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BJP: 75 वर्ष होने पर आडवाणी, जोशी को मिला मार्गदर्शक मंडल, 79 साल के येदियुरप्पा के लिए बदल गए नियम

BS Yediyurappa: कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के लिए बीजेपी ने 75 वर्ष के नेताओं के लिए अपने अघोषित नियम को पलट दिया।

Krishna Chaudhary
Published on: 19 Aug 2022 7:23 PM IST
Murli Manohar Joshi, LK Advani, BS Yediyurappa
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Murli Manohar Joshi, LK Advani, BS Yediyurappa (Image: Social

BJP: पिछले दिनों बीजेपी के अंदर हुए कुछ सांगठनिक बदलाव की चर्चा सियासी हलकों में काफी हो रही है। राजनीतिक टिप्पणीकार साल 2024 में होने जा रहे आम चुनाव से पहले बीजेपी के अंदर हुए इस फेरबदल को काफी अहम मान रहे हैं। पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Union Minister Nitin Gadkari) और बीजेपी में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री के पद पर काबिज रहने वाला नेता मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) की पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक निकाय से छुट्टी के कई मायने निकाले जा रहे हैं।

इतनी ही चर्चा उस चेहरे को लेकर भी हो रही है जिसके लिए बीजेपी ने 75 वर्ष के नेताओं के लिए अपने अघोषित नियम को पलट दिया। जी हां, हम बात कर रहे हैं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा (Former Karnataka Chief Minister BS Yediyurappa) की। पिछले साल जुलाई में सीएम का पद छोड़ने के बाद से अटकलें थी कि उनका सियासी सफर अब बिल्कुल अंत के निकट पहुंच चुका है। अन्य राज्यों की तरह भगवा दल यहां भी किसी नए चेहरे के हाथ में पार्टी का भविष्य सौंपना चाहती है। येदियूरप्पा खुद भी रिटायरमेंट की ओर इशारा कर चुके थे।

फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि पूर्व डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी (Former Deputy PM LK Advani) और मुरली मनोहर जोशी (Murli Manohar Joshi) जैसे कद्दावर नेताओं को उनके इच्छा के विपरीत मार्गदर्शक मंडल में भेजने वाली बीजेपी 80 वर्ष के होने जा रहे बीएस येदियूरप्पा को केंद्रीय राजनीति में ले आई। इसके लिए कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा होने के मायने को समझना होगा। आखिर क्यों कर्नाटक की राजनीति आज भी इस वयोवृद्ध नेता के आसपास घुमती है।

कर्नाटक में येदियुरप्पा होने के मायने

कर्नाटक दक्षिण भारत का एक बड़ा राज्य है और इसे देश का आईटी हब भी कहा जाता है। लेकिन यहां की राजनीति यूपी – बिहार जैसे राज्यों की तरह ही है यानी जातियों का वर्चस्व। इस दक्षिणी राज्य में लिंगायत और वोकलिग्गा दो सबसे अधिक प्रभावशाली जातियां हैं। ये चुनाव को किसी के भी पक्ष में मोड़ने का माद्दा रखते हैं। 17 फीसदी वोट के साथ लिंगायत सबसे बड़ी जाति है, जिसका इस राज्य में सबसे अधिक वर्चस्व माना जाता है। इसके बाद 15 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर है वोकलिग्गा।

बीएस येदियूरप्पा लिंगायत समुदाय के निर्विवाद नेता माने जाते हैं। इसलिए वह लिंगायत को बीजेपी का वफादार वोटबैंक बनाने में कामयाब रहे। दक्षिण भारत के किसी राज्य में पहली बार कमल खिलाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। वो जनसंघ से 1967 में जुड़े, इसलिए वह बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से भी एक हैं। ऐसे समय में जब बीजेपी उत्तर और पश्चिम से निकलकर पूर्व और दक्षिण में अपने पैर पसारने की कोशिश कर रही थी, तब येदियूरप्पा ही थे जिन्होंने कर्नाटक जैसे बड़े दक्षिणी राज्य में कांग्रेस और जेडीएस जैसे दो ताकतवर सियासी दलों के बीच बीजेपी को स्थापित किया। येदियुरप्पा चार बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री और तीन बार विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे हैं। उनके कद का नेता बीजेपी में समूचे दक्षिण भारत में नहीं है।

अपनी ताकत का एहसास करा चुके हैं येदियुरप्पा

कर्नाटक में पहली भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री रहे बीएस येदियुरप्पा कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। हरबार उन्हें किसी न किसी कारण से कार्य़काल पूरा किए ही पद छोड़ना पड़ा। साल 2011 में जब बीजेपी के पास कर्नाटक में स्पष्ट बहुमत था तब भी येदियुरप्पा को कार्यकाल पूरा करने से पहले इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि उनके ऊपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। बीजेपी के अंदर से ही उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग उठ रही थी। अंततः बीजेपी आलाकमान के दवाब में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्हीं के कहने पर बीजेपी ने पहले सदानंद गौड़ा और फिर जगदीश शेट्टार को मुख्यमंत्री बनाया।

