता में 5 प्रतिशत और पटना में ये 8 प्रतिशत से अधिक है।
लेकिन वक्फ का मसला सिर्फ आर्थिक नहीं है। वक्फ एक राजनीतिक मुद्दा है। अधिकांश राज्यों के अपने वक्फ कानून हैं और केंद्र में लगभग हमेशा एक समग्र कानून लागू होता है; आखिरी वक्फ अधिनियम 2013 था। एक इस्लामी विद्वान के मुताबिक मूर्त वस्तुएँ भी वक्फ का हिस्सा हो सकती हैं जिनमें मवेशी, कृषि उपकरण, कुरान, घोड़े, ऊँट, तलवारें आदि शामिल हैं। भारत में वक्फों को सभी कानूनों से ऊपर छूट प्राप्त है। कोई भी अन्य कानून वक्फ में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
क्या है वक्फ
वक्फ का अर्थ है किसी भी व्यक्ति द्वारा, किसी भी चल या अचल संपत्ति को मुस्लिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए स्थायी समर्पण कर देना। सरल शब्दों में, वक्फ एक ऐसी संपत्ति है जिसका उपयोग धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
इस्लामी कानून में, एक वक्फ संपत्ति स्थायी रूप से अल्लाह को समर्पित होती है, और एक बार एक संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित हो जाती है, तो वह हमेशा के लिए वक्फ के रूप में बनी रहती है। यह दर्शाता है कि एक वक्फ स्थायी, अपरिवर्तनीय और अपरिवर्तनीय होता है।
वक्फ का शाब्दिक अर्थ 'हिरासत' है क्योंकि जब वक्फ बनाया जाता है, तो संपत्ति को इस स्थिति में कर दिया जाता है कि न तो वक्फ बनाने वाला व्यक्ति और न ही इसके लाभार्थी, उसके स्वामित्व के हकदार रह जाते हैं। वक्फ अल्लाह के नाम सुपुर्द एक सार्वजनिक संपत्ति बन जाती है जिसे दिया नहीं जा सकता, बेचा नहीं जा सकता, गिरवी नहीं रखा जा सकता है, विरासत में प्राप्त नहीं किया जा सकता है या अन्यथा निपटाया नहीं जा सकता है। इस संपत्ति का उपयोग दान के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है।
भारत में वक्फ
भारत में वक्फ के इतिहास का पता दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दिनों में लगाया जा सकता है जब सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम घोर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के पक्ष में दो गाँव समर्पित किए और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंप दिया। जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, भारत में वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती रही।
वक्फ उन्मूलन
19वीं शताब्दी के अंत में भारत में वक्फ के उन्मूलन के लिए एक मामला बनाया गया था। हुआ ये की ब्रिटिश राज के दिनों में वक्फ की एक संपत्ति का विवाद लंदन की प्रिवी काउंसिल तक पहुंच गया। मामले की सुनवाई करने वाले चार ब्रिटिश न्यायाधीशों ने वक्फ को "सबसे खराब और सबसे हानिकारक प्रकार की एक शाश्वतता" के रूप में वर्णित किया और वक्फ को अमान्य घोषित कर दिया।
लेकिन उन चार न्यायाधीशों के निर्णय को भारत मे स्वीकार नहीं किया गया और 1913 के "मुसलमान वक्फ मान्यकरण अधिनियम" ने भारत में वक्फ की संस्था को जिंदगी दे दी। तब से वक्फ पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
वक्फ अधिनियम
वक्फ अधिनियम को 22 नवंबर, 1995 को लागू किया गया था। इस अधिनियम के तहत वक्फ ट्रिब्यूनल को एक सिविल कोर्ट माना जाता है। ट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम और पार्टियों पर बाध्यकारी होता है। वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले किसी भी सिविल कोर्ट से ऊपर होते हैं।
एक बार किसी संपत्ति को बोर्ड द्वारा वक्फ संपत्ति होने का निर्णय लिये जाने के बाद वह संपत्ति न्यायालयों की जांच की जद से बाहर हो जाती है।
अधिनियम की धारा 104 के तहत इस्लाम नहीं मानने वाला व्यक्ति भी मस्जिद, ईदगाह, इमामबाड़ा, दरगाह, खांघा, मकबरा, मुस्लिम कब्रिस्तान, चूल्ट्री या मुसाफिरखाने के लिए वक्फ को अचल संपत्ति दान कर सकता है। ऐसी संपत्ति भी इस अधिनियम के तहत शासित होगी।
मुस्लिम देशों में नदारद
तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक जैसे सभी इस्लामी देशों में वक्फ मौजूद नहीं है। जहां भारत में पक्के तौर पर पता ही नहीं कि वक्फ संपत्तियां कितनी हैं वहीं कट्टर इस्लामी देश सऊदी अरब में सब गिना हुआ है और पंजीकृत बंदोबस्ती की कुल संख्या 33,229 है।
दरअसल, वक्फ संस्थाएँ मुस्लिम दुनिया के सभी हिस्सों में लोकप्रिय रही ही नहीं हैं। पश्चिम अफ्रीका में वक्फ संस्था के बहुत कम उदाहरण पाए जाते हैं। वहीं, हमास के अनुसार संपूर्ण ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन एक इस्लामी वक़्फ़ है।
वक्फ की संपत्ति
वक्फ एक्ट 1965 और 1995 के अनुसार, अगर वक्फ बोर्ड किसी जमीन पर अपना दावा करता है तो वक्फ के सर्वेयर उस जमीन पर जाकर उसका सर्वे करते हैं और अगर उन्हें ऐसा लगा कि ये वक्फ बोर्ड की जमीन है तो वे उसे अपने रिकॉर्ड में चढ़ा लेते हैं।