लेकिन फिर भी उनके और आलाकमान के बीच दूरियां कम नहीं हो पाईं और तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी उन्हें जाने से नहीं रोक सकी। साल 2012 में उन्होंने बीजेपी छोड़कर अपनी अलग पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष बना ली थी। इसका नतीजा अगले साल यानी 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन पर दिखा। सत्ताधारी बीजेपी मुख्य विपक्षी दल की हैसियत में भी नहीं आ पाई। उसे जेडीएस से भी कम सीटें मिलीं। नतीजों में स्पष्ट दिख रहा था कि येदियुरप्पा ने बीजेपी को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया और उनके कारण लिंगायत समुदाय के वोट भी बीजेपी से छिटक गए।

अमित शाह ने फिर कराई बीजेपी में वापसी

साल 2013 में जब बीजेपी में नरेंद्र मोदी (Naendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) का वर्चस्व बढ़ा, तब बीएस येदियुरप्पा के वापसी के द्वार भी खुले। मोदी - शाह जानते थे कि दक्षिण के इस दुर्ग को जहां लोकसभा की 28 सीटें हैं बगैर येदियुरप्पा जैसे दमदार जातीय आधार वाले नेता के बिना नहीं भेदा जा सकता। इसलिए उन्होंने उनकी पार्टी में वापसी कराई। जबकि लिंगायत नेता ने बीजेपी से अलगाव के दौरान सीनियर नेताओं पर काफी गंभीर आरोप लगाए थे, उस दौरान नितिन गडकरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे। अमित शाह के कहने पर बीजेपी में लौटे येदियुरप्पा से जब पिछले साल सीएम का पद छोड़ने के लिए कहा गया तो वे अमित शाह के कहने पर ही इसके लिए तैयार हुए।

येदियुरप्पा की जरूरत बीजेपी को क्यों

मौजूदा बीजेपी नेतृत्व तमाम राज्यों में नई लीडरशिप को तैयार करने में जुटा हुआ है। इसलिए कई राज्यों में पुराने नेता का कद कम और नए नेता का कद बढ़ाया जा रहा है। दक्षिण का एकमात्र बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक में भी इसी कार्य़ को अंजाम देने के लिए 79 साल के बीएस येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। बोम्मई भी लिंगायत से आते हैं और येदियुरप्पा के कहने पर ही सीएम बनाए गए हैं। लेकिन एक साल सरकार चलाने के बावजूद उन्होंने न तो संगठन और न ही सरकार पर अपनी पकड़ कायम कर सके हैं। बोम्मई मुख्य रूप से अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए संघर्ष के कर रहे हैं। अपने पूर्ववर्ती जैसा कद और लोकप्रियता में कमी ने उनकी मुश्किलें और बढा दी हैं।

पार्टी राज्य में बंटी हुई नजर आ रही है। अधिकांश नेता अभी खुद की पहचान येदियुरप्पा के साथ बना रहे हैं। येदियुरप्पा की लोकप्रियता में भी इजाफा हुआ है। बोम्मई की कमजोरी और लिंगायतों में उनके प्रति उदासीनता ने दिल्ली में बैठे आलाकमान को बेचैन कर दिया है। लिंगायत की नाराजगी का मतलब है सत्ता से हाथ धोना। पार्टी दक्षिण के अपने इस एकमात्र गढ़ को किसी भी तरह बचाना चाहती है। क्योंकि अगर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी कर्नाटक गंवाती है तो दक्षिण के रास्ते उसके लिए बंद हो जाएंगे। इससे तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में पार्टी के विस्तार की संभावनाओं को भी ठेस लगेगा।

इसलिए बीजेपी लिंगायत जैसे प्रभावशाली समुदाय को अपने साथ जोड़कर रखने के लिए एकबार फिर येदियुरप्पा पर निर्भर है। यही वजह है कि अपने बेटे विजयेंद्र को एक अदद एमएलए और मंत्री बनाने के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे येदियुरप्पा को बीजेपी ने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में शामिल कर बड़ा सम्मान दे दिया। पार्टी इसके जरिए लिंगायतों को बड़ा संदेश देना चाह रही है। बीजेपी कर्नाटक में सीनियर कांग्रेस लीडर और पूर्व सीएम सिद्धारमैया के बढती लोकप्रियता से भी परेशान है। पिछड़े समाज से आने वाले सिद्धारमैया भी एक व्यापक जनाधार वाले नेता हैं। हाल ही में उनके जन्मदिन के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में तकरीबन 4-5 लाख लोग जुटे थे। ऐसे में बीजेपी आलाकमान को लगता है कि 75 वर्षीय सिद्धारमैया का मुकाबला करने के लिए 79 वर्षीय येदियुरप्पा का सियासी अखाड़े में वापसी जरूरी है।



Deepak Kumar

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