लेकिन, अगर किसी को वक्फ बोर्ड के इस कृत्य पर आपत्ति हो तो वो “वक्फ ट्रिब्यूनल” में उसकी शिकायत कर सकता है। वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला उसके लिए बाध्यकारी होगा। क्योंकि, इसे कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है।
राजस्थान के एक मामले में भी ऐसा ही हुआ। उस जमीन पर मौजूद चबूतरे और दीवार की वजह से वक्फ बोर्ड के सर्वेयर 1965 में उस जमीन पर गए और उस जमीन को वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर उसे वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में चढ़ा लिया। 1995 में नया एक्ट आने के बाद वक्फ बोर्ड के सर्वेयर ने फिर उसे वक्फ की संपत्ति घोषित करते हुए उसे अपने रिकॉर्ड में चढ़ा लिया। जब 2010 में राजस्थान सरकार ने इस जमीन को माइनिंग हेतु जिंदल ग्रुप को दिया तो वहां की लोकल अंजुमन कमिटी ने इस पर आपत्ति की और इसे वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताते हुए वक्फ बोर्ड को चिट्ठी लिख दी।
इसके बाद वक्फ बोर्ड इसे अपनी संपत्ति बताते हुए सरकार के निर्णय पर आपत्ति जताई और वहाँ बाउंड्री देना शुरू कर दिया। इस पर मामला राजस्थान हाईकोर्ट चला गया जहाँ फिर वक्फ बोर्ड ने आपत्ति जताई कि 1965 और 1995 की वक्फ एक्ट के तहत ये संपत्ति हमारी है और ये हमारे रिकॉर्ड में भी चढ़ा हुआ है, इसीलिए, सरकार इसे किसी को नहीं दे सकती है और न ही कोर्ट इस केस को सुन सकती है क्योंकि अगर कोई विवाद है भी तो, उसे हमारा वक्फ ट्रिब्यूनल सुनेगा न कि कोर्ट। इस पर राजस्थान हाईकोर्ट ने आर्टिकल 226 का हवाला देते हुए वक्फ बोर्ड को क्लियर किया कि वो किसी भी ट्रिब्यूनल या लोअर कोर्ट से ऊपर है और आर्टिकल 226 के तहत वो इस केस को सुन सकता है। और, हाईकोर्ट ने इस मामले में एक विशेषग्य कमिटी बिठा दी। 2012 में कमिटी ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी एवं उसके बाद कोर्ट ने आदेश दे दिया कि ये वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं है और इसे माइनिंग के लिए दिया जा सकता है।
इस फैसले के खिलाफ वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि आपने क्या सर्वे किया है अथवा आपके रिकॉर्ड में क्या चढ़ा है उससे मतलब नहीं है। आपको सबूत दिखाना होगा।
क्या है कानून
कानून के अनुसार (वक्फ एक्ट 1995 की धारा 3 आर के अनुसार) कोई भी संपत्ति वक्फ की प्रॉपर्टी तभी हो सकती है अगर वो निम्न शर्तों को पूरा करती है :
1. जिसकी प्रॉपर्टी है अगर वो इसे वक्फ के तौर पर अर्थात इस्लामिक पूजा प्रार्थना के लिए सार्वजनिक तौर पर इस्तेमाल करता हो/ करता था।
2. वो संपत्ति वक्फ के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए दान की गई हो।
3. राज्य सरकार ने वह जमीन किसी रिलिजियस काम के लिए ग्रांट की हो।
4. उस जमीन के मजहबी उपयोग के लिए जमीन के मालिक ने डीड बना कर दी हो।
सुप्रीम ने आगे कहा कि वक्फ एक्ट 1995 के अनुसार उपरोक्त शर्तों को पूरा करने वाली प्रॉपर्टी ही वक्फ की प्रॉपर्टी मानी जायेगी। इसके अलावा कोई भी संपत्ति वक्फ की संपत्ति नहीं है।
इस मामले में जिस प्रॉपर्टी की बात है, उस प्रॉपर्टी को न तो आपको किसी ने दान में दी है, न ही उसकी कोई डीड है और न ही वो आपने खरीदी है। इसीलिए, वो संपत्ति आपकी नहीं है और उसे माइनिंग के लिए दिया जाना बिल्कुल कानून सम्मत है।
पहले का फैसला
इसके पहले सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ अधिनियम, 1995 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि एक याचिका के माध्यम से कानून की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दी जा सकती है।
लेकिन वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसी व्यक्ति द्वारा दायर इसी तरह की एक याचिका का जवाब दिया। अदालत ने वक्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों को चुनौती देते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया है कि वक्फ ट्रिब्यूनल का निर्माण मनमाना है और दीवानी प्रकृति के हर विवाद का फैसला एक दीवानी अदालत द्वारा किया जाना चाहिए।
सभी कानूनों से ऊपर
भारत में वक्फों को सभी कानूनों से ऊपर छूट प्राप्त है। कोई भी अन्य कानून वक्फ में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। शहरी भूमि सीमा अधिनियम सभी शहरी केंद्रों पर लागू हो सकता है लेकिन वक्फ संपत्तियों पर नहीं। किसी अन्य धर्म या समुदाय को ऐसा विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। हिंदू, ईसाई, पारसी या यहूदी समुदायों के पास कोई समान विशेषाधिकार नहीं है।
स्वतंत्रता के बाद, भारत ने जमींदारी और जागीरदारी के साथ-साथ रियासतों को भी समाप्त कर दिया। लेकिन वक्फ अब भी मौजूद है।